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जानिए वास्तु शास्त्र की 8 दिशाओं के नाम, महत्व और आम आदमी पर इसका असर

Vastu Shastra: वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्व है। इस शास्त्र केअनुसार, दिशाओं के शुभ-अशुभ होने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य पर असर पड़ता है। आइए जानते हैं, इस शास्त्र में कितनी दिशाएं हैं और किस दिशा का प्रभाव क्या है?
04:49 PM May 23, 2024 IST | Shyam Nandan
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Vastu Shastra: सनातन संस्कृति में चार (4) मुख्य दिशाएं और छह (6) उप-दिशाएं मिलाकर कुल 10 दिशाएं होती हैं। ये दसों दिशाएं हैं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, पूर्व-उत्तर, दक्षिण-पूर्व, पश्चिम-उत्तर, दक्षिण-पश्चिम, उर्ध्व (ऊपर) और अधो (नीचे)। वहीं, वास्तु शास्त्र में केवल आठ (8) दिशाएं होती है, चार मुख्य दिशाओं सहित चार उप-दिशाएं। इसमें उर्ध्व (ऊपर) और अधो (नीचे) को दिशा नहीं माना गया है। आइए जानते हैं, वास्तु शास्त्र के 8 दिशाओं के नाम, उपनाम, उनके स्वामी और महत्व क्या हैं?

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मुख्य दिशाएं, महत्व और उनके स्वामी

पूर्व दिशा: वास्तु शास्त्र के अनुसार, इस दिशा के स्वामी इंद्र और अग्नि हैं। ग्रहों में सूर्य को इसका प्रतिनिधत्व प्राप्त है। स्वास्थ्य, आध्यात्मिकता और सकारात्मकता के लिए इस दिशा को अच्छा माना जाता है।

पश्चिम दिशा: इस दिशा को प्रेम, संबंध और सौंदर्य के लिए बढ़िया माना गया है। जल के देवता वरुण जहां इसके स्वामी हैं, वहीं शुक्र इस दिशा के प्रतिनिधि ग्रह हैं।

उत्तर दिशा: इस दिशा का प्रतिनिधित्व बुध ग्रह के पास है, जबकि इसके स्वामी भगवान कुबेर हैं। धन, बुद्धि और व्यवसाय के लिए यह दिशा उत्तम मानी जाती है।

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दक्षिण दिशा: इस दिशा का प्रतिनिधित्व मंगल ग्रह को प्राप्त है, जबकि इसके स्वामी यम हैं। यह दिशा शक्ति, साहस और नेतृत्व के लिए शुभ माना गया है। वास्तु शास्त्र में इस दिशा को मृत्यु भाग भी कहा गया है, जो बहुत शुभ नहीं माना जाता है।

उप-दिशाएं, उनके स्वामी और प्रभाव

वास्तु शास्त्र में उप-दिशाएं भी चार मानी गई हैं, लेकिन इस शास्त्र में उप-दिशाओं को दिशा न मानकर कोण कहा जाता है। ये हैं: ईशान, अग्नि, नैऋत्य और वायव्य।

ईशान कोण: इस कोण को समृद्धि, ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उत्तम बताया गया है। बृहस्पति प्रतिनिधि ग्रह और भगवान शिव इसके स्वामी हैं।

अग्नि कोण: परिवर्तन, रहस्य और शक्ति इस कोण के प्रमुख प्रभाव हैं। देवी कलिका यानी काली इसकी स्वामिनी हैं और राहु इसके प्रतिनिध ग्रह हैं।

नैऋत्य कोण: वास्तु शास्त्र के अनुसार, यह दिशा यानी कोण बहुत शुभ नहीं होता है। ऋण, बाधाएं और नकारात्मकता इस कोण के प्रभाव हैं। केतु इस दिशा के प्रतिनिध ग्रह हैं।

वायव्य कोण: इस कोण प्रतिनिधत्व शनि ग्रह करते हैं, जबकि वायुदेव को इसका स्वामित्व प्राप्त है। यात्रा, व्यापार और संचार साधनों के लिए इस कोण को बढ़िया माना गया है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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ReligionVastu DoshVastu Shastra
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