जूपिटर के चांद पर ऑक्सीजन है मगर... जीवन की खोज पर असर डाल सकती है नई रिसर्च
Oxygen On Jupiter's Moon Europa : वैज्ञानिकों के बीच हमेशा से यह जानने की ख्वाहिश रही है कि क्या धरती के अलावा ब्रह्मांड या हमारे सोलर सिस्टम में कहीं और भी जीवन हो सकता है। इसके लिए कई रिसर्च की गई हैं और लगातार की जा रही हैं। हमारे सोलर सिस्टम के सबसे बड़े ग्रह जूपिटर यानी बृहस्पति के चांद यूरोपा को लंबे समय से सबसे हैबिटेबल जगह माना जाता रहा है। अब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की ओर से जूपिटर के लिए भेजे गए जूनो मिशन ने पहली बार यूरोपा की सहत के सैंपल की जांच की है। इसमें पता चला है कि यूरोपा की बर्फीली सतह ऑक्सीजन उत्पन्न तो कर रही है लेकिन इसकी मात्रा उससे बहुत कम है जितनी मानी जा रही थी।
यूरोपा पर माइक्रोबियल लाइफ मिलने की संभावना को लेकर वैज्ञानिकों को उत्साहित करने को लेकर कई कारण हैं। गैलीलियो मिशन से मिले सबूतों ने दिखाया था कि इसकी बर्फ से ढकी सतह के नीसे एक समुद्र है, जिसमें धरती के समुद्र की तुलना में लगभग दोगुना पानी हो सकता है। इसके अलावा यूरोपा के डाटा के आधार पर बनाए गए मॉडल्स दिखाते हैं कि इसका समुद्र की सतह चट्टानों की है जिसके संपर्क में आने से एनर्जी उत्पन्न होती है। अंतरिक्ष में जीवन की खोज को लेकर यह जानकारी यूरोपा को काफी अहम बनाती है।
कैसा है यूरोपा का एटमॉस्फेयर?
इसे लेकर टेलीस्कोप से किए गए ऑब्जर्वेशंस में पता चला है कि यहां का एटमॉस्फेयर कमजोर है और इसमें ऑक्सीजन है। इसके अलावा इसकी सतह पर कुछ बेसिक केमिकल एलिमेंट्स की मौजूदगी के सबूत भी मिले हैं। इन केमिकल्स में कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस और सल्फर आदि हैं जो धरती पर जीवन के लिए जरूरी माने जाते हैं। इस हिसाब से यूरोपा पर जीवन के लिए तीन अहम चीजें- पानी, सही केमिकल एलिमेंट्स और गर्मी- मौजूद हैं। लेकिन वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं स्पष्ट कर पाए हैं कि क्या यहां पर जीवन की उत्पत्ति के लिए उतना समय बीत चुका है या नहीं, जितने की जरूरत होती है।
कितनी ऑक्सीजन हो रही उत्पन्न?
जूनो मिशन जूपिटर के लिए भेजा गया अभी तक का सबसे बेहतर चार्ज्ड पार्टिकल इंस्ट्रुमेंट माना जाता है। यह एनर्जी, डायरेक्शन और सतह पर मौजूद चार्ज्ड पार्टिकल्स के कंपोजिशन को माप सकता है। इससे मिला नया डाटा बताता है कि यूरोपा की सतह पर ऑक्सीजन बन तो रही है लेकिन उम्मीद से काफी कम। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे जीवन की खोज को लेकर किए जा रहे काम प्रभावित हो सकते हैं। पहले यह माना जा रहा था कि इसकी सतह एक सेकंड में पांच से 1100 किलोग्राम ऑक्सीजन उत्पन्न करती है। लेकिन अब पता चला है कि इसकी मात्रा प्रति सेकंड 12 किलो के आसपास ही है, जो कि अनुमान से काफी कम है।