Mahakumbh 2025: महाकुंभ क्या है, क्यों, कब और कहां आयोजित होता है? जानिए इन सारे सवालों के जवाब
Mahakumbh 2025: किसी एक स्थान पर हर 12 साल पर आयोजित होने वाला कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जीवंतता का प्रतीक है। कुंभ मेला का सतत और अक्षुण्ण आयोजन सनातन धर्म के शाश्वत होने की घोषणा करता है। यही कारण है कि यूनेस्को ने इस मेला को 2017 में "मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर" की सूची में शामिल किया है, जिससे कुंभ मेला की अंतर्राष्ट्रीय पहचान बढ़ी है। आइए जानते हैं, कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है? साथ ही यह भी जानते हैं कि यह क्यों, कब और कहां आयोजित होता है?
कुंभ और महाकुंभ क्या अंतर है?
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेला हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जो उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। कुंभ मेला एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित होता है। इस प्रकर यह मेला इन 4 पवित्र स्थलों पर प्रत्येक 3 वर्षों में लगता है। इसे 'पूर्ण कुंभ' कहा गया और सामान्य रूप इसे 'कुंभ मेला' कहते हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब कुल 12 पूर्णकुंभ मेलों का आयोजन हो जाता है, तब एक 'महाकुंभ' का आयोजन होता है यानी कि महाकुंभ का आयोजन प्रत्येक 144 साल पर होता है। साल 2025 में यह 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक संगम नगरी प्रयागराज में आयोजित किया जाएगा।
क्यों लगता है कुंभ मेला?
फोटो साभार: Paryagraj , Kumbh Mela - Facebook Page
कुंभ मेले के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो क्षीरसागर के मंथन से प्राप्त अमृत कलश से जुड़ी है। कहा जाता है कि देवताओं और दानवों के बीच अमृत के कलश को लेकर युद्ध हुआ था। अमृत कलश दानवों के हाथ न लगे, इसलिए देवराज इंद्र के पुत्र जयंत कलश को लेकर भागने लगे। देवता-दानव उनके पीछे पड़ गए। जयंत ने धरती पर 4 जगहों पर विश्राम किया था। मान्यता है, उस दौरान वे जहां-जहां रुके वहां अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिर गई थीं और ये बूंदें जिन चार स्थानों पर गिरी, वे हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक थीं। इसलिए इन स्थानों को पवित्र माना जाता है और यहां कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
कुंभ मेला 12 साल पर ही क्यों लगता है?
कुंभ मेला हर 12 साल में क्यों होता है, इसका जवाब धार्मिक ग्रंथों में छिपा है। मान्यता है कि देवराज इंद्र के पुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर 12 दिनों तक भ्रमण करते रहे थे। इस दौरान वे 3-3 दिनों के अंतराल पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में रुके थे। देवताओं के 12 दिन, हम मुनुष्यों के 12 सालों के बराबर होते हैं, यानी देव लोक में जब 12 दिन बीतते हैं, तो धरती पर 12 साल बीत जाते हैं। इसलिए, एक ही स्थान पर कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित किया जाता है।
कब-कब कहां लगता है कुंभ मेला?
कुंभ मेला कब-कब कहां लगता है, इसका राज ज्योतिष के रहस्यों में छिपा है। कुंभ मेले का समय ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। जब सूर्य और बृहस्पति ग्रह कुछ खास राशियों और नक्षत्रों में होते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
- हरिद्वार: जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तब कुंभ मेला हरिद्वार में लगता है।
- प्रयागराज: जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तब कुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित होता है।
- उज्जैन: उज्जैन में कुंभ मेला तब लगता है, जब सूर्य और बृहस्पति दोनों वृश्चिक राशि में होते हैं।
- नासिक: नासिकमें कुंभ मेला बृहस्पति और सूर्य के सिंह राशि में स्थित होने पर आयोजित किया जाता है। इसलिए इसे सिंहस्थ कुंभ कहते हैं। बता दें कि सिंह राशि के स्वामी भगवान सूर्य ही हैं।
कुंभ मेला का आयोजन हर स्थान पर 12 साल में एक बार किया जाता है, लेकिन हरिद्वार और प्रयाग में हर छठे साल में अर्ध-कुंभ का भी आयोजन होता है।
फोटो साभार: thekumbhmelaindia.com
किन नदियों के किनारे लगता है कुंभ मेला?
कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जो भारत की चार पवित्र नदियों के तट पर आयोजित किया जाता है। ये हैं:
गंगा: हरिद्वार में कुंभ मेला का आयोजन गंगा नदी के तट पर किया जाता है।
गंगा यमुना और सरस्वती संगम: प्रयागराज में कुंभ का आयोजन गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम तट पर किया जाता है। साल में महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में ही होना है।
गोदावरी: नासिक में कुंभ मेला गोदावरी नदी के किनारे आयोजित किया जाता है। गोदावरी को 'दक्षिण भारत की गंगा' भी कहते हैं।
शिप्रा: उज्जैन में कुंभ आयोजन करने का स्थान शिप्रा या क्षिप्रा नदी का तट है। शिप्रा नदी को भगवान शिव से जोड़ा जाता है।
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