Kalashtami Vrat Katha: कालाष्टमी के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, भय-क्रोध और हर परेशानी का होगा अंत!
Kalashtami Vrat Katha: काल भैरव को भगवान शिव का पांचवां अवतार माना जाता है, जिनकी पूजा कालाष्टमी के दिन करनी शुभ होती है। ये दिन भगवान काल भैरव को समर्पित है। काल भैरव की पूजा करने से जीवन में चल रही सभी समस्याओं का अंत होता है। इसके अलावा साधक को भय, क्रोध और आसपास मौजूद बुराइयों से छुटकारा मिलता है। कालाष्टमी का व्रत हर साल आश्विन माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रखा जाता है।
हालांकि ये व्रत कालाष्टमी की कथा के बिना अधूरा होता है। जब तक साधक सच्चे मन से इस दिन कालाष्टमी व्रत की कथा को सुनता या पढ़ता नहीं है, तब तक व्रत को पूर्ण नहीं माना जाता है। इसी वजह से आज हम आपको शास्त्रों में बताई गई कालाष्टमी व्रत की सही कथा के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं, जिसे पढ़ने या सुनने मात्र से आपको भय-क्रोध और जीवन की हर परेशानी से छुटकारा मिल सकता है।
सितंबर में कालाष्टमी का व्रत कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार 24 सितंबर 2024 को दोपहर 12:38 मिनट से आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ हो रहा है, जिसका समापन अगले दिन 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर होगा। ऐसे में कालाष्टमी का व्रत 24 सितंबर 2024 को रखा जाएगा। इस दिन काल भैरव की पूजा प्रात: काल में 04:04 मिनट से लेकर 05:32 तक केवल ब्रह्म मुहूर्त में ही की जा सकती है। इसके बाद पूजा का कोई भी शुभ मुहूर्त नहीं है।
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कालाष्टमी व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा, श्री हरि विष्णु और शिव जी में से सबसे श्रेष्ठ कौन है, इस बात को लेकर तीनों देवताों के बीच एक दिन लड़ाई चल रही थी। देवताओं की लड़ाई को देखकर अन्य देव परेशान हो गए और उन्होंने एक बैठक बुलाई। भगवान ब्रह्मा, विष्णु, और महेश की मौजूदगी में सभी देवताओं से पूछा गया कि उन्हें तीनों देवताओं में से सबसे श्रेष्ठ कौन लगता है? सभी देवताओं ने अपने विचार व्यक्त करे और एक उत्तर मिला, जिसका समर्थन भगवान शिव और विष्णु जी ने तो किया, लेकिन भगवान ब्रह्मा ने उसे मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने भोलेनाथ को अपशब्द कहा, जिसके बाद महादेव को क्रोध आ गया।
कहा जाता है कि महादेव के क्रोध से उनके स्वरूप काल भैरव का जन्म हुआ। काल भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा जी के पांच मुखों में से एक मुख को काट दिया, जिसके बाद उनके ऊपर ब्रह्महत्या का पाप चढ़ गया। जब काल भैरव जी का क्रोध शांत हुआ, तो उन्होंने ब्रह्मा जी से माफी मांगी, जिसके बाद महादेव अपने असली अवतार में वापस आ गए। इसी के बाद से काल भैरव की पूजा का विधान शुरू हो गया।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, काल भैरव को समर्पित कालाष्टमी का व्रत रखने से साधक को भय और क्रोध से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा जीवन में चल रही परेशानियों का भी अंत होने लगता है।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।