क्या रावण की ससुराल में 'श्रीराम' लहरा पाएंगे विजय पताका? जानें मेरठ के चुनावी समीकरण
Lok Sabha Election 2024: देश में लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. ऐसे में देश में सियासी हलचल का बढ़ना स्वाभाविक है. बीजेपी और कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है. सियासी दल एक-एक सीट पर फूंक-फूंक कर अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं. सत्ताधारी दल बीजेपी ने इस बार चुनावी बिसात पर चुन-चुन कर प्रत्याशी उतारे हैं. इस क्रम में बीजेपी ने वेस्ट यूपी की मेरठ लोकसभा सीट से रामायण के राम यानी अरुण गोविल को टिकट दिया है. यूं तो यूपी की मेरठ सीट हमेशा से ही हॉट सीट रही है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार ( 2014, 2019 और अब 2024 ) अपनी चुनावी रैली का आगाज मेरठ से किया है. लगातार हैट्रिक के बाद अब बीजेपी एक बार फिर यहां राम के नाम का भगवा परचम लहराना चाहती है. लेकिन क्या रावण की ससुराल मेरठ में 'श्रीराम' का स्वागत हो पायगा?
अरुण गोविल का मेरठ से खास रिश्ता?
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद पूरा देश राममय हो गया है, खासकर उत्तर प्रदेश में इसका असर ज्यादा दिखाई दे रहा है. ऐसे में बीजेपी रामायण के राम को चुनाव में उतार कर अयोध्या मंदिर निर्माण को कैश करने की पूरी योजना बना चुकी है. इसके अलावा अपनी राम वाली छवि के अलावा अरुण गोविल भी मेरठ से अपना खास रिश्ता बता रहे हैं. बावजूद इसके उनकी राह बहुत ज्यादा आसान नजर नहीं आ रही है. यूं तो अरुण गोविल का जन्म मेरठ में ही हुआ और उनकी शुरुआती पढ़ाई भी यहीं हुई, लेकिन इतने भर से उनका काम आसान नहीं होने वाला है. मेरठ में अरुण गोविल को एक नहीं, बल्कि कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दा
दरअसल, अरुण गोविल का मेरठ में जन्म तो जरूर हुआ, लेकिन स्टार बनने के बाद उनको फिर मेरठ में कभी नहीं देखा गया. ऐसे में मेरठ में स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दा हावी है. विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवार खासकर सपा-कांग्रेस गठबंधन का प्रत्याशी इसको मुद्दा बनाए हुए है. हालांकि अरुण गोविल की राम वाली छवि उनकी मददगार जरूर हो सकती है, लेकिन लोगों में यह आशंका है कि चुनाव में जीत के बाद अरुण गोविल फिर से मुंबई की ट्रेन न पकड़ लें. जबकि इसके इतर लोग हमेशा अपने सांसद को अपने बीच देखना चाहते हैं ताकि वह उनकी समस्याएं सुन सके और उनका समाधान कर सके. अरुण गोविल की मुंबई वापसी को इस बात से और भी बल मिल गया, जब चुनाव के बाद मेरठ में रहने या मुंबई जाने संबंधी मीडिया के सवाल पर उन्होंने यह कहते हुए जवाब दिया...यह तो समय ही बताएगा. सोशल मीडिया पर उनका यह बयान खूब वायरल हो रहा है. अरुण गोविल के इस बयान ने विपक्षी दलों को बैठ बिठाए बड़ा मुद्दा दे दिया है, जिसको वो किसी भी सूरत में हाथ से नहीं जाने दे रहे.
दलित-मुस्लिम मजबूत गठजोड़
मेरठ लोकसभा सीट पर दलित-मुस्लिम मतदाता एक बड़ा फैक्टर है. यहां मुस्लिम आबादी लगभग साढ़े पांच लाख ( लगभग 25 प्रतिशत) से ऊपर है. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी ने यहां से एक दलित महिला को उम्मीदवार बनाया है. क्योंकि मुस्लिम पहले से ही समाजवादी पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है. इसके साथ ही दलित उम्मीदवार का होना समाज के वोटों को सही ढंग से आकर्षित कर सकता है. ऐसे में सपा-कांग्रेस गठबंधन से सुनीता वर्मा बतौर उम्मीदवार जातीय समीकरणों के हिसाब से भी बिल्कुल फिट बैठती हैं. सुनीता वर्मा पिछले निकाय चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर मेयर भी चुनी गई थीं. यह दलित-मुस्लिम गठजोड़ का ही परिणाम था कि जब उत्तर प्रदेश में हुए निकाय चुनाव में बीजेपी ने हर तरफ भगवा परचम लहराया था. तब सुनीता वर्मा ही इकलौती गैर-बीजेपी मेयर चुनकर आई थीं.
