होमखेलवीडियोधर्म
मनोरंजन.. | मनोरंजन
टेकदेश
प्रदेश | पंजाबहिमाचलहरियाणाराजस्थानमुंबईमध्य प्रदेशबिहारउत्तर प्रदेश / उत्तराखंडगुजरातछत्तीसगढ़दिल्लीझारखंड
धर्म/ज्योतिषऑटोट्रेंडिंगदुनियावेब स्टोरीजबिजनेसहेल्थएक्सप्लेनरफैक्ट चेक ओपिनियननॉलेजनौकरीभारत एक सोचलाइफस्टाइलशिक्षासाइंस
Advertisement

Kurma Jayanti 2024: कच्छप अवतार में जब भगवान विष्णु हुए जख्मी, गंभीर रूप से छिल गई थी पीठ

Kurma Jayanti 2024: जगत कल्याण के लिए कूर्म अवतार जगतपालक विष्णु का दूसरा अवतार है, जिसकी कथा क्षीर सागर के मंथन और 14 दिव्य रत्नों की प्राप्ति से जुड़ी है। आइए जानते हैं, इस महत्वपूर्ण अवतार की जयंती मई 2024 में कब पड़ रही है, भगवान विष्णु किस प्रकार जख्मी हो गए थे और उनके अवतार लेने का वास्तविक कारण क्या था?
01:51 PM May 16, 2024 IST | Shyam Nandan
कूर्मावतार भगवान विष्णु का दूसरा अवतार है।
Advertisement

Kurma Jayanti 2024: सागर मंथन की कथा अपने साथ इतनी उपकथाओं को समेटे हुए है कि एक विशाल ग्रंथ लिखा जा सकता है। भगवान विष्णु के कच्छप या कूर्म अवतार की कथा सागर मंथन के सफल प्रयोजन से जुड़ी है। इसलिए भगवान विष्णु के दशावतारों में यह दूसरा अवतार बहुत महत्वपूर्ण था।

Advertisement

इस तिथि को हुआ था कूर्म अवतार

कच्छप या कूर्म को बोलचाल की भाषा में 'कछुआ' कहते हैं। भगवान विष्णु ने अपना यह अवतार वैशाख महीने की पूर्णिमा तिथि को लिया था। यही कारण है कि इस तिथि को कूर्म जयंती के रूप में मनाया जाता है। साल 2024 में यह तिथि 23 मई को पड़ रही है। भक्त और साधक इस दिन जगतपालक भगवान विष्णु की विशेष आराधना और पूजा करते हैं।

ऐसे सफल हुआ सागर मंथन

क्षीर सागर से 14 दिव्य रत्नों को पाने के लिए देवों और दानवों ने मिलकर इस सागर का मंथन किया था। इसमें मंदराचल पर्वत को 'मथानी' और नागराज वासुकि 'मथानी की रस्सी' बने थे। मंदराचल पर्वत का भार इतना अधिक था कि वह बार-बार सागर के रसातल यानी गर्भ में समा जाती थी। कई दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा और सागर मंथन असफल होता लग रहा था, तब देवों ने भगवान विष्णु से सहायता की विनती की।

तब भक्त-वत्सल भगवान विष्णु ने एक विशालकाय कछुए, जिसका कोई ओर-छोर नहीं था, का रूप धारण कर अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को थाम कर सहारा दिया, ताकि वह समुद्र में न समा पाए। फिर इस तरह सागर मंथन संपन्न हुआ और 14 दिव्य रत्नों की प्राप्ति हुई। अमृत सहित देवी लक्ष्मी भी इसी मंथन से उत्पन्न हुई थीं, जिसका वरण भगवान विष्णु ने किया।

Advertisement

जब भगवान विष्णु हुए जख्मी

कहते हैं, मंदराचल पर्वत के अत्यधिक भार और बार-बार उसके घूर्णन और तेज घर्षण से कच्छपरुपी भगवान विष्णु का पृष्ठ भाग यानी पीठ बुरी तरह से छिल गई थी। अपने इस जख्म से विष्णुजी बहुत लंबे समय तक पीड़ित रहे थे। इसकी चिकित्सा सागर मंथन से निकले औषधियों के अधिपति भगवान धन्वन्तरि, जो देवताओं के चिकित्सक बने, ने की थी।

ये भी पढ़ें: Ghode ki Naal ke Fayde: घोड़े की नाल से जुड़े 5 वास्तु टिप्स बनाएंगे धनवान

कूर्म अवतार का वास्तविक कारण

यदि भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार न लिया होता, तो देवताओं का अस्तित्व मिट जाता। बता दें, सागर मंथन से प्राप्त अमृत पीकर ही देवता अमर हुए थे, तभी दैत्यों को परास्त कर स्वर्ग को दोबारा हासिल कर पाए थे। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार लेने का वास्तविक कारण यही था।

ये भी पढ़ें: Money Plant Vastu: बेडरूम में मनी प्लांट लगाते समय न करें 5 गलतियां, समझें इसके पीले पत्तों के संकेत

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

Open in App
Advertisement
Tags :
Lord VishnuReligionVishnu incarnation
Advertisement
Advertisement