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मोदी कैबिनेट 3.0 से क्यों दरकिनार हुईं वसुंधरा राजे और सांसद बेटा दुष्यंत? राहुल ने बताया कारण

Rahul Kaswan Interview: चुरू से कांग्रेस सांसद राहुल कस्वां ने कहा कि पहले सीनियर लीडर एसेट होते थे। भाजपा में अब वह लाइबिलिटी बन गए है। चार बार के जीतने वाले नेता भी मानते कि उन्हें कुछ नही बनाया जाएगा। कब कहां किस चीज की प्रॉब्लम आ जाएगी किसी को नहीं पता। भाजपा में परंपरा बनाई जा रही है कि केवल पहली बार के चुनाव जीतने वालों को ही पद और सम्मान मिलेगा, सीनियर को नहीं।
05:34 PM Jun 11, 2024 IST | Gaurav Pandey
Rahul Kaswan
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केजे श्रीवत्सन, चुरू

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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राहुल कस्वां ने भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। कांग्रेस ने उन्हें राजस्थान की चुरू सीट से टिकट दिया था और कस्वां ने जीत भी हासिल की। मंगलवार को राहुल कस्वां ने न्यूज24 के साथ खास बातचीत की और कई सवालों के जवाब दिए। इस दौरान उन्होंने 'काका' राजेंद्र राठौड़ के साथ रंजिश से लेकर भाजपा में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके सांसद बेटे दुष्यंत की स्थिति पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने दावा किया कि भाजपा में सीनियरिटी लाइबिलिटी बन गई है।

राहुल कस्वां ने राजेंद्र राठौड़ को लेकर कहा कि हमारी कभी किसी से रंजिश नहीं थी, हमारे पिता जी की साफ राजनीति थी। हमारा परिवार 1991 से जनता के बीच रहकर काम कर रहा है। चुनाव लड़ रहा है। काका राजेंद्र राठौड़ चुरू से कई बार चुनाव लड़े, राज्य में मंत्री बने। लेकिन न जाने क्यों मेरा और मेरे परिवार के लोगों के टिकट कटवाने में लगे हुए थे। पार्टी के नेताओं के बीच जाकर लगातार कोशिश भी करते रहते थे।  2023 के विधानसभा चुनाव में हारने के बाद भी वह कह रहे थे कि लोकसभा चुनाव में मुझे टिकट नहीं लेने देंगे।

कस्वां ने आगे कहा कि मुझे उम्मीद थी कि पार्टी टिकट काटने से पहले मुझसे पूछेगी कि आखिर बात क्या है।  लेकिन 2013 से जो शुरुआत उन्होंने की थी वैसी ही स्थिति बनी रही। ऐसे में मैंने बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ा। लोगों को बताया कि प्रजातंत्र में जनता को ही नेता चुनने या हटाने का अधिकार है। कोई काका नहीं ऐसा कर सकता और जनता ने वही किया। इस चुनाव में चुरू की जनता ने काका की खाज मिटाने का काम किया। जिस तरह से इन लोगों ने चुरू में पिछले 15 सालों से राजनीतिक करने की कोशिश की वह गलत था।

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'ब्रांड वैल्यू के नाम पर चुनाव जीतना अब संभव नहीं'

उन्होंने कहा कि प्रत्याशियों के प्रचार-प्रसार में नेता आते ही हैं, लेकिन लोकतंत्र में नेता को जनता के साथ कनेक्शन बनाना पड़ता है। चुरू में 22 लाख वोटर हैं, 725 किलोमीटर लंबा संसदीय क्षेत्र है। जनता के मन में मेरे लिए विश्वास था लेकिन केवल एक व्यक्ति के मन में मुझे हटाने का विचार था। मेरे सामने खड़े हुए भाजपा के देवेंद्र झाझरिया सरकारी नौकरी कर रहे थे। अचानक उन्हें पार्टी ने टिकट दे दिया। समझना होगा कि जनता के बीच रहने वाले को ही मतदाता पसंद करते हैं। ब्रांड वैल्यू के नाम पर चुनाव जीत पाना अब संभव नहीं है।

'चुरू के विकास के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे'

क्षेत्र में काम को लेकर कस्वां ने कहा कि यह एक सतत प्रक्रिया है। विकास के लिए कोशिश तो होगी ही। चुरू में कई इलाकों में अभी तक रेल कनेक्टिविटी नहीं है। हाईवे जो पास हुए उन्हें बनवाना है। रिंग रोड्स की डीपीआर पिछली बार मैंने पास करवाई थी, अब उसे भी पूरा करवाना है। राहुल कस्वां ने कहा कि बिजली-पानी की समस्याओं को दूर करना मेरी प्राथमिकता रहेगी। सरकार को इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक बार फंडिंग करनी पड़ेगी। मैं आगे भी सरकार से विकास संबंधी कार्यों के लिए धनराशि लेकर आऊंगा।

इस बार चुनाव में क्यों कम हो गईं भाजपा की सीटें?