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ओवैसी फैक्टर भी बनेगा कारण
यूं तो असदुद्दीन ओवैसी का उत्तर प्रदेश में कोई मजबूत जनाधार नहीं है, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं में पैठ होने के कारण चुनाव में उनकी मौजूदगी विपक्षी दलों के नुकसान और बीजेपी के लिए फायदा का सौदा बनती रही है. एआईएमआईएम उम्मीदवार को चुनाव में वोट कटवा के तौर पर देखा जाता है. लेकिन इस बार मेरठ निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया था. ओवैसी का उम्मीदवार मेरठ में बीजेपी के बाद दूसरे स्थान पर रहा था. जबकि सपा-बसपा जैसे दल तीसरे और चौथे स्थान पर खिसक गए थे. ऐसे में माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव में ओवैसी का उम्मीदवार इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी का खेल बिगाड़ सकता है. बीजेपी भी इस बात को लेकर काफी आश्वस्त नजर आ रही थी. लेकिन ओवैसी ने इस सीट से उम्मीदवार की घोषणा न कर एक बार फिर सबको हैरान कर दिया. मेरठ में ओवैसी की पार्टी से उम्मीदवार का न उतरना इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के लिए विन-विन स्थित बन सकती है. जबकि बीजेपी के लिए यह कदम बेहद चुनौतीभरा साबित हो सकता है.
स्थानीय नेताओं में नाराजगी का भाव
मेरठ लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है. इस सीट से बीजेपी के उम्मीदवार राजेंद्र अग्रवाल तीन बार सांसद चुनकर आए हैं. हालांकि इस बार एज फैक्टर की वजह से उनको टिकट नहीं दिया गया. वहीं, अमित अग्रवाल और संगीत सोम समेत कई स्थानीय नेता इस बार टिकट के प्रबल उम्मीदवार माने जा रहे थे, लेकिन बीजेपी ने अंतिम समय में अरुण गोविल को चुनाव मैदान में उतार कर सबको चौंका दिया. ऐसे में पार्टी के स्थानीय नेताओं को निराशा का सामना करना पड़ा. चूंकि बीजेपी एक काडर बेस्ड पार्टी है और यहां पार्टी हाईकमान के फैसले का खुलकर विरोध करना आसान नहीं. बावजूद इसके स्थानीय नेता अपनी अनदेखी और उनकी जगह पैराशूट उम्मीदवार को उतारने से अंदर ही अंदर नाखुश हैं. वो बात अलग है कि अरुण गोविल को मजबूती के साथ चुनाव लड़ाया जा रहा है.
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पल-पल बदल रहा माहौल
ऐसा नहीं है कि इन फैक्टर्स को बीजेपी उम्मीदवार की हार के तौर पर देखा जाए. क्योंकि राजनीति पल-पल बदलने का खेल है और मेरठ बीजेपी का पुराना गढ़ भी रहा है. मेरठ में ब्राह्मण, त्यागी और वैश्य समाज भी बहुतायत में है, जो बीजेपी का मजबूत और पारंपरिक वोट बैंक है. यही वजह है कि राजेंद्र अग्रवाल बीजेपी के टिकट पर खुद तीन बार सांसद चुने गए हैं. कुछ मुद्दे अरुण गोविल की राह जरूर मुश्किल करते हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता, राम वाली छवि और मेरठ से जुड़ाव उनके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है. क्योंकि मेरठ के रावण की ससुराल माना जाता है. ऐसे में देखना यह होगा कि क्या रावण की ससुराल में राम का राजतिलक हो पाएगा या नहीं?