Geeta Updesh: बेचैन मन को शांत करते हैं गीता के ये 5 उपदेश, तुरंत मिलती है तनाव से मुक्ति!
Geeta Updesh: श्रीमदभगवद्गीता न केवल एक पवित्र ग्रंथ है, बल्कि जीवन जीने का एक अद्वितीय मार्गदर्शक भी है। गीता के उपदेश उन सभी के लिए अमूल्य हैं जो जीवन की कठिनाइयों, संघर्षों और मानसिक अशांति से गुजर रहे हैं। यह भगवान श्रीकृष्ण की अमृतवाणी है, जो व्याकुल मन पर पानी की उन बूंदों की तरह काम करती है, जैसे उबलता और खौलता हुआ दूध पानी से छींट से शांत हो जाता है। गीता पढ़ने वाले साधक और पाठक बताते हैं कि जिन लोगों का मन बेचैन रहता है या मन भटकता रहता है, उनलोगों को गीता तनाव से मुक्ति का मार्ग दिखलाती है। आइए जानते हैं, भगवान श्रीकृष्ण के दिए गीता के 5 वैसे उपदेशों के बारे में जो उलझे मन की गिरहों को सुलझाता है और तनाव से मुक्ति दिलाता है।
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नहीं सताएगा असफलता का डर
श्रीमदभगवद्गीता बताती है कि मनुष्यों को केवल कर्म करने का अधिकार है, फल की इच्छा करने का नहीं। वे कहते हैं कि फल की कामना मत करो और न ही कर्म में आसक्त रहो। इसलिए हमें केवल अपना कर्म करते रहना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। जब हम फल की अपेक्षा नहीं करते हैं, तो असफलता का डर नहीं रहता और हम शांत रह पाते हैं।
बुद्धि-विवेक से करें हर काम
गीता उपदेश के अनुसार, मनुष्य को हर काम बुद्धि और विवेक से करना चाहिए, तभी सफलता संभव है। जीवन में बुद्धि और विवेक की प्राथमिकता से ही सभी काम संभव हैं। वे यह भी कहते हैं कि हमें हमेशा मन को शांत रखना चाहिए और त्याग भाव से कार्य को अंजाम देना चाहिए। वे एक बार फिर कहते हैं कि फल की इच्छा न करते हुए कर्म करने से कर्म में आसक्ति नहीं होती है।
पुरुषार्थ से मिलती है सफलता
गीता में बताया गया है कि भाग्य के भरोसे बैठे रहने वालों को कुछ नहीं मिलता है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा है कि जो मनुष्य कर्म करते हैं, भाग्य ही उनका साथ देता है। वे अपने मनुष्य अपने पुरुषार्थ की वजह से कई गुना लाभ प्राप्त करते हैं। गीत का यह उपदेश यह भी कहता है कि यदि भाग्य कमजोर भी होता है, पुरुषार्थ से पूरी तरह बदला जा सकता है।
भगवान में है भक्ति का समापन
गीता के 18वें अध्याय में बताया गया है कि जब हम सभी धर्मों को छोड़कर केवल भगवान की शरण में जाते हैं तो सभी प्रकार के भय और चिंताएं दूर हो जाती हैं। भगवान कृष्ण संशय से युक्त अर्जुन को आश्वस्त करते हैं कि सभी धर्मों को त्याग कर केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
ऐसे रहें मोह से सावधान
गीता के एक श्लोक में हमें विषयों के मोह से सावधान रहने के लिए कहा गया है। मोह से विषयों में आसक्ति बढ़ती है। यह विषयों में आसक्ति ही तनाव और उलझन का मूल कारण है। इसलिए हमें विषयों से विरक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। गीता का यह उपदेश बताता है कि आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है और कामना से क्रोध पैदा होता है।
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