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Chhath Puja 2024: नहाय-खाय से छठ पर्व का शुभारंभ आज, जानें क्या है 'कदुआ-भात'?

Chhath Puja 2024: चार दिवसीय महापर्व छठ की विधिवत शुरुआत आज मंगलवार 5 नवंबर, 2024 से हो चुकी है। इस दिन छठ का व्रत रखने वाले व्रती 'नहाय-खाय' नियम से इसका शुभारंभ करते हैं। आइए जानते हैं, नहाय-खाय क्या है और इससे जुड़ा 'कदुआ-भात' क्या है?
10:48 AM Nov 05, 2024 IST | Shyam Nandan
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Chhath Puja 2024: बिहार, यूपी और झारखंड में विशेष तौर पर मनाए जाने वाले महापर्व छठ की विधिवत शुरुआत आज मंगलवार 5 नवंबर, 2024 से हो चुकी है। यह पर्व भगवान सूर्य की उपासना को समर्पित है, जो एक चार दिवसीय विशेष त्योहार है। आज इसकी शुरुआत नहाय खाय की रस्म से हो रही है। आइए जानते है, आज नहाय-खाय की रस्म पर 'कदुआ-भात' की परंपरा क्या है?

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नहाय-खाय क्या है?

सनातन पंचांग के अनुसार, इस बार चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत 5 नवंबर से हो रही है। इस दिन व्रत रखने वाले यानी व्रती दोपहर में स्नान करने के बाद कुल देवी-देवता और सूर्य की पूजा के बाद भोजन ग्रहण करते हैं। यहां ‘नहाय’ का अर्थ है नहाना और ‘खाय’ का अर्थ है ‘खाना’। यहां पढ़ने में यह रस्म जितना आसान लगता है, उतना है कि नहीं क्योंकि आज पूरे दिन में एक ही बार खाना है और इसके बाद केवल सूर्योदय के बाद या रात में भोजन करना होता है। ब्रेकफास्ट या नाश्ते की इसमें कोई जगह नहीं है और इसमें लहसुन-प्याज और अन्य तामसिक पदार्थों का सेवन वर्जित है। वास्तव में, नहाय-खाय का नियम शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है, जिससे व्रती अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं।

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कदुआ-भात क्या है?

नहाय-खाय के दिन चाहे जितने विशेष व्यंजन बन जाएं, इस दिन लौकी की सब्जी और चावल जरूर खाई जाती है। बिहार और पूर्वी यूपी में इसे लौकी को कदुआ और उबले चावल को भात कहते हैं। नहाय-खाय के दिन भोजन में लौकी की सब्जी और चावल अनिवार्य रूप से शामिल करने के कारण इस रस्म को ‘कदुआ-भात’ भी कहते हैं। अमीर हो गरीब, सभी को एक-समान रूप से इस नियम का पालन करना जरूरी है। इस दिन लौकी की सब्जी और चावल के साथ चने की दाल भी खाई जाती है।

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चार दिनों तक चलेगा महापर्व

छठ पूजा के मौके पर षष्ठी तिथि की शाम में कोसी भरने की परंपरा है।

छठ पूजा की शुरुआत आज जिस नहाय-खाय से हो रहीहै। आज व्रती शुद्धता और पवित्रता का पालन करते हुए लौकी की सब्जी, चने की दाल और भात का सेवन कर निर्जला उपवास की शुरुआत करेंगी। इसके बाद कल यानी 6 नवंबर तारीख को खरना पूजन, 7 नवंबर को शाम में सूर्य अर्घ्य और 8 नवंबर को प्रातःकालीन अर्घ्य के बाद पारण होगा। इसके साथ इस महापर्व का समापन होगा। 7 नवंबर को शाम में सूर्य अर्घ्य देने के बाद ‘कोसी पूजन’ भी छठ पूजा की परंपरा संपन्न की जाती है। इसे कोसी भरना या कुसिया पूजन भी कहते हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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