बसपा का गढ़ कैसे बना बीजेपी का किला? समझें गौतमबुद्ध नगर का सियासी समीकरण
Gautam Buddha Nagar Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनावों से पहले सभी राजनीतिक दल मजबूत रणनीति तैयार करने में जुटे हैं। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटे हैं। वहीं भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों ने बीजेपी के किलों को निशाना बनाया है, जिसमें यूपी की संसदीय सीट गौतमबुद्ध नगर का नाम भी जुड़ चुका है।
गौतमबुद्ध नगर को कभी बसपा सुप्रीमो मायावती का गढ़ कहा जाता था। मगर 2014 में बीजेपी ने इसे अपना किला बना लिया, जिसे भेदने के लिए समाजवादी पार्टी भी मैदान में उतर चुकी है। हर बार की तरह इस बार भी सपा ने डाक्टर महेंद्र नागर को गौतमबुद्ध नगर से अपना प्रत्याशी नियुक्त किया था। मगर फिर ऐसा क्या हुआ कि सपा के कुछ नेताओं के कहने पर अखिलेश यादव ने महेंद्र नागर से टिकट वापस ले लिया और राहुल अवाना को सपा ने अपना नया प्रत्याशी घोषित कर दिया? हद तो तब हो गई जब कुछ ही घंटों में सपा ने राहुल अवाना से टिकट लेकर फिर से महेंद्र नागर को उम्मीदवार बना दिया।
2009 से शुरू हुआ खेल
2004 के आम चुनाव तक गौतमबुद्ध नगर खुर्जा लोकसभा सीट का हिस्सा था। मगर 2009 में गौतमबुद्ध नगर के नाम से नई लोकसभा सीट बनी, जिसमें नोएडा, दादरी, खुर्जा, जेवर और सिंकदराबाद विधानसभा सीटें शामिल थीं। इस नई सीट पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सुरेंद्र सिंह नागर को अपना उम्मीदवार बनाया और गौतमबुद्ध नगर से बसपा ने भारी मतों से जीत हासिल की। यही नहीं यूपी विधानसभा चुनावों में भी बसपा ने गौतमबुद्ध नगर की ज्यादातर सीटों पर विजय प्राप्त की और सूबे की बागडोर मायावती के हाथों में आ गई। मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनीं और गौतमबुद्ध नगर बसपा का गढ़।
2014 में बीजेपी ने बनाया किला
2014 में आई मोदी लहर की आंधी में बसपा का गढ़ भी ढह गया और गौतमबुद्ध नगर में बीजेपी ने जीत का परचम फहराया। बीजेपी नेता डॉक्टर महेश शर्मा यहां से सांसद बने। मगर भाजपा का विजय रथ यहीं नहीं रुका। बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में भी बाजी मारी और पाचों विधानसभा सीट अपने नाम कर ली। 2019 के आम चुनावों में भी वही प्रक्रिया फिर से दोहराई गई और आखिर में बसपा का गढ़ कहा जाने वाला गौतमबुद्ध नगर बीजेपी का किला बनकर उभरा।
गौतम बुद्ध नगर से क्यों हारी बसपा?
आगामी आम चुनावों में हार और जीत का कयास लगाने से पहले गौतम बुद्ध नगर का राजनीतिक समीकरण समझना जरूरी है। बसपा की हार से लेकर बीजेपी की जीत और सपा के उम्मीदवार बदलने की कहानी इसी पर आधारित है। दरअसल गौतमबुद्ध नगर में ज्यादातर मतदाता जाट और गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। 2009 में मायावती ने यही जातीय समीकरण साधते हुए सुरेंद्र नागर को टिकट दिया। 2014 में भी जातीय समीकरण का वही फॉर्मूला बीजेपी ने अपनाया। हालांकि इसी के साथ भाजपा ने पकंज सिंह जैसे युवा नेताओं को विधानसभा में उतारा। बीजेपी की रणनीति सफल साबित हुई और गौतमबुद्ध नगर पिछले 10 सालों से भाजपा का गढ़ बन गया।
सपा ने तीन बार बदला उम्मीदवार
गौतमबुद्ध नगर में सियासत का खेल आजमाने के लिए अब सपा भी मैदान में उतरी। अखिलेश यादव की अगुवाई में सपा हर बार डॉक्टर महेंद्र नागर को चुनावी उम्मीदवार घोषित करती थी और सपा के हाथ सिर्फ हार लगी। यही वजह है कि सपा नेताओं ने लखनऊ में अखिलेश से मुलाकात की, जिसके बाद अखिलेश ने प्रत्याशी बदल दिया और युवा नेता राहुल अवाना को अपना नया उम्मीदवार घोषित कर दिया। गोतमबुद्ध नगर के सियासी समीकरण को समझते हुए सपा ने फिर से रिस्क लिया और तीसरी बार उम्मीदवार बदलकर महेंद्र नागर को दोबारा टिकट दे दिया।
रेस से बाहर हुई कांग्रेस
गौतम बुद्ध नगर में लगी जीत की होड़ में कांग्रेस का पत्ता पहले ही साफ हो चुका है। 1984 के बाद कांग्रेस ने कभी खुर्जा लोकसभा सीट पर जीत हासिल नहीं की और आगामी चुनावों में भी कांग्रेस गोतमबुद्ध नगर से चुनाव नहीं लड़ेगी। INDIA महागठबंधन के सीट बंटवारे में गौतमबुद्ध नगर सपा के खेमे में है और कांग्रेस चाहकर भी यहां 35 साल का सूखा खत्म नहीं कर सकती है।