अजा एकादशी आज, जानें इस व्रत की कथा जिसे पढ़ने और सुनने मात्र से मिलता है पुण्य
Aja Ekadashi Katha in Hindi: एकादशियों में एक श्रेष्ठ अजा एकादशी भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है, जो कृष्ण जन्माष्टमी के तीसरे दिन मनाए जाने के कारण खास महत्व रखती है। व्रतराज ग्रंथ के अनुसार, भादो मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को ‘अजा एकादशी’ का व्रत रखा जाता है। सभी एकादशियों की तरह यह एकादशी भी भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत इस साल गुरुवार 29 अगस्त, 2024 यानी आज रखी जाएगी।
अजा एकादशी की कथा सुनने से लाभ
सनातन धर्म में अजा एकादशी का विशेष महत्व है। अजा एकादशी के दिन व्रत रखने से कई तरह के दुखों से निजात मिलने के साथ-साथ सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। कहते हैं, जो साधक-साधिका सच्चे मन इस एकादशी को करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं, इस एकादशी से जुड़ी वास्तविक कथा, जिसे पढ़ने और सुनने मात्र से पापों का नाश होता है और पुण्य ही पुण्य मिलता है।
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भगवान राम के पूर्वज से जुड़ी है अजा एकादशी की व्रत कथा
अजा एकादशी व्रत की कथा भगवान राम के पूर्वंज इक्ष्वाकु वंश के राजा राजा हरिश्चन्द्र से जुडी़ हुई है। राजा हरिश्चंद्र अत्यंत सत्यवादी राजा थे। अपने दिए वचन और अपनी सत्यता पूर्ति के लिए वे पत्नी तारामती और पुत्र राहुल रोहिताश्व तक को बेच देता है और स्वयं भी एक चाण्डाल का सेवक बन जाते हैं। राजा हरिश्चंद्र ने गौतम ऋषि के कहने पर अजा एकादशी का व्रत किया था, तब उन्हें कष्टों से मुक्ति मिली थी। आइए विस्तार से जानते हैं यह कथा, जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर सहित अन्य पांडवों को सुनाई थी।
अजा एकादशी की व्रत कथा
युधिष्ठिर ने कहा, "हे पुण्डरीकाक्ष! मैंने श्रावण शुक्ल एकादशी अर्थात पुत्रदा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए। इस एकादशी का क्या नाम है और इसके व्रत का क्या विधान है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है?
श्रीकृष्ण ने कहा, "हे कुन्तीपुत्र! भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं। इसका व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस लोक और परलोक में मदद करने वाली इस एकादशी व्रत के समान संसार में दूसरा कोई व्रत नहीं है। अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी का माहात्म्य श्रवण करो।"
"पौराणिक काल में भगवान श्री राम के वंश में अयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा हरिश्चन्द्र नाम के एक राजा हुए थे। राजा अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे।
एक बार देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा ने स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्ववामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। सुबह विश्वामित्र वास्तव में उनके द्वार पर आकर कहने लगे तुमने स्वप्न में मुझे अपना राज्य दान कर दिया।
राजा ने सत्यनिष्ठ व्रत का पालन करते हुए संपूर्ण राज्य विश्वामित्र को सौंप दिया। दान के लिए दक्षिणा चुकाने हेतु राजा हरिश्चन्द्र को पूर्व जन्म के कर्म फल के कारण पत्नी, बेटा एवं खुद को बेचना पड़ा। हरिश्चन्द्र को एक डोम ने खरीद लिया जो श्मशान भूमि में लोगों के दाह-संस्कार का काम करवाता था।
स्वयं वह एक चाण्डाल का दास बन गया। उसने उस चाण्डाल के यहां कफन लेने का काम किया, किन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा।
जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गए तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगा। वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करूं? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊं? एक बार की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम ऋषि उसके पास पहुंचे। हरिश्चन्द्र ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुःख-भरी कथा सुनाने लगे।
राजा हरिश्चन्द्र की दुख-भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुःखी हुए और उन्होंने राजा से कहा, "हे राजन! भादो माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। तुम उस एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करो और रात्रि को जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।" महर्षि गौतम इतना कहकर अंतर्धान हो गए।
अजा नाम की एकादशी आने पर राजा हरिश्चन्द्र ने महर्षि गौतम के कहे अनुसार विधानपूर्वक उपवास और रात्रि जागरण किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गए। उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उन्होंने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवेन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया। उन्होंने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र और आभूषणों से परिपूर्ण देखा।
व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई। वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब माया रची गई थी, परन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई और अंत समय में हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गए।"
यह कहा सुनाने के बाद मधुसूदन भगवान ने युधिष्ठिर से कहा, "हे राजन! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था। जो मनुष्य इस उपवास को विधानपूर्वक करते हैं और रात्रि-जागरण करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में वे स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। इस एकादशी व्रत की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति हो जाती है।"
॥ जय श्री हरि ॥
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