ओलंपिक में पिछड़ क्यों जाता है भारत? 140 करोड़ का देश पेरिस में 1 गोल्ड भी नहीं जीत पाया
India in Paris Olympic 2022: पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। 117 एथलीट्स का भारतीय दल एक गोल्ड मेडल नहीं जीत पाया, और एक रजत पदक के लिए उसे 13 दिन इंतजार करना पड़ा, जब नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रो में सिल्वर मेडल अपने नाम किया। सवाल ये है कि आखिर 140 करोड़ का देश ओलंपिक में पदक क्यों नहीं जीत पाता, क्यों उसे कांस्य से संतोष करना पड़ता है।
पेरिस ओलंपिक में भारत को 6 मेडल मिले, जिनमें 5 कांस्य पदक थे, वहीं नीरज चोपड़ा को एक सिल्वर मेडल मिला। इन 6 पदकों के साथ भारत पदक तालिका में 71वें स्थान पर रहा। हांगकांग, ताइवान, उत्तर कोरिया, क्यूबा और 2 लाख से भी कम की आबादी वाला देश सेंट लूसिया भी पदकों के मामले में भारत से आगे रहे। टोक्यो ओलंपिक में भारत ने एक गोल्ड के साथ सात मेडल जीते थे।
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24 साल दो गोल्ड
पिछले 24 साल में भारत ने सिर्फ 2 गोल्ड मेडल जीते हैं। बीजिंग ओलंपिक 2008 में अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर राइफल शूटिंग में सोना जीता, वहीं टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने जैवलिन में गोल्ड हासिल किया। 36 ओलंपिक में हिस्सा लेने के बावजूद भारत सिर्फ 28 मेडल जीत पाया है। इतने ओलंपिक मेडल तो अमेरिकी तैराक माइकल फेलप्स ने अकेले जीते हैं।
खेल मंत्री ने गिनाया खर्चा
विनेश फोगाट के फाइनल से अयोग्य करार दिए जाने के बाद लोकसभा में बोलते हुए खेल मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा था कि सरकार ने विनेश फोगाट की ट्रेनिंग और सपोर्ट स्टाफ पर 75 लाख रुपया खर्च किया है। मंडाविया के इस बयान से बवाल मच गया, लेकिन खेल मंत्री के इस बयान ने सिस्टम की हकीकत को उघाड़ दिया। अगर मेडल विजेताओं पर खर्च की दूसरे देशों से तुलना करें तो पाएंगे कि विनेश फोगाट पर सरकार द्वारा किया गया खर्च ऊंट के मुंह में जीरा के समान है।
सिमोन बाइल्स का उदाहरण
अमेरिका की स्टार जिम्नास्ट सिमोन बाइल्स ने टोक्यो ओलंपिक से अपना नाम वापस ले लिया था। वे उन दिनों मेंटल हेल्थ से जूझ रही थीं, लेकिन फिर भी लगातार तीन सालों तक अमेरिकी सरकार ने आर्थिक तौर पर उन्हें लगातार सपोर्ट किया। इधर भारत में एक खिलाड़ी को तीन-चार महीने के लिए तब मदद मिलती है, जब वह ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर जाता है।
अपनी किताब पूअर इकोनॉमिक्स में नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्तेर डुफ्लो ने ओलंपिक खेलों में भारत के खराब प्रदर्शन के लिए कुपोषण को जिम्मेदार ठहराया है। और सरकार से हेल्थ सेक्टर में ज्यादा निवेश करने की मांग की है। ये सच है कि भारत गरीब है, लेकिन कैमरून, इथियोपिया, घाना, हैती, केन्या, मोजाम्बिक, नाइजीरिया, तंजानिया और युगांडा से ज्यादा गरीब नहीं है। इन देशों ने भारत के मुकाबले ज्यादा मेडल जीते हैं। ये सच है।
भारत में कुषोपण के आंकड़े बहुत ज्यादा भयावह हैं। 2023 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत में बच्चों में कुपोषण सबसे ज्यादा है। भारत के मुकाबले युद्धग्रस्त और अकालग्रस्त यमन और सूडान की स्थिति काफी बेहतर है।
