सपा विधायकों की क्रॉस वोटिंग से कांग्रेस को क्यों लगा तगड़ा झटका, क्या अमेठी-रायबरेली में बदलेगा सियासी समीकरण?
Amethi Rae Bareli Politics: राज्यसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की है। बीजेपी के आठवें उम्मीदवार की जीत में समाजवादी पार्टी के 7 विधायकों की क्रॉस वोटिंग ने अहम भूमिका निभाई थी। वहीं, सपा विधायकों के क्रॉस वोटिंग से कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है। इसकी वजह क्रॉस वोटिंग में शामिल विधायकों का अमेठी और रायबरेली से जुड़ा होना है। माना जा रहा कि लोकसभा चुनाव में दोनों सीटों पर जीत दर्ज करना कांग्रेस के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला है।
सपा के विधायकों के क्रॉस वोटिंग के क्या हैं सियासी मायने?
सपा के जिन विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की उसमें मनोज पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, राकेश पांडेय, अभय सिंह, आशुतोष मौर्य, विनोद चतुर्वेदी और पूजा पाल शामिल हैं। इनमें से मनोज पांडेय रायबरेली के ऊंचाहार और राकेश प्रताप सिंह अमेठी के गौरीगंज से विधायक हैं। इनके दोनों के क्रॉस वोटिंग से अमेठी और रायबरेली की सियासत पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
सपा के साथ कांग्रेस को लगा झटका
मनोज पांडेय ऊंचाहार के सबसे लोकप्रिय सपा नेता माने जाते थे। यही वजह थी कि सपा ने उन्हें विधानसभा में चीफ व्हिप यानी मुख्य सचेतक बनाया था। वहीं, राकेश प्रताप सिंह भी सपा के दमदार नेता माने जाते थे। दोनों का अपना-अपना वोटबैंक है। अब इनके पाला बदल लेने से सपा के साथ ही कांग्रेस को भी गहरा झटका लगा है। बता दें कि रायबरेली में कांग्रेस ने ठाकुर और ब्राह्मण दोनों बिरादरी को अपने साथ जोड़ ऱखा था। अदिति सिंह और दिनेश प्रताप सिंह उसके दो लोकप्रिय नेता थे, लेकिन अब दोनों ने कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ दिया है। अदिति सिंह बीजेपी के टिकट पर विधायक हैं।
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2017 से ही बीजेपी ने शुरू कर दिया था काम
कहा जाता है कि रायबरेली में 2017 से ही बीजेपी ने सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी थी। उसने पहले तो प्रमुख ठाकुर चेहरों को अपनी तरफ किया, वहीं अब मनोज पांडेय के रूप में ब्राह्मण चेहरे को भी अपने पाले में कर लिया। मनोज पांडेय के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ब्राह्मणों को अपने साथ रखकर सोनिया गांधी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। यही वजह थी कि जब उनका गृह प्रवेश हुआ तो सोनिया खुद ऊंचाहार आईं थी।
अमेठी लोकसभा सीट का इतिहास
अमेठी लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी। तब कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी को जीत मिली थी। इस सीट को गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है, लेकिन 1977 में संजय गांधी को यहां से हार का मुंह देखना पड़ा था। हालांकि, वे 1980 में यहां से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। सोनिया गांधी ने 1999 में अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद इस सीट से 2004, 2009 और 2014 में राहुल गांधी सांसद निर्वाचित हुए।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए बढ़ी मुश्किलें
रायबरेली और अमेठी के प्रमुख ब्राह्मण और ठाकुर चेहरों के पाला बदलने से कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में मुश्किलें बढ़ गई हैं। कांग्रेस पहले से ही यहां कमजोर हो रही है। राहुल गांधी को पिछले चुनाव में अमेठी में स्मृति ईरानी के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा था। वहीं, रायबरेली से इस बार सोनिया गांधी ने स्वास्थ्य कारणों से चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है। लगभग सभी बिरादरी के वोटों पर बीजेपी ने अपनी पकड़ मजबूत की है। ऐसे में गांधी परिवार के लिए अमेठी और रायबरेली से जीत हासिल करना काफी मुश्किल भरा होने वाला है।
अमेठी और रायबरेली से कौन लड़ेगा चुनाव?
ऐसा माना जाता है कि अमेठी और रायबरेली में गांधी परिवार के अलावा ऐसा कोई लोकप्रिय चेहरा कांग्रेस के पास नहीं है, जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला कर सके। बीजेपी ने सपा और कांग्रेस के प्रमुख चेहरों को पहले ही अपने साथ खड़ा कर लिया है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ने की संभावना है, लेकिन उनके लिए भी रास्ते कांटों भरा साबित होने वाला है। राज्यसभा चुनाव ने कांग्रेस के पूरे सियासी तानेबाने को उजाड़ कर रख दिया है। अब देखना होगा कि पार्टी की लोकसभा चुनाव में क्या रणनीति होगी।
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