whatsapp
For the best experience, open
https://mhindi.news24online.com
on your mobile browser.
Advertisement

Mahakumbh 2025: किन्नर अखाड़े को 9 साल बाद भी मान्यता क्यों नहीं ? पहली बार लेंगे हिस्सा

Prayagraj Mahakumbh 2025 Kinnar Akhada: प्रयागराज महाकुंभ में इस बार एक नया अखाड़ा शिरकत करने वाला है। किन्नर अखाड़े का यह पहला महाकुंभ होगा। क्या आप जानते हैं कि अस्तित्व में आने के 9 साल बाद भी किन्नर अखाड़े को अभी तक मान्यता क्यों नहीं मिली है?
11:01 AM Dec 11, 2024 IST | Sakshi Pandey
mahakumbh 2025  किन्नर अखाड़े को 9 साल बाद भी मान्यता क्यों नहीं   पहली बार लेंगे हिस्सा

Prayagraj Mahakumbh 2025 Kinnar Akhada: संगम नगरी प्रयागराज में जल्द ही महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। 13 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयागराज में धर्म का महापर्व मनाया जाएगा। करोड़ों श्रद्धालुओं के अलावा देश के मशहूर अखाड़े भी त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाएंगे। मगर क्या आप जानते हैं कि इस बार एक नया अखाड़ा भी महाकुंभ में शिरकत करता नजर आएगा। हम बात कर रहे हैं 'किन्नर अखाड़ा' की। किन्नर अखाड़े को बने 9 साल हो चुके हैं, लेकिन इसे अभी तक अलग अखाड़े की मान्यता नहीं मिली है। तो आइए जानते हैं इस अखाड़े के बारे में विस्तार से...

Advertisement

कब शुरू हुआ किन्नर अखाड़ा?

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने नालसा जजमेंट सुनाते हुए अनुच्छेद 377 को रद्द कर दिया था। इसी के साथ देश में समलैंगिगता को भी मान्यता मिल गई थी। 2015 में मशहूर एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने किन्नर अखाड़े की नींव रखी। किन्नर अखाड़ा 2016 में उज्जैन के सिंहस्थ में शामिल हुआ। 2019 में प्रयागराज अर्धकुंभ में भी किन्नर अखाड़े ने शिरकत की।

Advertisement

यह भी पढ़ें- नागा साधु बनना कितना कठोर? कुंभ के बाद कहां-क्यों गायब? हर सवाल का जवाब चौंकाएगा

Advertisement

क्यों नहीं मिली मान्यता?

किन्नर अखाड़े को जूना अखाड़े का हिस्सा माना जाता है। इसे अस्तित्व में आए 9 साल हो चुके हैं, लेकिन किन्नर अखाड़े को अभी तक मान्यता नहीं मिली है। इसकी सबसे बड़ी वजह है अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP)। दरअसल ABAP सभी 13 अखाड़ों का मुख्य संगठन है और ये किन्नर अखाड़े को अलग मान्यता देने के सख्त खिलाफ है।

2019 के अर्धकुंभ में निकली पेशवाई

ABAP ने किन्नर अखाड़े के प्रयाग अर्धकुंभ में आने पर भी आपत्ति जताई थी। ऐसे में किन्नर अखाड़े ने खुद को उपदेव बताते हुए 2019 के प्रयाग अर्धकुंभ में धूमधाम से एंट्री की थी। इसे देवत्व यात्रा यानी पेशवाई कहा गया था। इस यात्रा में किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, पीठाधीश्वर प्रभारी उज्जैन की पवित्रा माई, उत्तर भारत की महामंडलेश्वर भवानी मां और महामंडलेश्वर डॉक्टर राजेश्वरी ने भी शिरकत की थी।

यह भी पढ़ें- महिलाएं कैसे बनती हैं नागा साधु? दिल पर पत्थर रखकर करना पड़ता है ये भयानक काम

रामायण-महाभारत में मिला जिक्र

भारत और खासकर हिंदू धर्म में किन्नर समुदाय का हमेशा से खास महत्व रहा है। रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी किन्नरों का जिक्र मिलता है। रामायण में भगवान राम के जन्म के बाद किन्नरों को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया गया था। वहीं राम वनवास गए तो किन्नरों ने भी जंगल में 14 साल बिताए और भगवान राम के साथ ही अयोध्या वापस लौटे थे। इसके अलावा महाभारत में शिखंडनी भी किन्नर थीं, जो भीष्म पितामह की मौत की वजह बनी थीं।

मुगलों ने दी खास तवज्जो

हिंदू धर्म के अलावा इस्लाम धर्म में भी किन्नरों को खास तवज्जो प्राप्त थी। किन्नर मुगलों के हरम में बेगमों के बेहद खास होते थे। वहीं मुगल सेना से लेकर दरबार में नृत्य करने तक की जिम्मेदारी किन्नरों पर होती थी। मुगलकाल की किताबों में किन्नरों के लिए 'हिजड़ा' शब्द का प्रयोग किया गया है।

यह भी पढ़ें- Mahakumbh 2025: नागा साधुओं को क्यों कहते हैं सनातन धर्म की रिजर्व फोर्स? मुगलों के भी छुड़ा दिए थे छक्के

कैसे कम हुई किन्नरों की साख?

हालांकि ब्रिटिश हुकूमत किन्नरों के लिए डार्क फेज बनकर सामने आया, जिसका दंश वो आज भी झेल रहे हैं। 200 साल के राज में अंग्रेज किन्नरों को काफी हीन भावना से देखने लगे। अंग्रेजों के अनुसार किन्नर गंदगी, बीमारी और संक्रमण फैलाने वाला समुदाय था। 1864 में उन्होंने ब्रिटेन का बुगेरी एक्ट भारत में लागू कर दिया, जिसके बाद से समलैंगिगता को अपराध माना जाने लगा था। संविधान का अनुच्छेद 377 भी इसी कानून की देन था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में रद्द कर दिया था।

यह भी पढ़ें- जूनागढ़ के निजाम ने टेके घुटने, अब्दाली को हटना पड़ा पीछे, जब जूना अखाड़े की जांबाजी ने कर दिया हैरान

Open in App Tags :
Advertisement
tlbr_img1 दुनिया tlbr_img2 ट्रेंडिंग tlbr_img3 मनोरंजन tlbr_img4 वीडियो