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निर्जला एकादशी कब है? सभी एकादशी में सबसे मुश्‍क‍िल व्रत, जानें शुभ तिथि, पूजा विधि और महत्व

Nirjala Ekadashi 2024: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी सभी एकादशी में सबसे कठिन व्रत माना गया है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता है। तो आज इस खबर में जानेंगे कि इस साल निर्जला एकादशी कब है, शुभ तिथि क्या है, महत्व और पूजा विधि क्या है।
09:01 AM May 22, 2024 IST | Raghvendra Tiwari
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Nirjala Ekadashi 2024: जगत के पालनहार भगवान विष्णु को शीघ्र प्रसन्न करने वाली निर्जला एकादशी सभी एकादशी की तिथियों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह एकादशी व्रत सभी एकादशी व्रत में सबसे कठिन व्रत है। क्योंकि इस एकादशी में बिना पानी पिए निर्जला रहकर व्रत रखा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को है। तो आज इस खबर में जानेंगे कि निर्जला एकादशी की शुभ तिथि क्या है, पारण का समय क्या है। साथ ही निर्जला एकादशी का महत्व क्या है।

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कब है निर्जला एकादशी 2024

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 17 जून को सुबह 4 बजकर 43 मिनट से हो रही है और समाप्ति अगले दिन यानी 18 जून को सुबह 6 बजकर 24 मिनट पर होगी। निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को रखा जाएगा। साथ ही इसका पारण अगले दिन यानी 19 जून को होगा।

निर्जला एकादशी का महत्व

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। साथ ही सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। क्योंकि विष्णु पुराण में निर्जला एकादशी का व्रत बहुत ही खास माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत सबसे पहले भीम ने रखा था। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन बिना कुछ खाए-पिए भगवान विष्णु का व्रत रखा जाता है। जो लोग विधि-विधान से एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें मोक्ष और लंबी आयु की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भीमसेनी एकादशी करने से घर में कभी भी आर्थिक तंगी नहीं होती है। साथ ही मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।

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निर्जला एकादशी पूजा विधि

ज्योतिषियों के अनुसार, निर्जला एकादशी के दिन प्रात काल उठकर स्नान करें। उसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। जल अर्पित करने के बाद मन ही मन जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी माता लक्ष्मी को याद करें। साथ ही घर के मंदिर को अच्छे से साफ-सफाई करें। उसके बाद व्रत का संकल्प लें। बाद में एक लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति का स्थापित करें। मूर्ति स्थापित करने के बाद गंगाजल से स्नान कराएं। भोग लगाएं। बाद में आरती करें। उसके बाद विधि-विधान से पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले फल, पीले फूल, पीले अक्षत और माता लक्ष्मी को चावल की खीर का भोग अर्पित करें।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Nirjala EkadashiPuja Vidhi
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