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Chhote Naga Baba: महाकुंभ में छोटे नागा साधुओं से आशीर्वाद के लिए लगा तांता, बाल संन्यासियों को देख रो पड़े श्रद्धालु

Chhote Naga Baba: प्रयागराज महाकुंभ में बड़ी संख्या में न केवल नए पुरुष नागा संन्यासी बल्कि छोटे बच्चे भी संन्यासी बनाए जा रहे हैं। 29 जनवरी, 2025 को दूसरे अमृत स्नान के दिन इन्हें नागा संन्यासी का पूर्ण दर्जा दिया जाएगा। जानिए छोटे नागाओं की जीवनी और नागा संन्यासी का पूर्ण दर्जा पाने की प्रक्रिया।
07:08 PM Jan 23, 2025 IST | Shyam Nandan
chhote naga baba  महाकुंभ में छोटे नागा साधुओं से आशीर्वाद के लिए लगा तांता  बाल संन्यासियों को देख रो पड़े श्रद्धालु

दीपक दुबे, प्रयागराज।

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Chhote Naga Baba: प्रयागराज के महाकुंभ में बड़ी संख्या में न केवल नए पुरुष नागा संन्यासी बल्कि नई महिलाएं भी नागा महिला संन्यासी बन रहीं हैं। केवल इतना ही नहीं यहां छोटे बच्चे भी संन्यासी बनाए जा रहे हैं। चाहे जूना अखाड़ा हो या श्रीपंच दशनाम आवाहन अखाड़ा, यहां अलग अलग छोटे नागा संन्यासी बनाए जा रहे हैं। महाकुंभ प्रयागराज में इन छोटे नागा बाबाओं में से किसी की उम्र 6, तो किसी की 9, कोई 10 तो कोई 12 साल के, लेकिन ये सभी 20 साल से कम उम्र के हैं।

मौनी अमावस्या के दिन दी जाएगी दीक्षा

ये छोटे संन्यासी बाबा अलग-अलग राज्यों से बड़ी कम उम्र में संन्यास की दीक्षा ले चुके हैं और अब पूर्ण रूप से नागा संन्यासी बनाए जाएंगे। आने वाली 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के शुभ मौके पर दूसरे अमृत स्नान के दौरान इन्हें विधिवत नागा संन्यासी की दीक्षा दी जाएगी।

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बाल संन्यासियों को देख रो पड़े श्रद्धालु

प्रयागराज के इस महाकुंभ में छोटे नागा बाबाओं ने अपनी उपस्थिति से न केवल भक्तों को आश्चर्यचकित किया है, बल्कि उन्हें एक गहरा संदेश भी दिया है– आस्था, समर्पण और वैराग्य की शक्ति का, जो बड़ा ही अद्भुत और अकल्पनीय है। इन बाल संन्यासियों के लिए के दर्शन और आशीर्वाद के लिए महाकुंभ में लोगों का तांता लगा हुआ है। इन बाल नागाओं को देखकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो रहे हैं, आशीर्वाद लेने के बाद वे रो रहे हैं। लेकिन ये आंसू श्रद्धा, विस्मय या दुख का है, यह कहना मुश्किल है।

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छिड़ गई है ये नई चर्चा

महाकुंभ में इन बाल साधुओं की उपस्थिति ने एक नई बाल वैराग्य की चर्चा छेड़ दी है। लोग यह जानने को उत्सुक हैं कि इतनी कम उम्र में बच्चे कैसे सांसारिक सुखों को त्यागकर वैराग्य का मार्ग अपना लेते हैं। यह एक ऐसा प्रश्न है, जो हमें भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की गहराई में ले जाता है। इन बच्चों की कहानियां हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि जीवन का असली उद्देश्य क्या है और खुशी का सच्चा मार्ग क्या है?

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दर्शन के लिए लगा है तांता

चाहे बूढ़े हों या बुजुर्ग, महिलाएं, युवा या अधेड़ उम्र के लोग, सभी वर्ग और उम्र के लोग ऐसे बाल संन्यासियों का दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। जहां इन बाल संन्यासियों के द्वारा आशीर्वाद दिया जाता है, आशीर्वाद के तौर पर भस्म, चंदन का टीका लगाया जाता है। यह डमरू बजाते, हाथ में शरीर में भस्म लपेटे, रुद्राक्ष की मालाएं पहने हर हर महादेव, हर हर गंगे का उद्घोष करते हुए हाथ में तलवार लेकर आशीर्वाद देते हुए नजर आ रहे हैं।

ITI पास हैं छोटे बाबा शिवानंद

एक छोटे बाबा शिवानंद, जिनकी उम्र बीस साल की है, वे नासिक से प्रयागराज महाकुंभ पहुंचे हैं। उन्होंने ने आठ साल की उम्र में वैराग्य की ओर रुख किया था। हालांकि वे ITI पास हैं, ऐसा वे दावा करते हैं। वे कहते हैं, 'जब हमने अपना अपने परिवार का पिंडदान कर दिया, तो अब किस बात का मोह और माया, और क्या रिश्ता? ईश्वर में लीन होना ही सबसे बड़ी तपस्या और साधना है। अलग अलग प्रकार के मंत्र, धर्मग्रन्थ पढ़ना, कैसे सनातन धर्म को विश्व भर देश भर में प्रचारित किया जाए, इसके लिए कार्य करेंगे।' ये बताते हैं कि इनके परिवार में सभी हैं, इनका सांसारिक जीवन से मोह उठ गया, इसलिए संन्यासी बन गए। इनका कहना है कि नागा संन्यासी का कर्तव्य है धर्म की रक्षा करना, अस्त्र-शस्त्र दोनों में निपुण होना। इन्होंने सोलह पिंडदान और खुद का सत्रहवा पिंडदान कर दिया है, अब 29 तारीख को यह पूर्ण रूप से नागा संन्यासी बन जाएंगे।

