Mata Lakshmi Mandir story: दिवाली के दिन इस मंदिर में माता के दर्शन मात्र से ही पूरी हो जाती है सारी मनोकमना!
Mata Lakshmi Mandir story: दिवाली के दिन लोग घर-घर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लेकिन वाराणसी में माता लक्ष्मी को समर्पित एक ऐसा भी मंदिर है, जहां भक्तों की हर मनोकमना पूरी होती है। इस मंदिर को लक्ष्मी कुंड मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां माता लक्ष्मी अपने भक्तों को धन के साथ-साथ संतान सुख का भी आशीर्वाद देती हैं। आइए जानते हैं लक्ष्मी कुंड मंदिर के बारे में यहां के पुजारी क्या कहते हैं और इस मंदिर को शक्तिपीठ क्यों कहा जाता है?
लक्ष्मी कुंड मंदिर
वाराणसी में स्थित लक्ष्मी कुंड नाम का एक मंदिर है जिसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है। लक्ष्मी कुंड मंदिर में माता लक्ष्मी विग्रह रुप में मौजूद हैं। इस मंदिर में देवी लक्ष्मी, देवी काली और माता सरस्वती, एक ही मूर्ति में विराजमान हैं। एक ही मूर्ति में माता के तीनों रूपों की पूजा की जाती है। लक्ष्मी कुंड मंदिर में देवी लक्ष्मी को महालक्ष्मी के के नाम से जाना जाता है। वाराणसी के लोगों का मानना है कि यहां माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु भी निवास करते हैं।
मंदिर के अंदर भगवान शिव, विष्णु जी, माता दुर्गा, भगवान सूर्य, नवग्रहों, विट्टल रखमाई और तुलजा भवानी की भी पूजा की जाती है। लक्ष्मी कुंड मंदिर के परिसर में एक पवित्र कुंड भी बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड का निर्माण पौराणिक काल में ऋषि अगस्त ने करवाया था।
मंदिर से जुड़ी कथा
इस मंदिर के पुजारियों के अनुसार पौराणिक काल में यहां माता पार्वती ने 16 दिनों तक व्रत किया था। ये व्रत उन्होंने अपने दोनों पुत्र गजेश जी और कुमार कार्तिकेय की दीर्घायु के लिए किया था। ऐसा माना जाता है कि जब माता पार्वती यहां व्रत में थी तो माता लक्ष्मी उनके पास आई, फिर माता लक्ष्मी ने उन्हें अपने साथ चलने का आग्रह किया, लेकिन देवी पार्वती नहीं गई। उसके बाद माता लक्ष्मी भी वहीं विराजमान हो गई और वो भी पूजा-अर्चना करने लगी। फिर कुछ दिनों के बाद यहां माता काली और देवी सरस्वती भी आ पहुंची। इन दोनों देवियों ने भी गणेश जी और कुमार कार्तिकेय की दीर्घायु के लिए व्रत किया। इसलिए ऐसा माना जाता है कि जो भी महिलाएं इस मंदिर में संतान सुख के लिए 16 दिनों का उपवास रखती हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है।
क्यों कहा जाता है शक्तिपीठ?
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी भक्त देवी को सिंदूर, सोलह श्रृंगार की वस्तुएं और सोलह गांठों वाला धागा अर्पित करता है, उसकी सारी मनोकमना पूर्ण हो जाती है। जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन जो भी महिलाएं मंदिर के पास ही स्थित कुंड में स्नान कर देवी की पूजा-पाठ करती है, उसके पुत्र को देवी दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं। यहां देवी पार्वती ने व्रत किया था, इसलिए इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। पुराणों में भी इस मंदिर को शक्तिपीठ की मान्यता दी गई है।
यहां दिवाली के दिन लाखों की संख्या में लोग देवी के दर्शन के लिए आते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि धनतेरस या दिवाली के दिन देवी के दर्शन मात्र से ही लोगों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। दिवाली के दिन इस मंदिर को दीयों और लाइटों से सजाया जाता है। सजावट के कारण मंदिर की भव्यता और बढ़ जाती है। ऐसी मान्यता है कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी इस मंदिर में साक्षात मौजूद रहती हैं।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है