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JLF 2025: सालों बाद भी AI क्यों नहीं हो पाएगा कारगर? सुधा मूर्ति ने बताई वजह

Jaipur Literature Festival 2025: पांच दिवसीय जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) का आगाज हो गया। पहले दिन राज्यसभा सांसद और लेखिका सुधा मूर्ति का 'द चाइल्ड विथ इन' विषय पर सेशन हुआ।
05:58 PM Jan 30, 2025 IST | Deepti Sharma
jlf 2025  सालों बाद भी ai क्यों नहीं हो पाएगा कारगर  सुधा मूर्ति ने बताई वजह
Jaipur Literature Festival 2025:

Jaipur Literature Festival 2025: दुनियाभर में पहचान बना चुके जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (Jaipur Literature Festival) का आगाज गुरुवार राजधानी जयपुर में हुआ। पांच दिवसीय यह फेस्टिवल 3 फरवरी तक होटल क्लार्क्स आमेर में आयोजित किया जाएगा। आज से JLF का 18वां एडिशन शुरू हो गया।

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फेस्टिवल के पहले दिन पहुंची राज्यसभा सांसद और लेखिका सुधा मूर्ति का "द चाइल्ड विथ इन" विषय पर सेशन हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि AI आ चुका है, लेकिन बच्चों की कहानियों को यह भावनाओं के साथ कभी नहीं लिख पाएगा। AI तकनीकी रूप से कारगर है, लेकिन भावनाओं का उसमें अभाव होता है। दिल और दिमाग दोनों की बातें अलग होती हैं। कहानियों की दुनिया में सालों बाद भी AI उतना कारगर नहीं हो पाएगा, जितना दिल और दिमाग दोनों से सोचकर कहानियां लिखी जाएं।

डिजिटल मीडिया ने क्रिएटिविटी को किया कम- सुधा मूर्ति

उन्होंने कहा कि जब मैं बच्चों के लिए लिखती हूं तो 7 साल की बच्ची की तरह सोचना शुरू कर देती हूं। उस वक्त मैं 74 साल की सुधा मूर्ति नहीं होती। हर पल और हर चीज को बच्चों की तरह एन्जॉय करके लिखती हूं। बच्चों के साथ खेलती हूं और यह नहीं सोचती कि उस खेल में मेरी हार होगी या जीत।

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मैं उस परिवार से हूं जहां पैसों से ज्यादा सीखने को महत्व दिया जाता है। मेरी दादी 66 साल की उम्र में अल्फाबेट पढ़ना सीखी थीं। जिंदगी में पढ़ने और सीखने की ललक होनी चाहिए। हैरी पॉटर पढ़ना गलत नहीं है, लेकिन यह भी सही है कि डिजिटल मीडिया ने क्रिएटिविटी को कम किया है।

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यूरोपीय देशों में लॉजिकल, चीन में मैजिक, अरब में अल्लाउद्दीन जैसी स्टोरी होती है। भारत में सब तरह की बच्चों की स्टोरी है, जो यहां के पारंपरिक किस्सों से जुड़ी होती है। सुधा मूर्ति ने बताया कि वह कभी भी चीटिंग स्टोरी नहीं लिख सकती हैं, हैप्पी एंडिंग वाली लिखती हैं, क्योंकि वे खुद पोजिटिव माइंड वाली हैं।

कोकोनेट बर्फी है फेवरेट स्टोरी

लेखिका सुधा मूर्ति ने अपनी फेवरेट स्टोरी के बारे में कहा कि बताना मुश्किल है, लेकिन कोकोनेट बर्फी मेरे दिल से लगी हुई है। इसमें एक नारियल खरीदने के लिए एक व्यक्ति के लालच की कहानी है, जो जिंदगी पर भी सटीक बैठती है। उन्होंने कहा कि जब भी मुश्किल होती है, तो मैं हनुमान जी के संजीवनी की खोज और उसे लाने वाली कहानी याद कर लेती हूं।

जो मुझे सिखाती है कि जब मुश्किल समय आ जाए, तो जिंदगी में समस्या से बड़े होने की कोशिश करनी चाहिए। तभी तो समस्या कम नजर आएगी और समाधान का रास्ता नजर आएगा। जिंदगी और घर में रहन-सहन जितना साधारण होगा, जिंदगी उतनी ही आसान होगी। हम इंसान हैं और हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारी भी सीमाएं हैं।

मां के बाद दादी मां की भूमिका पर सुधा मूर्ति ने कहा कि आज के बच्चे जो देखते हैं, उसी को अपने हिसाब से कल्पना करके सोचते हैं। एक किताब लिखने में दो से तीन साल लगाती हूं, लेकिन उसमें रिसर्च पूरी होती है। अपने 6 साल के पालतू कुत्ते गोपी के बारे में सुधा मूर्ति ने कहा, "गोपी मेरी धड़कन है। सोचती हूं कि अगर मैं गोपी होती तो इंसानों को कैसे देखती।" मेरे पति नारायण मूर्ति को कुत्तों से डर लगता था, क्योंकि सालों पहले एक कुत्ते ने उन्हें काट लिया था। लेकिन गोपी से आज उन्हें इतना लगाव है कि उसके बिना खाना तक नहीं खाते हैं।

इसीलिए आज मुझे कर्नाटक में गोपी की अजी नाम से जानते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें याद नहीं है कि मैं आज तक मेरी जैसी पॉजिटिव सुधा से नहीं मिली, लेकिन मैं बहुत सिंपल हूं। मैंने इंफोसिस से दूरी बना ली है और फुल टाइम राज्यसभा सदस्य के रूप में सोचती हूं।

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