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JLF 3rd Day: अक्षता मूर्ति और सुधा मूर्ति की बातचीत ने छुआ दर्शकों का दिल, पूर्व ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक भी रहे मौजूद

Sudha Murthy In Jaipur Literature Festival 2025: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति ने मां सुधा मूर्ति से अपने बचपन और परवरिश को लेकर बातचीत की।
06:12 PM Feb 01, 2025 IST | Deepti Sharma
jlf 3rd day  अक्षता मूर्ति और सुधा मूर्ति की बातचीत ने छुआ दर्शकों का दिल  पूर्व ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक भी रहे मौजूद
JLF 3rd Day

Sudha Murthy In Jaipur Literature Festival 2025 (के.जे.श्रीवत्सन): जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल अपने शानदार सत्रों के साथ साहित्य प्रेमियों को काफी रिझा रहा है। 1 फरवरी को भी फेस्टिवल में अलग-अलग विषयों पर गहन चर्चा हुई, जिसमें साहित्य, विज्ञान, राजनीति, खेल और जियोपॉलिटिक्स से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल थे। इस दौरान सबकी निगाह सुधा मूर्ति और उनकी बेटी अक्षता मूर्ति के साथ संवाद पर रही। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शिमला का दिन मूर्ति का सत्र सबसे खास रहा, क्योंकि उनकी बेटी अक्षता मूर्ति ने ही उनसे उनकी जिंदगी से जुड़े रोचक सवाल-जवाब किए और उन्हें सुनने वालों में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री और सुधा मूर्ति के दामाद विशेष तौर पर दर्शकों के बीच मौजूद थे।

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सुधा मूर्ति ने अपने बचपन, शादी के बाद की जिंदगी, लेखन अनुभव, बच्चों और महिलाओं के लिए अब तक किए गए अपने कामों पर दिल खोलकर बातचीत की। उन्होंने कहा कि 20 साल पहले उन्हें कुछ अलग करने का विचार आया। सेक्स वर्कर की हालत सुधारने की सोची। यह सोचकर वह इस अभियान पर निकलीं कि अगर कम से कम 10 सेक्स वर्कर की जिंदगी भी सुधर गई, तो उनका मकसद कामयाब होगा। लेकिन उन्हें खुशी है कि 3000 से ज्यादा सेक्स वर्करों की जिंदगी बदलने में उन्होंने कामयाबी हासिल की।

एक ऑडियंस के सवाल पर सुधा मूर्ति ने यह भी कहा कि 14 साल तक के बच्चों को मां की गाइडेंस और साथ की बहुत ज्यादा जरूरत है। भले ही यह दौर कामकाजी महिलाओं का है, लेकिन मांओ को चाहिए कि इस उम्र तक के बच्चों की देखभाल के लिए वे ब्रेक लें।

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क्योंकि उसके बाद बच्चे मोबाइल पर तो बिजी हो ही जाएंगे। इस वक्त जो संस्कार मिलेंगे, वह उनकी जिंदगी को बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं। सुधा मूर्ति की बेटी अक्षता ने अपनी जिंदगी से जुड़े कई सवाल अपनी मां से पूछे, जिनका जवाब सुधा मूर्ति ने कुछ इस तरह से दिया।

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अक्षता मूर्ति- आपने मुझे जन्मदिन पर पार्टी करने नहीं दी, उन पैसों का अपने चैरिटी में लगाना सिखाया। उस वक्त मुझे बुरा लगा, लेकिन वह नींव थी। आपने CSR तब किया और सिखाया, जब यह फैशनेबल नहीं था और न ही अनिवार्य। आपने सिखाया कि ड्यूटी करो, रिजल्ट की चिंता मत करो। इसकी नींव कैसे पड़ी।

सुधा मूर्ति- लेकिन मैंने तुम्हें फ्रूटी और समोसा दिया। मेरी दादी विधवा थीं, वह कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन वह गांव में गर्भवती महिलाओं की मदद करती थी। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करती थी। अब पूरे गांव में यह काम करती थीं। वह जाती थीं, कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं की। उन्हें कोई नहीं भी बुलाता था तो वह जाती थीं। गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी कराकर घर वापस आ जाती थीं। मेरे पिता नास्तिक थे और वे भगवान को नहीं मानते थे। उनके लिए सेवा करना ही ईश्वर को मानने जैसा था। इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि मैंने कुछ खास किया है। मैं सोचती हूं कि जब मैं ईश्वर से मिलूंगी तो कहूंगी कि मैंने बच्चों की सेवा की, वैसे ही जैसे तुम्हारी भक्ति करती।

अक्षता मूर्ति- हम सबने गीता में पढ़ा कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन... आपके पास इससे जुड़ा एक किस्सा है, मैं जानती हूं। आप वह बताइए?

