Sister Serial Killers की सनसनीखेज कहानी, 13 बच्चे किडनैप, 9 का कत्ल पर फांसी से बची
Sister Serial Killer of India: कहते हैं कि औरत में मातृत्व की भावना होती है और बच्चों के प्रति उनका लगाव होना आम सी बात है। ऐसे में अगर हम आपसे कहें कि भारतीय क्राइम की हिस्ट्री में दो औरतें ऐसी थी, जिन्होंने हैवानियत की सारे हदें पार कर दी थी। उन्होंने 13 बच्चों को किडनैप किया था और लगभग 9 बच्चों को जान से मार दिया था। दोनों महिलाओं की हैवानियत की हद आप इससे समझ सकते हैं कि उन्होंने 18 महीने के एक बच्चे का सिर फर्श पर पटका और फिर लोहे के खंभे पर सिर मार-मार कर उसे जान से मार दिया। ये महिलाएं महाराष्ट्र की सिस्टर सिरियल किलर सीमा मोहन गावित और रेणुका किरण शिंदे थी, जिनका खौफ 1990 से 1996 के समय सबसे ज्यादा था। आइये इनका कहानी के बारे में जानते हैं।
कौन थी ये महिलाएं?
अंजनाबाई गावित अपनी दो बेटियों रेणुका (उर्फ रिंकू ) और सीमा (उर्फ देवकी) के साथ पुणे के गोंधले नगर में किराए के कमरे में रहती थीं। ये तीनों महिलाए जात्रा, त्यौहार और अन्य समारोहों में भाग लेने और प्रमुख मंदिरों में जाने के लिए पश्चिमी महाराष्ट्र में घूमते थी, जिसमें मुंबई महानगर क्षेत्र भी शामिल था। ये तीनों इन भीड़-भाड़ वाली जगहों पर महिलाओं के गहने और कीमती समान चुराती थी, ताकि अपनी जीवन बिता सकें।
बड़ी बहन रेणुका शादीशुदा थी और उसका पति किरण शिंदे पुणे में दर्जी का काम करते था। इन चोरियों में वह भी अपनी पत्नी और ससुराल वालों का साथ देता था। 1990 में रेणुका अपने बच्चे के साथ एक मंदिर गई थी। उसने एक महिला का पर्स छीनने की कोशिश की, लेकिन पकड़ी गई। हालांकि जब उसने शोर मचाया कि उसे झूठा फंसाया जा रहा है तो उसे छोड़ दिया गया। इस समय उसके बेटे का उसके साथ होना उसके लिए फायदेमंद रहा। उस दिन के बात से ये अपनी चोरियों में छोटे बच्चों को साथ लेकर जाने लगें, ताकि वे आसानी से बच सकें।
Serial killer
13 बच्चों के किया किडनैप
पुलिस रिपोर्ट में बताया गया कि 1990 से 1996 के बीच इस परिवार ने पांच साल से कम उम्र के 13 छोटे बच्चों का अपहरण किया, जिसमें महिलाओं से नौ की हत्या कर दी और कम से कम पांच के शवों को कोल्हापुर जिले में अलग-अलग जगहों पर फेंक दिया। इस दोनों को अक्टूबर 1996 में कोल्हापुर पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
इन बहनों का पहला शिकार कोल्हापुर में एक भिखारी का बेटा था और जिसे जुलाई 1990 में रेणुका ने किडनैप किया था। वे उसे पुणे ले आए और उसका नाम संतोष रखा। अप्रैल 1991 में वे उसे कोल्हापुर ले गए, जहां सीमा को महालक्ष्मी मंदिर में एक भक्त का पर्स चुराने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया। सीमा से ध्यान हटाने के लिए अंजनाबाई ने संतोष को नीचे गिरा दिया, जो उस समय मुश्किल से एक साल का था, जिससे उसे चोटें आईं। 2006 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया कि इस हाथापाई में सीमा भागने में सफल रही।
इसके बाद वे तीनों कोल्हापुर बस स्टैंड गए, जहां उन्होंने कुछ पर्स फेंके, लेकिन संतोष अपनी चोटों के कारण लगातार रो रहा था। पकड़े जाने के डर से अंजनाबाई ने उसका मुंह दबाया और उसका सिर लोहे की खंभे से टकरा दिया। संतोष की मौके पर ही मौत हो गई।
संतोष के अलावा उन्होंने कम से कम 4 और बच्चों की हत्या की थी, जिनमें, श्रद्धा, गौरी, स्वप्निल और पंकज शामिल थे। इन चारों ने एक से पांच साल के बच्चों का भी अपहरण किया, जिनमें अंजलि, बंटी, स्वाति, गुड्डू, मीना, राजन, श्रद्धा, गौरी, स्वप्निल और पंकज शामिल थे और उन्हें गलत तरीके से बंधक बनाकर रखा।
अक्टूबर 1996 में, अंजनाबाई, सीमा और रेणुका को एक अलग मामले में गिरफ्तार किया गया था, उन पर अंजनाबाई के पूर्व पति की दूसरी शादी से हुई बेटी का अपहरण करने का आरोप था। जिसके बाद उनके घर की तलाशी के दौरान, कोल्हापुर पुलिस को छोटे बच्चों के कई कपड़े मिले। इससे एक जांच शुरू हुई, जिससे उनके अपराधों का खुलासा हुआ।
सुनाई मौत की सजा
28 जून, 2001 को, कोल्हापुर के एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने दोनों बहनों को 13 नाबालिग बच्चों का अपहरण करने और उनमें से कम से कम छह चार लड़कियों और दो लड़कों की हत्या करने का दोषी ठहराया और उन्हें मौत की सजा सुनाई। पांच साल बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा, लेकिन उन्हें पांच बच्चों की हत्या के लिए दोषी ठहराया। 31 अगस्त, 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद उन्होंनें 2014 में क्षमा यचिका दायर की जिसे खारीज करके उनको उम्र कैद की सजा सुनाई गए।
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