राहुल कस्वां ने कहा कि अग्निवीर योजना और बेरोजगारी को लेकर देश के युवाओं के बीच बहुत ज्यादा नाराजगी थी। युवा बहुत चिढ़े हुए थे। भाजपा को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि राजस्थान जैसे प्रदेश में अग्निवीर योजना की वजह से उसे कितना बड़ा नुकसान हुआ है। शेखावाटी का इलाका फौज में युवाओं की भर्ती के लिए जाना जाता है। देश में इस समय बेरोजगारी सबसे ज्यादा है। 400 पार का नारा ही बीजेपी की सबसे बड़ी लाइबिलिटी बन गया था। वे जनता को समझा ही नहीं पाए कि क्यों उन्हें 400 पार सीटें चाहिए थी।

राजस्थान में भाजपा का प्रदर्शन क्यों खराब हुआ?

कस्वां ने कहा कि भाजपा में नेता और आम कार्यकर्ताओं के बीच कम्युनिकेशन गैप बहुत ज्यादा बढ़ गया था। प्रदेश अध्यक्ष भी 5 से 7 बार के सांसद को भी लगातार संपर्क में नहीं रख पाए। यहां तक कि एक मीटिंग तक हमारे साथ नहीं की गई। जिसके चलते पार्टी के बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच में दूरियां लगातार बढ़ती गईं। उसका असर तो नजर आना ही था। अंदर ही अंदर आज भी लोगों में इसकी टीस है। मैंने एक आवाज उठाई। हालांकि उस वक्त मैंने भी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा परिणाम इसका इस तरह से सामने आएगा।

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लोग भी सोच रहे थे कि तानाशाही चल रही थी। जब पार्टी नेतृत्व ऐसा करता है तो 'काका' जैसे लोग पैदा हो जाते हैं, जो पार्टी का बंटाधार करते है। बीजेपी के नेताओं को घमंड आ गया था कि उनके सिंबल पर लकड़ी भी चुनाव जीत जाएगी। यदि आदमी को लकड़ी से रिप्लेस कर दिया जाएगा तो कैसे चलेगा ! कुछ लोग पार्टी को पूरी तरह अपने कब्जे में रखना चाहते थे लेकिन हरमाडा से गंगानगर तक 500 किमी तक आज बीजेपी के एक नेता के चलते पार्टी एक सीट नहीं जीत पाई। पार्टी के बड़े नेता अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे थे।

'वसुंधरा और दुष्यंत की पार्टी में कोई तरजीह नहीं'

वसुंधरा राजे और उनके सांसद बेटे दुष्यंत सिंह को लेकर कस्वां ने कहा कि उनको पार्टी में कोई तरजीह नहीं मिल रही है। उन्होंने कहा कि यह मिलियन डॉलर का सवाल है जो किसी को समझ नहीं आ रहा है। सीनियर लीडर एसेट होते थे, अब लाइबिलिटी बन गए हैं। पार्टी में इनसिक्योरिटी का माहौल बन रहा है। परंपरा बना रहे हैं कि केवल पहली बार चुनाव जीतने वालों को ही पद-सम्मान मिलेगा, सीनियर को नहीं। जबकि भाजपा के संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि चार बार के सांसद को दरकिनार किया जाए। यह कहां का इंसाफ है?

कस्वां ने कहा कि राजस्थान का आम आदमी और भाजपा कार्यकर्ता वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर सबने उम्मीद बांधी कि 5 बार के सांसद दुष्यंत सिंह इस बार केंद्र में मंत्री बनेंगे लेकिन ये भी नहीं हुआ। किसी को पता भी नहीं कि ऐसा क्यों किया गया। किसी को समझ नहीं आ रहा है कि कौन कब मंत्री बना दिया जा रहा है। हम 5 से 6 बार जीत कर आ रहे थे फिर भी पहली बार जीत करने वाले लोगों को मंत्री बना दिया गया था। बड़ा सवाल यह है कि किस आधार पर पार्टी आगे बढ़ रही है!

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