यूपी की सियासत में बदलाव!, लोकसभा चुनाव में इस बार नहीं दिख रहे बाहुबली
Lok sabha election 2024 (इनपुट-मानस श्रीवास्तव): एक दौर ऐसा भी था जब यूपी की सियासत में बाहुबलियों का बोलबाला था। कोई भी सियासी दल बाहुबलियों के सहारे के बगैर मैदान में नहीं उतरता था। अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, डी पी यादव, उमाकांत यादव, विजय मिश्रा रमाकांत यादव जैसे दर्जनों नाम ऐसे थे जो अपने-अपने इलाकों मे खुद भी चुनाव लड़ते थे औऱ अपने दलों के लिए वोट भी जुटाते थे। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में फिजा कुछ बदली नजर आ रही है।
राजनीतिक पार्टियों को बाहुबलियों का सहारा
यूपी की राजनीति इसीलिए बदनाम भी रही क्योंकि यहा कोई भी सियासी दल बगैर बाहुबलियों की ‘बैसाखी’ के सहारा लिए आगे नही बढ़ता था। समाजवादी पार्टी हो या फिर बहुजन समाज पार्टी यहां तक की बीजेपी के पास अपने-अपने बाहुबली नेता थे। यहां तक कि छोटे-छोटे दल भी बाहुबलियों के सहारे एक-दो सीटे जीत कर आते रहे हैं।
हरिशंकर तिवारी का था नाम
बाहुबलियों का ऐसा जलवा था कि अगर निदर्लीय भी खड़े हो गए तो भी उन्हें हराने वाला कोई नहीं था। गौरतलब है कि यूपी की सियासत में हरिशंकर तिवारी एक ऐसा नाम था जिसने बाहुबलियों के लिए राजनीति का रास्ता साफ किया औऱ उसके बाद तो जैसे बाहुबलियों ने राजनीति को ही अपना हथियार बना लिया।
इस बार सियासी दलों ने किया किनारा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे डीपी यादव हो या फिर पूर्वांचल मे मुख्तार अंसारी, धनंजय सिंह, सुल्तानपुर का चंद्रभद्र सिंह, उमाकांत यादव, रामकांत यादव, विजय मिश्रा ये उन तमाम बाहुबलियों के नाम हैं जो सांसद बन कर लोकसभा या विधायक बन कर विधानसभा पहुंचते रहे हैं लेकिन इस बार यूपी में सभी सियासी दलो ने इनसे किनारा कर लिया है।
ऐसे कम होता गया दबदबा
पूर्वांचल की तमाम सीटों पर कभी अंसारी परिवार का दबदबा था। लेकिन एक के बाद एक तमाम मुकदमें मे सजायाफ्ता हो चुके मुख्तार अंसारी की जेल मे हुई मौत से इस बार इस परिवार की वो धमक नहीं रही है। उधर, धनंजय सिंह को अपहरण के मामले में सजा हो गई लिहाजा वो अपनी पत्नी को चुनाव मे उतारने की कोशिश कर रहे है। चंद्रभद्र सिंह को बसपा औऱ सपा दोनों से टिकट नही मिला है।