होमखेलवीडियोधर्म
मनोरंजन.. | मनोरंजन
टेकदेश
प्रदेश | पंजाबहिमाचलहरियाणाराजस्थानमुंबईमध्य प्रदेशबिहारउत्तर प्रदेश / उत्तराखंडगुजरातछत्तीसगढ़दिल्लीझारखंड
धर्म/ज्योतिषऑटोट्रेंडिंगदुनियावेब स्टोरीजबिजनेसहेल्थएक्सप्लेनरफैक्ट चेक ओपिनियननॉलेजनौकरीभारत एक सोचलाइफस्टाइलशिक्षासाइंस
Advertisement

Papankusha Ekadashi 2024: आज बन रहा है अतिदुर्लभ त्रिस्पृशा एकादशी योग, जानें कथा, पूजा विधि और मंत्र

Papankusha Ekadashi 2024: इस साल पापांकुशा एकादशी व्रत 13 अक्टूबर और 14 अक्टूबर दोनों तारीखों में रखा जाएगा। वहीं, सोमवार 14 अक्टूबर, 2024 को एक बेहद दुर्लभ त्रिस्पृशा योग बनने से इस एकादशी का महत्व और बढ़ गया है। आइए जानते हैं, त्रिस्पृशा एकादशी की कथा, पूजा विधि और मंत्र।
11:30 AM Oct 14, 2024 IST | Shyam Nandan
Advertisement

Papankusha Ekadashi 2024: सनातन पंचांग के अनुसार, इस बार आश्विन माह की शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली पापांकुशा एकादशी दो दिन पड़ रही है, 13 अक्टूबर और 14 अक्टूबर। वहीं, सोमवार 14 अक्टूबर, 2024 को एक बेहद दुर्लभ योग बन रहा है। कहते हैं कि ऐसा योग सदियों में एक-दो बार ही बनता है, जिसे त्रिस्पृशा योग कहते हैं। पद्म पुराण के अनुसार, एकादशी तिथि को बनने वाले इस योग के कारण वह एकादशी व्रत ‘त्रिस्पृशा एकादशी’ भी कहलाती है और इसे करने से एक हजार एकादशी व्रतों का फल मिलता है। आइए जानते हैं, त्रिस्पृशा एकादशी क्या है? साथ ही जानते हैं, कथा, पूजा विधि और मंत्र।

Advertisement

त्रिस्पृशा एकादशी क्या है?

पद्म पुराण के अनुसार, जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी और रात्रि के अंतिम पहर में त्रयोदशी तिथि का संयोग होता है, तो उसे तिथियों का त्रिस्पृशा योग कहते है। इस योग के बनने की पहली और अंतिम शर्त यही है कि एक दिन के सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय के दौरान तीन तीन तिथियों का मेल होना चाहिए। उसमें दशमी तिथि का योग नहीं होता है। तभी वह त्रिस्पृशा योग माना गया है। एकादशी और द्वादशी तिथियों में यह संयोग सर्वोत्तम और बेहद फलदायी माना गया है।

त्रिस्पृशा योग का महत्व

सूर्योदय से कुछ मिनटों पहले एकादशी हो, फिर पूरे दिन द्वादशी रहे और उसके बाद त्रयोदशी तिथि हो तो ये त्रिस्पर्शा द्वादशी कहलाती है, यानी एक ही दिन में तीनों तिथियां आने से ऐसा योग बनता है। ऐसा संयोग अतिदुर्लभ है। इसलिए इस दिन पूजा-पाठ का महत्व बढ़ जाता है। त्रिस्पृशा योग में एकादशी व्रत का उपवास करने से हजार एकादशी और एक हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है। यह व्रत करने वाले पुरुष और स्त्री विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होते हैं।

ये भी पढ़ें: Chhath Puja 2024: इन 9 चीजों के बिना अधूरी रहती है छठ पूजा, 5वां आइटम है बेहद महत्वपूर्ण!

Advertisement

त्रिस्पृशा एकादशी की असली कथा

त्रिस्पृशा या त्रिस्पर्शा एकादशी कथा का वर्णन पद्म पुराण में किया गया है। भगवान विष्णु को समर्पित इस पुराण के अनुसार, स्वयं नारद जी ने इस व्रत के बारे संपूर्ण ज्ञान भगवान महादेव शिव से प्राप्त किया था।

नारद जी बोले, “हे सर्वेश्वर! अब आप विशेष रूप से त्रिस्पृशा नामक व्रत का वर्णन कीजिए, जिसे सुनकर लोग तत्काल कर्मबन्धन से मुक्त हो जाते हैं।"

भगवान शिव ने कहा, “हे विद्वन्‌! पूर्वकाल में सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से सनत्कुमार जी ने व्यास जी के प्रति इस व्रत का वर्णन किया था। यह व्रत सम्पूर्ण पाप राशि का दमन करने वाला और महान्‌ दुखों का विनाशक है। त्रिस्पृशा नामक महान् व्रत सम्पूर्ण कामनाओं का दाता माना गया है। ब्राह्मणों के लिए तो या और भी मोक्षदायक भी है।”

महादेव ने कहा, "हे महामुने! देवाधिदेव भगवान ने मोक्ष-प्राप्ति के लिये इस व्रत की सृष्टि की है। इसलिये इसे वैष्णवी तिथि कहते हैं। इन्द्रियॉ का निग्रह न होने से मन में स्थिरता नहीं आती है । मन की यह अस्थिरता ही मोक्ष में बाधक है।"

उन्होंने कहा, “मुनिश्रेष्ठ! जो ध्यान-धारणा से वर्जित, विषय परायण और काम-भोग में आसक्त हैं, उनके लिए त्रिस्पृशा ही मोक्षदायिनी है। पूर्वकाल में जब चक्रधारी श्री विष्णु के द्वारा क्षीरसागर का मंथन हो रहा था, उस समय चरणो में पड़े हुए देवताओं के मध्य में ब्रह्माजी से मैंने ही इस व्रत का वर्णन किया था। जो लोग विषयॉ में आसक्त रहकर भी त्रिस्पृशा का व्रत करेंगे, उनके लिये भी मैंने मोक्ष का अधिकार दे रखा है। हे नारद! तुम इस व्रत का अनुष्ठान करो, क्योंकि त्रिस्पृशा मोक्ष देने वाली है।"

उन्होंने कहा, महामुने! बड़े-बड़े मुनियों के समुदाय ने इस व्रत का पालन किया है। यदि भाग्यवश कार्तिक शुक्लपक्ष में सोमवार या बुधवार से युक्त त्रिस्पृशा एकादशी हो, तो वह करोड़ों पापों का नाश करने वाली है और पापों की तो बात ही क्या है, त्रिस्पृशा के व्रत से ब्रह्म-हत्या आदि महा-पाप भी नष्ट हो जाते हैं। प्रयाग में मृत्यु होने से और द्वारका में श्रीकृष्ण के निकट गोमती में स्नान करने से शाश्वत मोक्ष प्राप्त होता है, परन्तु त्रिस्पृशा का उपवास करने से घर पर भी मुक्ति हो जाती है। इसलिये विप्रवर नारद! तुम मोक्षदायिनी त्रिस्पृश्या के व्रत का अवश्य अनुष्ठान करो।"

पूजा विधि और मंत्र

ये भी पढ़ें: Mahabharata Story: पिछले जन्म में कौन थी द्रौपदी, क्यों मिले उसे 5 पति? जानें पांचाली से जुड़े रहस्य

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष  शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

Open in App
Advertisement
Tags :
Kisse KahaniyaPapankusha Ekadashi
Advertisement
Advertisement