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क्या होता है कल्पवास? जिसका स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल कर रही हैं पालन

Laurene Powell Jobs In Maha Kumbh : Apple कंपनी के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल प्रयागराज में कल्पवास करने वाली हैं। जानें क्या होता है कल्पवास।
02:36 PM Jan 13, 2025 IST | Avinash Tiwari
क्या होता है कल्पवास  जिसका स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल कर रही हैं पालन

Laurene Powell Jobs In Maha Kumbh : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हो गई है। महाकुंभ की चर्चा देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब हो रही है। बड़ी संख्या में विदेशी श्रद्धालु भी महाकुंभ में पहुंच रहे हैं। Apple कंपनी के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल भी प्रयागराज पहुंची हैं। इसके बाद वह गुरु स्वामी कैलाशानंद महाराज के आश्रम में भी गईं। लॉरेन पॉवेल प्रयागराज में कल्पवास करने वाली हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्या होता है कल्पवास!

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लॉरेन पॉवेल 40 सदस्य की टीम के साथ महाकुंभ आई हैं। लॉरेन पॉवेल महाकुंभ समेत कई अनुष्ठानों में हिस्सा लेंगी। 13 जनवरी को वह महाकुंभ में एक संन्यासी के भेष में दिखाई दीं। उनके शरीर पर भगवा कपड़ा था और रुद्राक्ष की माला लिए वह किसी साध्वी की तरह दिखाई दे रही थीं। आपको बता दें कि लॉरेन पॉवेल प्रयागराज में कल्पवास करने वाली हैं।

क्या होता है कल्पवास?

कल्पवास के लिए संगम के तट पर डेरा डाल कर कुछ समय विशेष नियम के साथ रहना होता है। मान्यता के अनुसार कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का जरिया माना जाता है। संगम पर माघ के पूरे महीने रुक कर निर्धारित नियमों का पालन कर पुण्य प्राप्त करने को ही कल्पवास कहा जाता है। इस दौरान लोगों को साफ सुथरे सफेद या पीले रंग के कपड़े पहनने की सलाह दी जाती है।

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शास्त्रों के अनुसार कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है। इसे तीन रात, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास कर सकते हैं। अब लॉरेन पॉवेल कल्पवास करने वाली हैं। इसके लिए उन्हें कमला नाम दिया गया है और वह आने वाले कुछ दिन साध्वी की तरह बिताने वाली हैं।

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लॉरेन पॉवेल सनातन धर्म में काफी गहरी आस्था रखती हैं। इसके साथ ही गुरु स्वामी कैलाशानंद को अपना गुरु मानती हैं। शनिवार को वह स्वामी कैलाशानंद गिरी, निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर के आश्रम पहुंची थीं। इसके साथ ही वह काशी विश्वनाथ मंदिर भी पहुंची थीं, जहां उन्होंने पूजा अर्चना की।

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