खेलो इंडिया के जरिए निवेश को बढ़ावा
हालिया वर्षों में भारत सरकार ने खेलो इंडिया प्रोग्राम के जरिए निवेश को बढ़ाया है। इस साल खेल मंत्रालय को 3400 करोड़ से ज्यादा का फंड दिया गया है। पिछले वित्तीय वर्ष में यह 3300 करोड़ के करीब था। ये बात ध्यान रखी जानी चाहिए कि सरकार ने भले बजट बढ़ाया हो, लेकिन एक बड़ी आबादी के लिए यह बहुत कम है।
हॉकी ने दिखाई राह
खिलाड़ियों पर अगर लगातार निवेश किया जाए तो हमें बेहतर परिणाम मिलते हैं। ये हमने हॉकी के मामले में देखा है। टोक्यो के बाद पेरिस ओलंपिक में भारत ने लगातार कांस्य पदक जीता है। टोक्यो में आया मेडल 41 साल बाद हमें मिला था।
एक समय हॉकी में भारत का दबदबा था, 8 गोल्ड के साथ भारत ने कुल 13 मेडल सिर्फ हॉकी में जीते हैं। लेकिन 1980 के बाद हॉकी में हमारा प्रदर्शन गिरा। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में तो भारतीय टीम क्वालिफाई भी नहीं कर पाई। लेकिन उसके बाद ओडिशा सरकार ने हॉकी में निवेश किया और परिणाम सबके सामने है।
विनेश फोगाट का मामला
पेरिस ओलंपिक में विनेश फोगाट के साथ जो हुआ है, वह बताता है कि हमारा खेल प्रशासन किस तरह काम करता है। खिलाड़ियों को मिलने वाला सपोर्ट स्टाफ कैसा है? फोगाट का पेरिस ओलंपिक में सिल्वर मेडल पक्का था, विनेश गोल्ड भी जीत सकती थीं, लेकिन 100 ग्राम वजन ज्यादा होने के चलते उन्हें अयोग्य करार दिया गया। ये विनेश के सपोर्ट स्टाफ की लापरवाही थी।
चीन से भारत की तुलना
वहीं चीन के मुकाबले भारत के प्रदर्शन की तुलना करें तो पदक तालिका में चीन और भारत की स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है। इसे समझने के लिए हमें देखना होगा कि पदक तालिका में शीर्ष पर रहने वाले देशों ने लंबे समय से खिलाड़ियों पर निवेश किया है। वहीं चीन और कतर जैसे देश भी हैं, जो खेल में मेडल जीतने को ग्लोबल ब्रैंड के तौर पर प्रोजेक्ट करते हैं।
चीन चार से पांच साल की उम्र में ही बच्चों की पहचान कर लेता है और उन्हें पब्लिक हॉस्टल में रखकर ट्रेनिंग दी जाती है। चीन ने उन खेलों पर फोकस किया है, जहां वे मेडल जीत सकते हैं। भले ही उस खेल के चाहने वाले बहुत कम हों। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में 2,183 सरकारी स्कूल हैं, जहां बच्चों को बहुत छोटी उम्र से ही ओलंपिक के लिए तैयार किया जाता है।
भारत में चीन जैसी व्यवस्था नहीं है। चाहे वह राजनीतिक हो या सामाजिक... चीन के उलट हमारे यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जो अपने हिसाब से प्राथमिकताएं तय करती है। विनेश फोगाट के मामले में खेल मंत्री का खिलाड़ी पर खर्च की गई रकम को बताना, यह बताता है कि हमारी प्राथमिकता क्या है और हमारा फोकस कहां है? 140 करोड़ वाले देश में खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर कहां है? स्कूल-कॉलेज के स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर जीरो है। आने वाले वर्षों में भी भारत के ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद बहुत धुंधली है, जोकि निवेश की मांग करती है।