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Gau Puja: गोवर्धन पूजा से पहले इस दिन करें गऊ पूजन, भगवान कृष्ण धन और सौभाग्य से भर देंगे झोली!

Gau Puja: ऋग्वेद काल से ही सनातन संस्कृति में गाय को पूजनीय माना गया है। हिन्दू धर्म में गाय के महत्व को देखते हुए कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष में धनतेरस से पहले और दिवाली के बाद गऊ पूजा की दो दिन निर्धारित की गई हैं। आइए जानते हैं, गोवर्धन पूजा से पहले किस दिन गऊ पूजा से धन और समृद्धि में वृद्धि होती है?
01:03 PM Oct 25, 2024 IST | Shyam Nandan
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Gau Puja: सनातन धर्म में गाय के महत्व के बारे में ऋग्वेद और उपनिषदों में कई आख्यान मिलते हैं। आर्य संस्कृति में गाय का क्या महत्व था, इसे ऋग्वेद और अन्य वेदों में इस्तेमाल कुछ शब्दों से समझा जा हैं। वेदों में राजा के लिए ‘गोप’, ग्रहों की चाल के लिए ‘गोचर’, युद्ध के लिए ‘गविष्टि’, मीटिंग के लिए ‘गोष्ठी’, रिसर्च और एनालिसिस के लिए ‘गवेषणा’ आदि महत्वपूर्ण शब्द ‘गो’ (गाय) से बने हैं, जो बताते हैं कि गाय सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। यह आज भी उतना प्रासंगिक है।

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यही कारण है कि हिंदू धर्म में गाय को न केवल 'गो माता' कहा जाता है, बल्कि माता के समान पूजा भी जाता है। हिन्दुओं के लिए केवल गाय ही नहीं गाय के दूध, दही, घी आदि को अमृत तुल्य माना गया है और धार्मिक अनुष्ठानों में इनका उपयोग किया जाता है। हिन्दू धर्म में गाय को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। समुद्र मंथन के समय कामधेनु नाम की गाय निकली थी, जो सभी मनोकामनाएं पूरी करती थी। आइए जानते हैं, गोवर्धन पूजा से पहले किस दिन गऊ पूजा से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और धन और समृद्धि में का वरदान देते हैं?

गोवत्स द्वादशी पर गऊ पूजन

गोवत्स द्वादशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो गाय और बछड़े की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन गाय और बछड़े की पूजा करने से व्यक्ति को धार्मिक पुण्य, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। सनातन पंचांग के अनुसार, गोवत्स द्वादशी, धनतेरस से एक दिन पूर्व मनायी जाती है। गोवत्स द्वादशी के दिन गायों एवं बछड़ों की पूजा की जाती है। इसे बछ बारस पूजा भी कहा जाता है। इस बार यह शुभ दिन 28 अक्टूबर, 2024 को पड़ रहा है।

पूजा के बाद गायों और बछड़ों को गेहूं से निर्मित पदार्थ खाने के लिए दिए जाते हैं। गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में कामधेनु की तरह नंदिनी को एक दिव्य गौ माना जाता है। महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी को वसु बारस के नाम से जाना जाता है और इसे दीपावली का प्रथम दिवस माना गया है।

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गोवत्स द्वादशी पर गऊ पूजा से लाभ

पापों का नाश: मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है।

सुख-समृद्धि: इस दिन की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

धन वृद्धि: गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने से धन में वृद्धि होती है।

स्वास्थ्य लाभ: मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने से व्यक्ति हृष्ट-पुष्ट और निरोग रहता है।

रुके और अटके काम होते हैं पूरे: मान्यता है कि बछ बारस के दिन गाय और बछड़े की पूजा करने से रुके हुए और अटके कामों की बाधाएं दूर होती हैं और वे जल्दी पूरे हो जाते हैं।

गोवत्स द्वादशी की पूजा विधि

गोवत्स द्वादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद गाय और बछड़े को स्नान कराया जाता है। इसके बाद उन्हें फूल, अक्षत, रोली आदि से सजाया जाता है। गाय और बछड़े को रोटी, फल आदि का भोग लगाया जाता है। पूजा के दौरान गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है। बता दें कि जो लोग गोवत्स द्वादशी मनाते हैं, वे दिन में गेहूं तथा दूध से निर्मित किसी भी पदार्थ का सेवन नहीं करते हैं।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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