राजस्थान में भाजपा जिला अध्यक्ष चुनावों को लेकर खींचतान, जानें क्यों फंसे पेच?
Rajasthan News (केजे श्रीवत्सन, जयपुर) : राजस्थान में बीजेपी की डबल इंजन की सरकार है, लेकिन संगठन अपने लिए जिलाध्यक्षों के चयन में ही उलझा हुआ है। इसकी वजह जिलाध्यक्ष के लिए कुछ ऐसी शर्तें तय कर दी गई हैं, जो पार्टी के नेताओं को रास ही नहीं आ रही है। यही कारण है कि अपने निर्धारित कार्यक्रम से करीब 1 महीने देरी के बाद भी जिलाध्यक्षों के चयन को लेकर जबरदस्त कशमकश बना हुआ है।
भारतीय जनता पार्टी में नए जिलाध्यक्षों के चयन को लेकर चल रही रस्साकस्सी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ से लेकर पार्टी के तमाम बड़े नेता हर जिले में जाकर जिलाध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया और उसके बाद नाम घोषणा को लेकर उलझे नजर आ रहे हैं। बड़े नेताओं को इसलिए भेजा जा रहा है कि कहीं जिला इकाइयों के नेता अध्यक्ष पद को लेकर आपस में उलझ कर ऐसी तस्वीर न पेश कर दें, जिससे संगठन की साख पर आंच आए। यही कारण है कि चुनाव करवाकर एक साथ सूची जारी करने के बजाए टुकड़ों में इन नामों को जारी किया जा रहा है।
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शर्तें भी परेशानी का कारण
पार्टी ने पहले ही साफ कर दिया कि इस बार नए चेहरों को जिलाध्यक्ष पद पर मौका दिया जाएगा। राजस्थान के सभी जिलों में पिछले शनिवार को बीजेपी की संगठनात्मक चुनाव 2024 की बैठक हुई थी, जिसमें प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी द्वारा बनाए गए नियमों में मंडल अध्यक्ष पद के लिए आयु सीमा 35 से 45 वर्ष और जिलाध्यक्ष के लिए 45 से 60 वर्ष तय की गई शर्तों को कड़ाई से लागू करने का फिर से फरमान सुना दिया गया। ऐसे में नए नियम के सख्ती से लागू होने के बाद पिछले कई समय से मंडल और जिलाध्यक्ष बनने की रेस में जुटे कई पदाधिकारी अब इस दौड़ से बाहर हो गए।
मदन राठौड़ ने माना- गलत जानकारियों वाले आवेदन मिले
उम्र और अनुभव की शर्तों को पूरा करना कई नेताओं के लिए आसन नहीं हो रहा है, क्योंकि न तो इससे कम और न ही इससे अधिक उम्र वालों को इस पद पर मौका मिलेगा। इसके साथ ही संगठन में किसी पद पर काम करने के अनुभव को भी प्राथमिकता की शर्त लगा दी गई है, जो बड़े नेता इन शर्तों को पूरा करने में कुछ आगे पीछे नजर आ रहे हैं। वे अपनी उम्र और अनुभव प्रमाण पत्र को लेकर गलत जानकारियां दे रहे हैं। इसे लेकर राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष मदन राठौड़ ने यह स्वीकार किया कि कई नेताओं ने ऐसा किया है, क्योंकि कोई भी डबल इंजन की सरकार में अपनी भूमिका निभाने से पीछे नहीं रहना चाहता है। मदन राठौड़ ने गलत जानकारी देकर मंडल और जिलाध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाले ऐसे सभी नेताओं को चेतावनी दी है कि वे वक्त रहते अपना नाम वापस ले लें, वरना उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई भी संभव है।
दागी और बागी नेता भी रेस में
अब केंद्र और राजस्थान में डबल इंजन की सरकार है तो भला बीजेपी का कोई भी नेता क्यों अपने आप को किसी पद से वंचित रखने में पीछे रहेगा। विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल होने वाले और टिकट नहीं मिलने पर चुनावों में निष्क्रिय नेताओं ने भी अब अपनी दावेदारी ठोंक रखी है। इससे पार्टी के सक्रिय नेताओं में सरकार आने के बाद सत्ता या संगठन में जगह मिलने की उम्मीद जागी है। ये वफादार नेता भी दागी और बागी नेताओं के साथ दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को प्राथमिकता देने के खिलाफ हैं।
बीजेपी ने राजस्थान में संगठनात्मक रूप से 44 जिले बनाए हैं। प्रदेश बीजेपी ने 31 जनवरी तक नए जिलाध्यक्षों के चयन की नई तारीख तय कर रखी है। पहले बीजेपी को 30 दिसंबर 2024 तक जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा करनी थी। इसके बाद 15 जनवरी तक प्रदेशाध्यक्ष के निर्वाचन का कार्यक्रम था, लेकिन जनवरी का अंतिम सप्ताह भी आ गया। इसके बावजूद कई मंडल अध्यक्षों के चुनाव पर ही पेच फंसा हुआ है। 1100 से ज्यादा मंडल में से सिर्फ अभी तक करीब 1000 के करीब के ही चुनाव सम्पन्न हुए हैं। जिन जिलों में मंडल अध्यक्ष बन चुके हैं, वहां पर पार्टी ने जिला अध्यक्ष भी घोषित करना शुरू कर दिए हैं। उस स्थिति में जिला अध्यक्ष चुनाव से समय बचाने के लिए पार्टी ने ठोस रणनीति बनाई है, ताकि समय पर प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव हो सके।
इसलिए जरूरी हैं जिलाध्यक्ष के चुनाव
राजस्थान भाजपा ने संगठन के लिहाज से 44 जिला इकाइयां बना रखी हैं। यानी 44 जिला अध्यक्ष संगठन में होंगे। चूंकि, प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए जो मापदंड हैं, उसके अनुसार, 23 जिलों में अध्यक्षों की नियुक्ति और अध्यक्ष के उम्मीदवार पर सहमति जरूरी है। इसलिए पार्टी के तमाम बड़े नेता अपना सब काम छोड़कर इस पर फोकस लगाए हुए हैं। उन जिलों में जिलाध्यक्षों के चुनाव करने नामों की पहले घोषणा की जा रही है, जहां पर कोई बड़ा विवाद सामने नहीं आया है।
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इन जिलों के अध्यक्ष के नामों को लेकर विवाद संभव
जयपुर शहर और जयपुर ग्रामीण, सवाई माधोपुर, बाड़मेर, सीकर, भीलवाड़ा, सिरोही, बारां, झालावाड़, धौलपुर, दौसा, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर के साथ सबसे मजबूत गढ़ कहे जाने वाले मेवाड़ के उदयपुर जिले में जिला अध्यक्षों के नामों पर विवाद होने की संभावना है।