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पेशाब में खून आया, गर्मी से जूते पिघले; फिर भी दौड़ीं 1000KM, सिंगापुर टू थाईलैंड पहुंची 12 दिन में

Natalie Dau Guinness Book of World Record: 52 साल की मैराथन रनर नतालिया दाऊ ने 12 दिन में दौड़कर सिंगापुर से थाईलैंड पहुंचने का गिनीज रिकॉर्ड बनाया है। इस उपलब्धि के लिए पूरी दुनिया उन्हें बधाई दे रही है और उनके जज्बे को सलाम किया जा रहा है, जबकि उन्होंने कई परेशानियां उठाते हुए यह दौड़ पूरी की।
06:50 AM Jun 17, 2024 IST | Khushbu Goyal
एक हजार किलोमीटर का सफर तय करने में नतालिया को काफी परेशानियां भी उठानी पड़ीं।
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Courageous Story of Ultramarathoner Natalie Dau: दौड़ना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर दौड़ना आपकी दिनचर्या बन जाए तो आप दौड़ की दुनिया में एक मुकाम बना सकते हैं। जी हां, ऐसा मुकाम दुनिया की एक महिला ने हासिल किया है। उन्होंने हेल्दी रहने के लिए दौड़ना शुरू किया था और आज वे मैराथन में दौड़ती हैं। वे अल्ट्रामैराथनर बन गई हैं। इनका नाम नताली दाऊ है, जो 52 वर्ष की हैं। हाल ही में इन्होंने एक गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने दौड़ते हुए सिंगापुर से थाईलैंड गई। करीब एक हजार किलोमीटर का सफर उन्होंने 12 दिन में पूरा किया। हालांकि अभी सर्टिफिकेट नहीं मिला है, लेकिन गत 5 जून को उनकी यात्रा खत्म हो गई। उन्होंने अपने डोक्यूमेंट संस्था को भेज दिए हैं।

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मैराथन रनर ने दौड़ते हुए चैरिटी फंड भी जुटाया

थाईलैंड पहुंचने के बाद नताली का शानदार स्वागत हुआ। वहीं मीडिया से बात करते हुए उन्होंने अपना अनुभव भी शेयर किया। नतालिया बताती हैं कि उन्होंने यह सफर पूरा करने पर जितनी खुशी हो रही है, उतनी ही हैरानी भी है, क्योंकि गर्मी इतनी ज्यादा थी कि उनके जूते तक पिघल गए। उन्होंने 35 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी दौड़ लगाई। शुरुआत में ही कूल्हे की चोट का सामना करना पड़ा। तीसरे दिन यूरिन में खून आने लगा था। उसके बाद भी हर 2 दिन में 84 किलोमीटर की दौड़ पूरी की, लेकिन हिम्मत नहीं हारी, क्योंकि उन्हें स्पोर्ट्स की दुनिया में मिलने वाली चुनौतियां हमेशा से स्वीकार रही हैं। वहीं दौड़ लगाते हुए उन्होंने चैरिटी के रूप में 50 हजार डॉलर भी जुटाए। इन पैसों का इस्तेमाल वे खेल की दुनिया में करियर बनाने का सपना देखने वाली लड़कियों को ट्रेनिंग देने में करेंगी।

 

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सफलता का श्रेय टीम और समर्थकों को दिया

मीडिया से बातचीत करते हुए नताली कहती हैं कि उन्हें इस चीज से फर्क से नहीं पड़ता कि फर्स्ट आईं या लास्ट आईं, बस कुछ अलग करके दिखाना था, जो दुनिया की 0.05 प्रतिशत आबादी चाहते हुए भी नहीं कर पाती। सफर के दौरान समर्थकों के संपर्क में रही। उनके वॉयस मैसेज सुनकर बूस्ट होती रही। टीम ने भी उनकी सफलता में अहम भूमिका निभाई। सफर में उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा। सावधानीपूर्वक लॉजिस्टिक्स की योजना बनाई। हालांकि रास्ते में एक बार लगा कि वे आगे नहीं दौड़ पाएंगी। थकावट, पैर की उंगलियों में छाले होने के बावजूद वे अपने परिवार से मिलने की अत्यधिक इच्छा और सपना पूरा करने की चाहत में वे डटी रहीं। आज सफलता उनके कदम चूम रही है।

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