Siyaram Baba: कौन थे संत सियाराम बाबा, जो लेते थे मात्र ₹10 भेंट, 12 साल की मौन के बाद बोले थे ये 4 अक्षर
Siyaram Baba: नर्मदा नदी उत्थान के महान पैरोकार और निमाड़ के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा आज शाम पंचतत्व में विलीन हो गए। वे आज बुधवार 11 दिसंबर 2024 को सुबह 6:10 मिनट पर मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के मौके पर वैकुंठवासी हुए थे। खरगोन के कसरावद के तेली भट्यान गांव में नर्मदा किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं वहां पहुंचे थे।
बता दें कि बाबा पिछले 10 दिन से बीमार थे और डॉक्टर एक टीम की देख-रेख में थे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी अंतिम संस्कार में शामिल हुए। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया पर बाबा सियाराम को श्रद्धांजलि अर्पित की।
12 साल की मौन के बाद बोले ये 4 अक्षर
संत सियाराम बाबा भगवान राम के प्रति अपनी अनन्य भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। अपने जीवन के शुरुआती दौर में उन्होंने 12 साल तक मौन साधना की थी। इसके लिए वे विशेष सम्मानीय थे। लेकिन उनको लोकप्रियता उन 4 पहले अक्षरों से मिली थी, जो मौन टूटने के बाद उनके पहले शब्द थे। ये 4 अक्षर थे "सियाराम"। तब से ही उनका नाम सियाराम बाबा पड़ गया।
17 साल की आयु में लिया था वैराग्य
संत सियाराम बाबा मूल रूप से गुजरात के रहने वाले थे। कहते हैं कि उन्होंने कवल 17 वर्ष की उम्र में घर त्याग दिया था और वैरागी बन गए थे। लगभग 5 सालों तक देश-प्रदेश का भ्रमण कर वे 22 साल की आयु में मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के तेली भट्टाण आए। बाबा नियमित रूप से रामायण पाठ करते थे। जब वे अस्वस्थ थे, तब भी वे लगातार रामायण पाठ और सियाराम की धुन गाते रहे थे।
केवल लंगोटी में रहते थे बाबा!
बाबा सियाराम हनुमान जी के परम भक्त थे। भीषण गर्मी हो, सर्दी हो या भारी बारिश, बाबा सिर्फ लंगोटी पहनकर रहते थे। मान्यता है कि उन्होंने साधना के माध्यम से अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया था। उनकी कई बार डॉक्टरी जांच भी हुई थी, डॉक्टरों ने भी इस पर आश्चर्य जताया था कि वाकई में उनका शरीर अनुकूलित हो चुका था।
मात्र 10 रुपये भेंट लेते थे बाबा
सियाराम बाबा के भक्तों के अनुसार, वे पिछले लगभग 70 सालों से लगातार श्री रामचरितमानस का पाठ कर रहे थे। उनके आश्रम में श्रीराम धुन 24 घंटे चलती रहती थी। बताया जाता है कि वे भक्तों और साधकों से मात्र 10 रुपये भेंट ही लेते थे। उन्होंने नागलवाड़ी धाम और खारघर इंदौर की सीमा स्थित जामगेट के पास स्थित विंध्यवासिनी मां पार्वती मंदिर में 25 लाख रुपए से ज्यादा की रकम मंदिर निर्माण में भेंट की है। उन्होंने अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण में भी 2 लाख रुपए भेंट भेजा था।
ये भी पढ़ें: इन 3 तारीखों में जन्मे लोगों पर रहती है शुक्र ग्रह और मां लक्ष्मी की खास कृपा, जीते हैं ऐशो-आराम की जिंदगी!