whatsapp
For the best experience, open
https://mhindi.news24online.com
on your mobile browser.
Advertisement

Jagadguru Shri Kripalu Maharaj: गीता की बस एक ये सीख अपना ली, तो भगवत्कृपा हीं नहीं भगवान भी मिल जाएंगे!

Jagadguru Shri Kripalu Maharaj: जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज के अनुसार, भगवान सर्वव्यापी होते हुए भी उनकी प्राप्ति के लिए एक शर्त आवश्यक है, जो सभी धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है। यदि यह शर्त न होती, तो सभी जीव को अपने आप ही भगवत्प्राप्ति हो जाती। आइए जानते हैं, भगवान को पाने की यह शर्त क्या है?
08:53 PM Feb 05, 2025 IST | Shyam Nandan
jagadguru shri kripalu maharaj  गीता की बस एक ये सीख अपना ली  तो भगवत्कृपा हीं नहीं भगवान भी मिल जाएंगे

Jagadguru Shri Kripalu Maharaj: कृष्ण भक्ति संप्रदाय में जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज आधुनिक भारत के महान संत हुए हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि जब वे राधा-कृष्ण की भक्ति में भाव-विभोर होते थे, तो मौन हो जाते थे, उनपर मूर्छा छा जाती थी। ऐसा लगता था कि उनके तन से बिजलियां कौंध रही हो, वे दिव्यमय हो जाते थे। वे सूरदास, मीरा बाई की परंपरा के संत हैं, जिन्होंने कृष्ण भक्ति को आम जनता से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है। वर्तमान में देवकीनंदन महाराज, प्रेमानन्द महाराज, अनिरुद्धाचार्य महाराज आदि इसी कृष्ण भक्ति परंपरा के संत और कथावाचक हैं।

Advertisement

जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज अपने उपदेशों में कहते थे कि केवल सनातन धर्म के ग्रंथों में ही नहीं ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के ग्रंथों में यह चर्चा मिलती है कि भगवान को प्राप्त करने में कोई न कोई शर्त जरूर होती है? यदि यह शर्त नहीं होती तो सभी जीव भगवत्प्राप्ति कर लेते। भगवान सबके अंदर बैठे हैं, फिर भी भगवान का लाभ नहीं मिल रहा है। भगवान हर जगह मौजूद हैं यानी सर्व-व्यापी हैं, फिर भी भगवान का लाभ नहीं मिल रहा है, इसके पीछे कुछ तो कारण है, कोई तो बात है, कुछ तो शर्त है?

ये भी पढ़ें: Vastu Shastra: सावधान! कहीं आपने भी तो नहीं रखा है इस दिशा में फिश एक्वेरियम, कंगाल होते नहीं लगेगी देर!

Advertisement

जाकी रही भावना जैसी...

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं कि 'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखी तैसी', इसका अर्थ यही है कि आपने जो देखना चाहा, आपको वही दिखा। आपकी ही भावना का फल मिला, भगवान का फल नहीं मिला। भावना तो मन से होती है और मन माया के अधीन है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है: 'दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया', मतलब यह कि यह माया अलौकिक है, अति अद्भुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है यानी इससे पार पाना कठिन है।

Advertisement

बस ये शर्त दिलाएगी भगवत्कृपा

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहते हैं, 'मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते', इस माया से पार पाना बेहद मुश्किल तो है, लेकिन असंभव नहीं है। जो व्यक्ति मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे इसे बड़ी सरलता से पार कर लेते हैं। वे अर्जुन के कहते हैं कि जो मेरी 'प्रपत्ति' में आ जाएगा, वही मुझमें 'शरणागत' होगा। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं कि मस्तक और शरीर को गुरु और भगवान के चरण में गिर देना प्रपत्ति नहीं है, शरणागत होना नहीं है, यह प्रणाम करना हुआ। यह नकली शरणागति है, क्योंकि इसमें शरीर को गिराया, मन को नहीं गिराया, बुद्धि को नहीं गिराया, आत्मा को अर्पित नहीं किया।

मन-बुद्धि की शरणागति हो...

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं कि जब मन और बुद्धि समेत आत्मा की शरणागति होती हैं, तो वह 'प्रपद्यन्ते' है, यही 'पूर्ण प्रपत्ति' है, 'पूर्ण प्रकृष्टम' यानी सबसे बड़ा काम है। लेकिन यहां भगवान श्रीकृष्ण ने एक और शर्त लगा रखी है कि 'केवल मेरी शरण' में आने से शरणागति होगी, यानी 'तुम्हारा मन मुझमें ही रहे', तब तुम्हें भगवत्कृपा ही नहीं बल्कि मेरी कृपा भी प्राप्त होगी। जो इस शर्त को पूरा करते हैं, भगवान उनके साथ हो जाते हैं।

ये भी पढ़ें: इन 3 तारीखों में जन्मे लोगों पर रहती है शुक्र ग्रह और मां लक्ष्मी की खास कृपा, जीते हैं ऐशो-आराम की जिंदगी!

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

Open in App Tags :
Advertisement
tlbr_img1 दुनिया tlbr_img2 ट्रेंडिंग tlbr_img3 मनोरंजन tlbr_img4 वीडियो