'ब्राह्मण कार्ड' खेल गलती तो नहीं कर रहे अखिलेश, 2022 में खा चुके हैं मात, पीडीए कैसे करेगा रिएक्ट?
Akhilesh Yadav Brahmin card in UP: उत्तर प्रदेश में इस समय अखिलेश यादव से बड़ा ब्राह्मण हितैषी नेता नजर नहीं आता। लोकसभा चुनाव में पीडीए की शानदार सफलता के बाद अखिलेश यादव ने ब्राह्मण कार्ड खेला है। चाहे 2022 का चुनाव हो या 2024 का चुनाव, पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी क्षेत्र में वाराणसी को छोड़कर ज्यादातर सीटों पर सपा ने परचम फहराया है। अब सवाल ये है कि आखिर ब्राह्मणों को लुभाने के पीछे अखिलेश की मंशा क्या है?
दरअसल बीते दिनों अखिलेश यादव ने पूर्वांचल के बड़े ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा तोड़े जाने का मुद्दा उठाकर पूर्वांचल में ब्राह्मण बनाम राजपूत का दांव चल दिया। गोरखपुर से ताल्लुक रखने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हरिशंकर तिवारी के साथ सियासी अदावत रही है और तिवारी की प्रतिमा तोड़े जाने का मुद्दा उठाकर अखिलेश यादव ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं।
इसके साथ ही अखिलेश यादव ने पार्टी कार्यकर्ताओं से 5 अगस्त को समाजवादी पार्टी के पुरोधा जनेश्वर मिश्र का जन्मदिन भी जोर शोर से मनाने का निर्देश दिया था। वहीं, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर अपने चाचा शिवपाल यादव की जगह पूर्वांचल के ही माता प्रसाद पांडेय को बिठाकर अखिलेश यादव ने साफ कर दिया कि वह पीडीए के साथ ब्राह्मणों को भी अपने साथ जोड़ना चाहते हैं।
हालांकि हरिशंकर तिवारी का मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि विधानसभा में मानसून सत्र के दौरान माता प्रसाद पांडेय, सपा नेता और जसवंतनगर से विधायक शिवपाल यादव ने भी हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा क्षतिग्रस्त किए जाने का मुद्दा उठाया। सपा नेता कमाल अख्तर ने तो बकायदा इस पर सदन में चर्चा की मांग की।
इसके अलावा अखिलेश यादव ने लखनऊ के ऋत्विक पांडेय हत्याकांड के जरिए भी बीजेपी पर निशाना साधा था। सपा के नेताओं का प्रतिनिधिमंडल ऋत्विक पांडेय के घर गया था और सरकार से त्वरित न्याय की मांग की थी।
ये भी पढ़ेंः SP सांसद का करीबी, 50 करोड़ प्रॉपर्टी, अवैध धंधे; कौन है अयोध्या गैंगरेप केस का आरोपी?
उपचुनाव में होगा ब्राह्मण प्रेम का इम्तिहान
सवाल यह है कि आगामी विधानसभा उपचुनाव से पहले अखिलेश यादव का ब्राह्मणों के प्रति जागे प्रेम का मतलब क्या है। जानकारों का मानना है कि विधानसभा उपचुनाव में अखिलेश यादव ब्राह्मण वोटर को अपने पाले में लाकर सियासी बिसात पर बीजेपी को झटका देना चाहते हैं। इसलिए अखिलेश की कोशिश यह मैसेज देने की है कि योगी सरकार में ब्राह्मण नाराज और परेशान हैं। अखिलेश के इस प्रेम का पहला इम्तिहान 10 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव में होगा।
2022 और 2024 में सपा को नहीं मिला ब्राह्मणों का साथ
अखिलेश यादव भले ही तिवारी, पांडेय के मामलों को उठाकर ब्राह्मण वोट बैंक को साधना चाह रहे हों, लेकिन 2022 और 2024 के चुनाव में अखिलेश को इस वर्ग का साथ नहीं मिला है। 2022 के चुनाव में अखिलेश को करारी हार का सामना करना पड़ा तो 2024 के चुनाव में ब्राह्मण वर्ग बीजेपी के साथ गया है।
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे में सामने आया कि यूपी में सवर्ण समुदाय ने एनडीए को एकमुश्त वोट किया। वहीं सपा की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन को सिर्फ 16 प्रतिशत वोट मिला। सवर्णों का 79 प्रतिशत वोट बीजेपी को गया है। वहीं 2019 के चुनाव में 77.2 प्रतिशत सवर्णों ने बीजेपी को वोट किया था। देखना यह है कि 4 जून 2024 को आए लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद ऐसा क्या बदल गया है कि ब्राह्मण वोटर बीजेपी को छोड़ समाजवादी पार्टी के साथ चला जाएगा। यही अखिलेश यादव का सबसे बड़ा इम्तिहान है।
मनोज पांडे से पवन पांडे तक
2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भी अखिलेश यादव ने ब्राह्मण समुदाय को साधने की कोशिश की। उन्होंने परशुराम जयंती कार्यक्रम पूरे जोर शोर से मनाए। लेकिन जब विधानसभा चुनाव के परिणाम आए तो अखिलेश को निराशा झेलनी पड़ी।
2024 लोकसभा चुनाव में बलिया से समाजवादी पार्टी के सनातन पांडेय इस बार चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। वहीं अयोध्या क्षेत्र के नेता पवन पांडेय भी लगातार अखिलेश के सुर में सुर मिला, बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अखिलेश के करीबी रहे ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडे कई सारे नेताओं के साथ बीजेपी में चले गए थे।
अखिलेश की पीडीए प्लस की राजनीति में देखना होगा कि समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण प्रेम पर उनका पीडीए परिवार कैसे रिएक्ट करता है। लोकसभा चुनाव 2024 में सपा के चमकदार प्रदर्शन के पीछे गैर-यादव, गैर जाटव और कुर्मी-कोइरी जातियों का भरपूर समर्थन भी है।