दो साल के थे तो पिता ने गुरु को सौंप दिया

एक और छोटे नागा बाबा हैं, नौ साल के प्रयाग गिरी। वे महाकुंभ में गुजरात से पधारे हैं। वे जब दो साल के थे तो पिता ने इन्हें इनके गुरु महंत राघवेंद्र गिरी जी महाराज को सौंप दिया। पिता लकड़ी के कारखाने में काम करते हैं, जबकि माता का स्वर्गवास हो गया है। इनके माता को जब बच्चा नहीं हो रहा था, तब उन्होंने मन्नत मांगी थी कि बच्चा होगा, तो एक बच्चा गुरु को दान कर देंगे। पिता ने इन्हें दान कर दिया, लेकिन इसके पहले इनके बड़े भाई को दान किया था, लेकिन नेत्रहीन होने की वजह से वह बाद में घर वापस चला गया। वे घर पर यह बात नहीं करते हैं, कहते हैं इनकी दुनिया और परिवार यही है। वे बताते हैं कि पहले मोटर साइकल के टायर से डंडे के जरिए खेला करते थे, इनका फेवरेट क्रिकेटर विराट कोहली है। पहले फिल्में भी देखते थे, अब संन्यास धारण कर माला जपते हुए भगवान शंकर को याद करते हैं।

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केवल 6 साल के हैं छोटे बाबा प्रिंस

यहां एक और छोटे बाबा हैं, प्रिंस। वे मात्र 6 साल के हैं। हालांकि वे पहली क्लास तक पढ़े हुए हैं, लेकिन वे मंत्रों का उच्चारण साफ शब्दों में करते हैं और उनको हनुमान चालीसा कंठस्थ है। वे सांसारिक मोह-माया से दूर गुरु की सेवा कर रहे हैं। इनका कहना है, 'सनातन धर्म का प्रचार करना इनका मुख्य उद्देश्य है। आजकल के बच्चे मोबाइल में रील देखते हैं, वे कार्टून छोड़ अपने धर्म को जानें, अच्छी पढ़ाई करें,, मोबाइल का गलत इस्तेमाल न करें। ये करनाल से आए हुए हैं और डमरू बजाते हैं, इनके हाथ में तलवार है और वे लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। लोग इनका आशीर्वाद लेने यहां आ रहे हैं। वे टीका लगाकर और मिठाई देकर देकर आशीर्वाद देते हैं।

करेंगे शस्त्र और शास्त्र की रक्षा

छोटे नागा ब्रह्मानंद गिरि की उम्र भी बीस साल है और वे हिसार (हरियाणा) से हैं। इन्होंने 8वीं क्लास तक पढ़ाई की है और इन्होंने नौ साल की उम्र में संन्यास धारण किया था। इनका संन्यास दीक्षा हो चुकी है। इनके गुरु बजरंग गिरि जी महाराज हैं। उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता ने स्वेच्छा से उन्हें दान में दिया था। इन्हें परिवार की कभी-कभी याद जरूर आती है, पर अब इनका परिवार घर यही है। यहां यह अपने गुरु के साथ हैं और यह सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना चाहते हैं। वे नागा संन्यासी बन कर शस्त्र और शास्त्र की रक्षा करेंगे। इन्होंने भी पिंडदान कर दिया है।

लोग ऐसे छोटे बाबा का दर्शन करके खुद को धन्य मान रहे हैं, लोग इनका पैर छूते हैं और ये आशीर्वाद देते है। कुछ महिलाएं जो कश्मीर से आई इनके दर्शन कर रोने लगी। इनको देख कुछ श्रद्धालुओं ने कहा, 'हमें अपने बच्चों को सनातन धर्म के बारे में सिखाना-पढ़ाना चाहिए, इनके दर्शन से हम सभी धन्य हो गए।'

बाल संन्यासी कैसे बनाए जाते हैं?

श्री महंत रसराज पुरी ने, बाल संन्यासी कैसे बनाए जाते हैं, इसके बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने बताया कि जैसे पुरुष नागा साधु बनते हैं, उसी तरह इन्हें भी बनाया जाता है। उम्र कम से कम पांच-छह साल से ऊपर होनी चाहिए। परिवार की स्वेच्छा से इन्हें दान दिया जाता है, जिसके बाद ईश्वर की परम कृपा जिन बच्चों पर होती है, वहीं इस संन्यास जीवन में आते हैं, अन्यथा गृहस्थ जीवन में ही रहते है। पंच प्रभु, ध्वजा पताका के नीचे पूजा-पाठ, फिर त्रिवेणी घाट जाकर मुंडन के बाद अपना पिंडदान करते हैं और विशेष अमृत स्नान के दौरान महाकुंभ में इन्हें नागा संन्यासी का पूर्ण दर्जा प्राप्त होता है।

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