Sawai Madhopur: सचिन पायलट की साख दांव पर लगी, क्या भाजपा लगाएगी हैट्रिक, जानें कैसे हैं समीकरण?
केजे श्रीवत्सन, जोधपुर
Rajasthan Tonk Sawai Madhopur Lok Sabha Seat: राजस्थान की जिस लोकसभा सीट से इस बार कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं, वह टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट है। यहां सूबे के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और टोंक से लगातार 2 बार विधायकी जीत चुके सचिन पायलट की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। यही कारण है कि कांग्रेस ने इस बार यहां से कद्दावर नेता और रिटायर्ड पुलिस अधिकारी हरीश मीणा को मैदान में उतारा है, जबकि भाजपा ने यहां से सुखबीर सिंह जौनपुरिया पर तीसरी बार भरोसा जताया है। 2008 में नए परिसीमन के बाद साल 2009 में अस्तित्व में आई इस लोकसभा सीट पर 3 बार चुनाव हो चुके हैं। 2 बार भाजपा ने तो एक बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव जीता है।
जातिगत समीकरण
टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर मीणा, गुर्जर और अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। यह तीनों आपस में एक दूसरे के खिलाफ मतदान करते आए हैं। भाजपा उम्मीदवार सुखबीर सिंह जौनपुरिया गुज्जर समाज से हैं। कांग्रेस ने दलित समाज के खास चेहरे हरीश मीणा को टिकट दिया है, जो इसी इलाके के पूर्व सांसद नमो नारायण मीणा के भाई हैं। पुलिस विभाग में सालों तक सेवाएं दे चुके हैं। जातिगत आधार पर वोटों की लामबंदी के चलते सभी दल इस लोकसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर ही अपने प्रत्याशियों को फाइनल करते हैं।
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वोटों का समीकरण
टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर लगभग 22 लाख मतदाता हैं। यहां SC कैटेगरी के करीब पौने 4 लाख वोटर्स हैं। ST कैटेगरी के 3 लाख वोटर्स हैं। 2.60 लाख गुर्जर, 1.95 लाख मुस्लिम, 1.45 लाख जाट, 1.35 लाख ब्राह्मण, 1.15 लाख महाजन, 1.50 लाख माली और एक लाख राजपूत हैं। 2 लाख से ज्यादा अन्य जातियां हैं। सभी जातियां अपने-अपने चुनावी समीकरणों के लिहाज़ से इन्हें साधने में जुटी हैं। गुज्जर बाहुल होने के चलते गुज्जरों के बड़े नेता किरोड़ी सिंह बैसला भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। 8 विधानसभा सीटों को मिलाकर यह लोकसभा सीट बनी है।
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लोकसभा चुनाव में मुद्दे
टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर मुद्दों की बजाय जातिगत समीकरण हावी रहते हैं। दूसरे बड़े मुद्दों में आजादी के बाद से अब तक टोंक में ट्रेन का नहीं दौड़ना, हर बार चुनाव में मुद्दा बनकर उभरता है, लेकिन आज तक बात नहीं बनी। नमोनारायण मीणा 2009 और 2013 के बीच UPA सरकार में रहने में के बावजूद यह मांग पूरी नहीं कर पाए। 2 बार लगातार यहां से धमाकेदार जीत दर्ज करने वाले सुखबीर सिंह जौनपुरिया भी 2014 से 2018 के बीच केंद्र में मोदी सरकार और राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार में रहे, लेकिन इलाके में रेल नहीं ला सके।
पानी और अवैध बजरी खनन का मामला भी यहां हर चुनाव में गर्माया रहता है। 2 जिलों टोंक और सवाई माधोपुर को मिलाकर बनाए गए इस संसदीय क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में 3 से 4 दिन पानी की आपूर्ति होती है। लोगों को या तो खरीदकर पानी पीना पड़ता है या फिर 3 से 4 किलोमीटर दूर पैदल चलकर कुओं से पानी लाना पड़ता है। भाजपा को उम्मीद है कि ERCP पर भजनलाल सरकार की पहल के बाद उसके पक्ष में माहौल बरक़रार रहेगा।
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पूर्व क्रिकेटर अज़रुद्दीन का भी टोंक से नाता
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में व्यवसायी सुखबीर सिंह जौनपुरिया को हरियाणा से राजस्थान लाकर चुनाव लड़ाया। कांग्रेस ने भी हैदराबाद से पूर्व अज़रुद्दीन को यहां लाकर चुनावी मैदान में उतारा। हालांकि उस वक़्त देशभर में मोदी लहर के चलते भाजपा के सुखबीर सिंह जौनपुरिया ने चुनाव 1 लाख 35 हजार 506 वोटों के अंतर से जीत लिया था और कांग्रेस का अल्पसंख्यक प्रत्याशी को चुनावी रण में उतारने का दांव फेल हो गया था।
जौनपुरिया का ट्रैक रिकॉर्ड
जौनपुरिया साल 2005 से 2009 तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य रहे। मई 2014 में 16वीं लोकसभा के सदस्य चुने गए। इस लोकसभा सीट से दोनों बार धमाकेदार जीत दर्ज करने वाल जौनपुरिया जनता के नेता बन गए हैं। क्षेत्र की गोशालाओं की आर्थिक मदद करने के साथ-साथ अपने खर्चे से पिछले 8 सालों से गरीबों और जरूरतमंत लोगों के लिए रसोई भी चला रहे हैं, जिसकी तारीफ प्रधानंमंत्री नरेंद्र मोदी भी ट्वीट करके कर चुके हैं।
PM हाउस को लेकर उन्होंने बेहतर काम करके दिखाया है। ऐसे में मोदी लहर के साथ अपने कामकाज को गिनाकर वे चुनावी मैदान में उतरे हैं। हालांकि पिछले 2 चुनाव के नतीजे देखे जाएं तो जौनपुरिया की जीत का अंतर लगातार कम हुआ है। अब देखना यह होगा कि क्या भाजपा तीसरी बार उन पर विश्वास जताएगी?