Khatu Shyam Mela कब और क्यों लगता है? जानें खाटूश्यामजी मंदिर से जुड़ी खास बातें
khatu Shyam Mandir Rajasthan: हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल होली का त्योहार 25 मार्च, दिन सोमवार को मनाया जाएगा। होली के दिन घरों में तो अलग ही धूम देखने को मिलती है। मंदिरों में भी अलग ही उत्साह होता है। अगर इस बार आप भी होली को खास मनाना चाहते हैं तो आप खाटूश्यामजी मंदिर भी जा सकते हैं। यहां होली के मौके पर हर साल बड़ी संख्या में लोग आते हैं। आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में।
ये भी पढ़ें- फूलों से लेकर भस्म तक, देश के इन प्रसिद्ध मंदिर में खास तरीके से खेली जाती है होली
2024 में खाटू श्याम मेला कब है?
खाटूश्यामजी मंदिर राजस्थान सीकर में स्थित है। खाटू श्याम बाबा को हारे हुए का सहारा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति खाटू श्याम बाबा जी की शरण में आता है, तो बाबा उसकी सभी समस्याएं खत्म कर देते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल श्याम बाबा का जन्मदिन फाल्गुन माह की ग्यारस यानी एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी यानी 20 मार्च 2024 को बाबा का जन्मदिन मनाया गया। बाबा के जन्मदिन के अवसर पर हर साल खाटूश्यामजी मंदिर में भव्य आयोजन किया जाता है।
इसी के साथ मंदिर के निकट लक्खी मेला भी लगाया जाता है, जो 10 दिनों तक चलता है। इस साल मेला 12 मार्च 2024 से आरंभ हुआ था, जिसका आज 21 मार्च 2024 को समापन होगा।
खाटूश्यामजी मंदिर की स्थापना कैसे हुई?
बता दें कि खाटूश्यामजी मंदिर को राजा रूप सिंह ने 1027 ईस्वीं में बनाया था। हालांकि 1720 ई. में फिर से मंदिर में राजा देवान अभय सिंह ने कुछ बदलाव करवाए थे, जिसके बाद उसका पुनर्निर्माण किया गया। पूरे मंदिर को संगमरमर और पत्थरों से बनवाया गया है। मंदिर में एक विशाल कुंड भी है, जहां लोग स्नान कर सकते हैं।
इसके अलावा मंदिर के बाहर एक कक्ष है, जिसे प्रार्थना कक्ष के नाम से जाना जाता है। वहीं मंदिर में मन्नत का पेड़ भी है, जिसमें लोग मन्नत की चुन्नी और धागे बांधते हैं। कहा जाता है कि जो भी लोग इस पेड़ पर सच्चे मन से मन्नत की चुन्नी बांधता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
खाटू श्याम जी की असली कहानी क्या है?
बता दें कि खाटू श्याम बाबा घटोत्कच के पुत्र थे, जिनका असली नाम बर्बरीक था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बर्बरीक जी महाभारत का युद्ध देखना चाहते थे। जब उन्होंने ये बात अपनी माता को बताई, तो उन्होंने उनसे कहा, पुत्र तुम्हारे पास असीम शक्तियां हैं। लेकिन तुम अपनी शक्तियों का प्रयोग किसी भी निर्बल पर मत करना। तुम हारे का सहारा बनना। जो हार रहा हो, तुम उसका साथ देना। अपनी मां का आशीर्वाद लेकर बर्बरीक जी युद्ध देखने चले गए।
हालांकि श्रीकृष्ण को पता था युद्ध कौरव हारने वाले हैं। इसके अलावा उन्हें ये भी पता था कि बर्बरीक कौरवों का ही साथ देंगे। ऐसे में श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से उनके शीश यानी सिर का दान मांगा। बर्बरीक जी ने बिना वक्त गवाए, श्रीकृष्ण को अपने सिर का दान दे दिया। इसके बाद श्रीकृष्ण अपने असली रूप में आए और उन्होंने वरदान दिया कि आज से आपको हारे का सहारा कहा जाएगा।
ये भी पढ़ें- होली मनाने वृंदावन आएं तो इस मंदिर में भी जाएं, मिलेगा श्रीकृष्ण का ‘प्रेम’, गोपियों की लीला