यूपी में बिगड़ा दलित वोट बैंक का गणित, बीजेपी, सपा, बसपा...किसे होगा फायदा?
मानस श्रीवास्तव, लखनऊ:
Dalit Vote Bank in Uttar Pradesh: लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों की सबसे बड़ी भूमिका होती है। इस बार बीजेपी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद यूपी की सभी सीटों को जीतने की उम्मीद कर रही है। हालांकि उसे सपा-कांग्रेस गठबंधन और मायावती की पार्टी बसपा से चुनौती मिलेगी। उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक का गणित लगातार बिगड़ रहा है। आइए जानते हैं कि इस बार ये गणित किस पार्टी के पक्ष में जा सकता है।
पिछले 10 सालों में बदल गई भूमिका
यूपी की सियासत में दलित वोट बैंक की भूमिका बीते 10 सालों में काफी बदल गई है। यहां तक कि तमाम सियासी दलों को इसके लिए अपनी-अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ रहा है। किसी जमाने में एकमुश्त या एकतरफा पड़ने वाला ये वोट बैंक समय के साथ कैसे बिखर गया, इसके पीछे भी बीजेपी की रणनीति काम कर रही है।
पिछड़े वर्ग के वोट बैंक के बाद सबसे मजबूत
उत्तर प्रदेश की सियासत में 40 फीसदी से ज्यादा की ताकत रखने वाले पिछड़े वर्ग के वोट बैंक के बाद सबसे बड़ी ताकत दलित वोट बैंक था। यूपी की आबादी में इनकी हिस्सेदारी 21 फीसदी के आसपास है। ये वोट बैंक साल 2007 तक मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी (BSP) के साथ मजबूती से खड़ा था। फिर इसमें बिखराव की शुरुआत 2012 से हुई, लेकिन 2014 आते-आते दलित वोट बैंक में बीजेपी इतनी बड़ी टूट करवा देगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। यहां 66 उपजातियों वाले इस वोट बैंक का बड़ा हिस्सा अब बीजेपी के साथ है।
दलित वोट बैंक की बाकी जातियों में बिखराव
दलित वोट बैंक में सबसे बड़ी आबादी जाटव समाज की है। ये वोट बैंक अभी भी बहुजन समाज पार्टी के साथ है, लेकिन बची हुई बाकी जातियों में बिखराव है। इस बचे हुए हिस्से के लिए बीजेपी और समाजवादी पार्टी में खींचतान मची हुई है। कांशीराम का नाम ले लेकर अखिलेश यादव ने इस वर्ग के मतदाता को प्रभावित करने की कोशिश जरूर की, लेकिन कितनी कामयाबी हासिल होगी, ये नहीं कहा जा सकता। पीडीए के फार्मूले में अखिलेश के साथ न तो पिछड़ा वर्ग और न ही दलित पूरी तरह साथ है।
अति दलित बीजेपी से खुश!
हालांकि इंडिया गठबंधन के सहारे जातीय गोलबंदी की कोशिश तो की जा रही है, लेकिन ये कोशिश कामयाब होती नजर नहीं आ रही है। दरअसल, 21 फीसदी दलित में से 8 फीसदी के आसपास जाटव वोट बैंक निकाल भी दें तो भी बाकी बची हुई जातियों के तमाम क्षेत्रीय नेता बीजेपी के साथ खड़े नजर आते हैं। इन जातियों में भी कुछ जातियां अति दलित हैं, जिन्हें लेकर पूरी सरकार सजग नजर आती है। पासी समाज से लेकर वनटांगिया और मुसहर जैसी जातियों के लिए सरकार तमाम तरह की योजनाएं चला रही है। जिससे दलितों का एक बड़ा वर्ग बीजेपी के साथ नजर आता है।
दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ
यूपी की सियासत का एक सच और भी है कि दलित आबादी एकमुश्त भी किसी दल के पास आ जाए तो भी चुनाव जिताने की हैसियत में नहीं रहती। यही वजह है कि मायावती को भी बहुजन समाज के फॉर्मूले को छोड़ सर्वजन के फार्मूले पर आना पड़ा। यही फार्मूला बीजेपी का भी है। जिसमें अगड़ी जातियों के साथ पिछड़े और दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा उसे 2014 से अपराजेय बनाए हुए है।
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