सुधा मूर्ति- मैं अपनी किताब का प्रमोशन नहीं कर रही हूं। वह ऐसे भी बिक रही हैं। थ्री थाउजेंड स्टिचेस (Three Thousand Stitches) इस किताब में मैंने उसका जिक्र किया है। 20 साल पहले मैं सेक्स वर्कर्स के पास गई। मुझे लगा कि मैं अगर 10 को भी बदल पाई तो बड़ी बात होगी, लेकिन मैंने 3000 सेक्स वर्कर्स की जिंदगी बदली और मैंने किताब में यही लिखा।

पहले उन्होंने मुझ पर टमाटर फेंके, मुझे जलील किया, मैंने सोचा कि मैं यह क्यों कर रही हूं, लेकिन फिर मुझे लगा कि यह करना बेहद जरूरी है। इसलिए मैंने फल की चिंता किए बगैर काम किया। इसमें नारायण मूर्ति का काफी सपोर्ट था। मैं अपने पति को अपना दोस्त मानती हूं, पति नहीं।

अक्षता मूर्ति- हमने सीखा कि अगर आप 20 की उम्र में आदर्शवादी नहीं हैं, आपके पास दिल नहीं है, अगर आप 40 के बाद भी आदर्शवादी हैं तो इसका मतलब है, यू डोंट हैव अ ब्रेन। क्या आदर्शवादी होना सिर्फ बचपन तक सीमित है?

इस पर सुधा मूर्ति ने कहा कि मैं 74 साल की उम्र में भी आदर्शवादी हूं। मैंने बच्चों को सिखाया, आपको सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनना है। दिल साफ रखना है। जैसा सोचो, वैसा ही बोलो, वैसा करो। ऐसा नहीं कि कुछ सोच रहे, कुछ कर रहे और बोल कुछ और रहे। तभी अच्छी जिंदगी जी पाओगे।

अक्षता मूर्ति ने कहा कि मुझे एक किताब पसंद है और इस किताब में कॉलेज में मिले एक प्रेमी युगल की कहानी है। जैसे मैं और ऋषि मिले। हालांकि, मुझे हैप्पी एंडिंग पसंद है, लेकिन इस किताब में हैप्पी एंडिंग नहीं है। लेकिन यह किताब मुझे बहुत पसंद है। आपको ऐसी कौन सी किताब पसंद है जो आदर्शवाद के विचार से मिलती हो?

सुधा मूर्ति- मेरी एक किताब का चैप्टर है। A wedding to remember। वह मेरे लिए काफी खास है। एक बार मुझे किसी शादी का न्योता आया। मैं पंडित नहीं हूं, लेकिन मुझे कहा गया कि आप नहीं आओगे तो शादी पूरी नहीं होगी। मैंने सोचा कि मेरे स्टूडेंट होंगे, लेकिन नहीं थे। जब मैं वहां गई तो मुझे दूल्हे के पिता ने बताया कि मेरे बेटे ने आपकी किताब पढ़ी और एक इकोडर्मा से पीड़ित लड़की से शादी की। इसलिए उन्होंने मुझे बुलाया।

सुधा मूर्ति- मैं बताना चाहती हूं कि मेरी बेटी ने क्या दिया। 1996 में वह 16 साल की थी। तब बंगलुरू में उसका एक दोस्त था आनंद। उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। एक बार अक्षता मेरे पास आई, उसने कहा अम्मा आनंद को एडमिशन मिल गया है। क्या तुम उसे स्पॉन्सर करोगी? मैं क्वेश्चन पेपर तैयार कर रही थी। काफी व्यस्त थी। मैंने कहा तुम कर दो। तो अक्षता ने कहा कि तुम मुझे दस रुपए नहीं देती। मेरे बर्थडे मॉनिटर करती हो।

मैं कैसे स्पॉन्सर करूंगी। फिर उसने गुस्से में कहा कि अगर तुम सोशल वर्क नहीं कर सकते तो तुम्हें किसी को कुछ कहने का अधिकार नहीं है। तुम किसी से नहीं कह सकते कि तुम यह करो, वह करो। इसलिए मैं कह सकती हूं। अक्षता इज माय टीचर... मैं सो रही थी, उसने मुझे जगाया कि तुम क्या कर रहे हो। और तभी मैंने तय किया कि मैं फिलैंथ्रॉपी करूंगी।

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