होमखेलवीडियोधर्म मनोरंजन..गैजेट्सदेश
प्रदेश | हिमाचलहरियाणाराजस्थानमुंबईमध्य प्रदेशबिहारदिल्लीपंजाबझारखंडछत्तीसगढ़गुजरातउत्तर प्रदेश / उत्तराखंड
ज्योतिषऑटोट्रेंडिंगदुनियावेब स्टोरीजबिजनेसहेल्थExplainerFact CheckOpinionनॉलेजनौकरीभारत एक सोचलाइफस्टाइलशिक्षासाइंस
Advertisement

Akshaya Navami 2024: शंकराचार्य के अनुरोध पर मां लक्ष्मी ने की स्वर्ण वर्षा, जानें अक्षय फल देनेवाली आंवला नवमी की असली कथा!

Akshaya Navami ki Asli Katha: हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाने वाला हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार आंवला नवमी आज रविवार 10 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस मौके पर आइए जानते हैं, अक्षय फल देनेवाली आंवला नवमी की असली कथा।
08:27 AM Nov 10, 2024 IST | Shyam Nandan
Advertisement

Akshaya Navami ki Asli Katha: सौभाग्य, समृद्धि और स्वास्थ्य की रक्षा करने वाला आंवला नवमी या अक्षय नवमी पर्व हर साल हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यह फलदायी पर्व इस बार रविवार 10 नवंबर, 2024 को यानी आज पड़ रहा है। आज के दिन भगवान विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व है।

Advertisement

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और आंवला नवमी यानी अक्षय नवमी की कथा सुनने से से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। आज के दिन का एक विशेष महत्व यह है कि आज की तिथि यानी कार्तिक शुक्ल नवमी को 'सतयुग' की  शुभारंभ हुआ था। आइए जानते हैं, सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली अक्षय नवमी की असली कथा।

आंवला नवमी की पौराणिक कथा

एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहु ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जाएगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा कि उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए।

बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुख हुआ और राजा-रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए। राजा-रानी आंवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। जब भूखे प्यासे रहते हुए 7 दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैंने इसका प्रण और सत नहीं रखा तो इनका विश्वास चला जाएगा। इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए। सुबह राजा-रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।

Advertisement

राजा, रानी से कहने लगे, “हे रानी! ‘सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए'। आओ नहा धोकर आंवले दान करें और भोजन करें।“ राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे। उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहु बेटे के बुरे दिन आ गए।

राज्य दुश्मनों ने छीन लिया, दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया। बेटे-बहु सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते है, सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना। एक दिन बहु ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा। आज वे लोग न जाने कहां होगे?

यह सोचकर बहु को रोना आने लगा और आंसू टपक-टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा, “तू क्यों रो रही है?” बहु ने बताया, “आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था, इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए।”

तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे-बहु भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे। हे भगवान, 'जैसा राजा रानी का सत रखा, वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुखी रखना'। यही इस कहानी का अर्थ है।

ये भी पढ़ें: शुभ काम और यात्रा पर निकलने से पहले जरूर देखें पंचांग की ये 3 चीजें, वरना बिगड़ जाता है बनता काम!

आंवला नवमी और शंकराचार्य की कथा

एक कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली, “महात्मन! मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।”

शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्ररूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे।

मां लक्ष्मी ने दिव्य दर्शन दिए इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा, “हे शंकराचार्य! इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।”

शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा, “हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है।” शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में सोने (स्वर्ण) के आंवलों की वर्षा कर दी।

ये भी पढ़ें: Numerology: इन 4 तारीखों में जन्मे व्यक्तियों में होते हैं राजसी गुण, भगवान सूर्य होते हैं मेहरबान!

आंवला नवमी व्रत की कथा

भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी में एक निस्संतान व्यक्ति रहता था। वह संतान प्राप्ति के लिए कई उपाय कर चुका था, लेकिन उसके घर में किलकारी नहीं गूंजी। एक दिन उसकी पत्नी को पड़ोसी महिला ने एक उपाय बताया कि एक बालक की भैरव को बली चढ़ा दो, इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी।

जब इस बात को उसने अपने पति से बताया तो उसके पति ने इससे साफ इंकार कर दिया। इसके बाद भी उस महिला ने भैरव को एक बच्चे की बली देने का निर्णय लिया। एक दिन मौका पाकर उस महिला ने एक कन्या को कुए में धकेल दिया और भैरव के नाम पर बली दे दी।

एक कन्या को कुए में धकेल उस महिला पर हत्या का पाप चढ़ गया और उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया। यह बात जब उसके पति को पता चली, तो उसने अपनी पत्नी से कहा, “गोवध, ब्राह्मण वध और बाल वध, उसमें भी बालिका वध करना महाअधर्म है। इसलिए, तुम्हारे शरीर में कोढ़ हो गया है। तुम्हें इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए माता गंगा की शरण में जाना होगा।”

अपने पति के कहने पर वह महिला मां गंगा की शरण में गई। इसके बाद गंगा मईया ने उसे कहा, “तुम कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवले के पेड़ का पूजन और आंवले का सेवन करना।” इसके बाद महिला ने माँ गंगा के कहे अनुसार ही सबकुछ किया, जिसके परिणाम स्वरूप वह कोढ़ से मुक्त हो गई। साथ ही ये व्रत करने से कुछ दिनों बाद ही उसे संतान प्राप्ति भी हुई। तभी से लेकर लोग इस उपवास को परंपरा अनुसार करते आ रहे हैं। जिसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है।

ये भी पढ़ें: इन 3 तारीखों में जन्मे लोगों पर रहती है शुक्र ग्रह और मां लक्ष्मी की खास कृपा, जीते हैं ऐशो-आराम की जिंदगी!

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

Open in App
Advertisement
Tags :
Akshaya NavamiParva Tyohar
Advertisement
Advertisement