Pitru Paksh 2024: कर्ण की इस गलती के कारण हुई पितृपक्ष की शुरुआत!

Pitru Paksh 2024: सनातन परंपरा में पितृपक्ष का विशेष महत्त्व है। ये परंपरा युगों से चलती आ रही है। इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई इसका वर्णन धर्मग्रन्थ महाभारत में किया गया है। इस लेख में आपको बताएंगे की पितृपक्ष की शुरुआत किसकी गलती से हुई थी?

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पितृपक्ष की शुरुआत कैसे हुई?

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Pitru Paksh 2024: भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक हर साल पितृपक्ष मनाया जाता है। इन पंद्रह दिनों में हिन्दू धर्म को मानाने वाले अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्धकर्म ,तर्पण और कई तरह के अनुष्ठान करते हैं। वैसे तो पितृपक्ष की परंपरा सदियों से चलती आ रही है लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितृपक्ष की शुरुआत किसकी गलती से हुई थी? पितृपक्ष की शुरुआत कैसे हुई इसका वर्णन महाभारत में किया गया है ,तो आइये जानते हैं किसकी गलती से हुई थी पितृपक्ष की शुरुआत?

महाभारत काल की कथा

महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ था। युद्ध के सत्रहवें दिन जब अर्जुन के हाथों दानवीर कर्ण का वध हुआ तो कर्ण की आत्मा यमलोक पहुंची। यमलोक पहुंचने के बाद कर्ण की आत्मा को स्वर्ग में स्थान मिला। स्वर्ग में उसे भोजन के रूप में स्वर्ण और कीमती रत्नों के आभूषण परोसा गया। यह देख कर्ण मन ही मन सोचने लगा मृत्युलोक में मैंने दान-पुण्य करते हुए ही अपना जीवन व्यतीत किया फिर स्वर्ग में मुझे भोजन के रूप में अन्न क्यों नहीं मिल रहा?

कुछ देर सोचने के बाद कर्ण की आत्मा देवराज इंद्र के पास पहुंची और इसका कारण पूछा। तब देवराज इंद्र ने कहा ये सच है कि तुमने जीवनभर खूब सारा दान किया लेकिन याद करो तुम दान में केवल स्वर्ण और आभूषण ही लोगों को देते थे। तुमने कभी भी अन्न का दान नहीं किया। इतना ही नहीं तुमने न कभी अपने पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण ही किया। यही कारण है कि स्वर्ग में तुम्हे ऐसा भोजन परोसा जा रहा है।

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फिर कर्ण ने कहा लेकिन देवेंद्र मेरी क्या गलती है जीवित रहते तो मैं अपने पूर्वजों के बारे में जानता ही नहीं था तो फिर उनके नाम से कोई भी कर्म कैसे करता। उसके बाद देवराज इंद्र की आज्ञा से कर्ण की आत्मा को पंद्रह दिनों के लिए धरतीलोक पर भेज दिया गया। धरतीलोक पहुंचकर कर्ण ने अपने पूर्वजों के नाम से उन पंद्रह दिनों में खूब सारा अन्न-जल और भोजन दान किया। ऐसा माना जाता है कि तभी से उस पंद्रह दिनों को पितृपक्ष के रूप में मनाया जाने लगा। जो आज भी जारी है।

गरुड़ पुराण की कथा

वैसे तो ये कथा भी महाभारत काल की ही है लेकिन इस कथा का वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है। गरुड़ पुराण में वर्णित कथा के अनुसार युधिष्ठिर के पूछने पर पितामह भीष्म ने उन्हें पितृपक्ष में श्राद्ध का क्या महत्त्व है ये बताया था। भीष्म के अनुसार अत्रि मुनि ने सबसे पहले महर्षि निमि को पितृपक्ष के बारे में बताया था। एक समय की बात है निमि ऋषि का पुत्र असमय ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर ऋषि निमि अपने पूर्वजों को पुकारने लगे। तब निमि के पूर्वज उनके सामने प्रकार हुए और बोले वत्स तुम्हारा पुत्र पितृलोक में सुखी पूर्वक निवास कर रहा है। उसके नाम से तुमने जितने भी कर्म और अनुष्ठान किये थे उन सभी में दान किया गया अन्न व भोजन उसके पास पहुंच गया है। ऐसा माना जाता है तभी से सनातन धर्म में श्राद्ध की परंपरा शुरू हुआ।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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