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होली को लेकर क्या बोले संत प्रेमानंद? रंगपर्व की इनसाइड स्टोरी भी की रिवील

आज देशभर में रंगो की त्योहार मनाया जा रहा है। इस दौरान सभी लोग एक दूसरे को रंग लगाकर खुशियां मनाते हैं। क्या आप जानते हैं कि होली खेलने का सही तरीका क्या है और होलिका दहन का क्या मतलब है?
09:54 AM Mar 14, 2025 IST | Shabnaz
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Premananda Ji Maharaj on Holi 2025: होली का पर्व हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस साल होली का पर्व 14 मार्च यानी आज मनाया जा रहा है। होली के खास मौके पर लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं, इस दौरान घर में खूब सारे पकवान बनते हैं। इस दिन सभी नाराजगियों को भूलकर लोग एक दूसरे के साथ होली खेलते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस रंगपर्व की इनसाइड स्टोरी क्या है? होलिका दहन क्यों होता है और उसके बाद ही होली क्यों खेली जाती है? इन सारे सवालों के जवाब संत प्रेमानंद जी महाराज ने दिए हैं।

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होलिका कौन थी?

होली खेलने से पहले होलिका दहन किया जाता है, इसके पीछे एक धार्मिक कहानी है। जिसके बारे में संत प्रेमानंद जी महाराज ने विस्तार से बताया है। होलिका हिरण्यकश्यप की बहन और प्रह्लाद की बुआ थी। महाराज जी इस पर कहते हैं कि हम सभी से यह प्रार्थना करेंगे कि होली का त्योहार प्रह्लाद जी द्वारा बनाया गया त्योहार है, उसको उसी के तरीके से खेला जाए।

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होलिका दहन की कहानी

प्रह्लाद जी को हिरण्यकश्यप मारना चाहते थे, लेकिन किसी तरह से वह उनको मार नहीं पाए। तभी हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने अपने भाई को उदास देखा, तो पूछा कि भाई उदास क्यों हो? हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद जी को मारने की बात कही। इस पर होलिका ने कहा कि आज मर जाएंगे। उसके लिए एक बड़ा सा लकड़ी का ढेर लगाया जाए, मैं उनको लेकर उस पर बैठ जाऊंगी। चूंकि होलिका को आग से वरदान था कि वह उसमें जल नहीं सकती थी, इसलिए होलिका ने सोचा कि उस आग में बच जाएगी और प्रह्लाद जी जल जाएंगे।

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हवा का बदला रुख

लकड़ी का बड़ा सा ढेर लगाया गया, जिसमें होलिका प्रह्लाद जी को लेकर बैठ गई। इस दौरान होलिका ने शीतल पट ओढ़ रखा था। इसी बीच भगवान ने ऐसा चमत्कार किया कि हवा से शीतल पट प्रह्लाद जी के ऊपर आ गया और होलिका उसी आग में जलकर राख हो गई। वहीं, शीतल पट की वजह से प्रह्लाद जी सुरक्षित रहे।

होली की शुरुआत

होलिका के जलने के बाद जब प्रह्लाद जी के पक्ष के लोग वहां पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि प्रह्लाद जी वहां बैठे हुए हैं। इसके बाद उन सभी लोगों ने धूमधाम से होली की पूजा की। सभी ने एक दूसरे को रंग लगाया और कीर्तन करने लगे। इस दौरान उन्होंने पद गाए कि भगवान की भक्ति से प्रह्लाद जी का जीवन बच गया। यही से इस रंगों के उत्सव की शुरुआत हुई।

दो पक्ष कौन से?

प्रेमानंद महाराज ने उन लोगों के बारे में भी बात की जो रंगों के त्योहार पर कीचड़ से होली खेलते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग शराब पीकर गंदी हरकतें करते हैं, एक दूसरे के चेहरे पर कालिख पोत देते हैं या नालियों में खेलते है, यह सब हिरण्यकश्यप पक्ष के लोग हैं। उन्होंने कहा कि अब उन लोगों को भी उत्सव मनाना है, तो वह कैसे मनाएंगे? इसके लिए लोग नाली, गोबर और कीचढ़ से होली मनाते हैं, जो हिरण्यकश्यप पक्ष के लोग होते हैं।

वहीं, जो लोग एक दूसरे पर गुलाल लगाकर सादगी से होली मनाते हैं, वह प्रह्लाद जी के पक्ष के होते हैं। इसलिए ही इस त्योहार पर सादगी से रंग लगाकर होली खेलने की सलाह दी जाती है।

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