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ब्रिटेन के पहले हिंदू PM की विदाई; ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी की हार की 5 वजहें

Rishi Sunak Lost Eelection Why: ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी का 14 साल पुराना राज खत्म हो गया है। ऋषि सुनक चुनाव हार गए हैं और लेबर पार्टी बहुमत से जीत गई है। कीर स्टार्मर प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन ऋषि सुनक ही हार क्यों हुई? आइए जानते हैं, हार के पीछे के कारण...
12:17 PM Jul 05, 2024 IST | Khushbu Goyal
ऋषि सुनक की हार का एक कारण उनके अपने नेता भी रहे।
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Rishi Sunak Party Lost Lost Election Reasons: ब्रिटेन के पहले हिंदू प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को आम चुनाव 2024 में करारी हार का सामना करना पड़ा है। अपने कार्यकाल में नियमित अंतराल पर 'स्कैंडल' से जूझने वाले ऋषि सुनक को अपनी पार्टी के पूर्व नेताओं की कारस्तानियों का भी खामियाजा भुगतना पड़ा। ब्रिटेन के वोटरों ने कीर स्टार्मर की अगुवाई वाली लेबर पार्टी को 14 सालों के बाद ऐतिहासिक जनमत दिया है। आइए जानते हैं कि आखिर ऋषि सुनक की हार के क्या कारण रहे, जो कंजर्वेटिव पार्टी का 14 सालों का राज एक झटके में खत्म हो गया।

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कंजर्वेटिव वोटरों का मोहभंग

सुनक को राजनीतिक तौर पर कई मोर्चों पर जूझना पड़ा। जहां लेबर पार्टी के साथ उनका सीधा मुकाबला था तो 'रिफॉर्म यूके' के रूप में नई पार्टी की चुनौती का भी सामना करना पड़ा। 'रिफॉर्म यूके' को मतदाताओं का अच्छा समर्थन मिला। भले ही वह ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई है, लेकिन उसका वोट शेयर 15 प्रतिशत के करीब रहा है। रिफॉर्म यूके पार्टी को मिला वोट ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी का ही वोट है, जिसने नई पार्टी में अपना भरोसा जताया है। इसके अलावा दक्षिणी इंग्लैंड के इलाके में लिबरल डेमोक्रेट्स की एक छोटी पार्टी ने बहुत ही सफल कैंपेन चलाते हुए कई निर्णायक सीटों पर जीत दर्ज की है।

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बोरिस जॉनसन का बोझ

ऋषि सुनक को अपनी पार्टी के बड़े नेताओं की करतूतों का भी खामियाजा भुगतना पड़ा। जैसे कोविड पीरियड में लॉकडाउन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और उनके करीबियों का नियमों का उल्लंघन करना। इससे वोटरों में एक मैसेज गया कि पार्टी के नेता जनता के हितों को लेकर गंभीर नहीं हैं।

लिज ट्रस्ट ने लुटिया डुबो दी

ऋषि सुनक से पहले ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रहीं लिज ट्रस्ट ने जिस तरह से 6 हफ्ते काम किया, उसने भी ऋषि सुनक की पार्टी के प्रति वोटरों के विश्वास को0 गहरा धक्का पहुंचाया। राजनीतिक विश्लेषक लिज ट्रस्ट के कार्यकाल को दु:स्वप्न की संज्ञा दे रहे हैं। चुनाव नतीजों से साफ है कि एक लीडर के तौर पर ऋषि सुनक खुद लेबर पार्टी के उभार को रोक पाने में असफल रहे। ग्रासरूट कंजर्वेटिव्स ऑर्गेनाइजेशन के चेयरमैन एड कोस्टेलो ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ बातचीत में कहा कि कंजर्वेटिव पार्टी की हार होनी चाहिए थी। एक लंबे समय से पार्टी विचारहीन और थकी हुई लग रही थी।

 

आर्थिक चुनौतियों का समाधान नहीं ढूंढ पाए सुनक

ऋषि सुनक कोविड के बाद उभरी आर्थिक चुनौतियों का समाधान ढूंढने में असफल रहे। यूक्रेन युद्ध के बाद एनर्जी मार्केट में हुई उठापटक को भी ऋषि सुनक संभाल नहीं पाए। इसका असर यह हुआ कि ब्रिटेन में महंगाई बढ़ी और जनता को जीवनयापन में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हालांकि ऋषि सुनक यह दावा करते रहे हैं कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था उबर रही है, महंगाई कम हो रही है, लेकिन उनके दावे मतदाताओं का विश्वास जीत पाने में असफल रहे।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक और सोशल रिसर्च का अनुमान है कि अगर ब्रिटेन, यूरोप के साथ बना रहता तो उसकी GDP 2 से 3 प्रतिशत ज्यादा होती, लेकिन ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को करारा झटका लगा। जाहिर है कि ऋषि सुनक की हार में ब्रेग्जिट पर कंजर्वेटिव पार्टी का स्टैंड भी बड़ी वजह रहा।

 

इमिग्रेशन पॉलिसी रही फेल

ऋषि सुनक की इमिग्रेशन पॉलिसी हमेशा सुर्खियों में रही। इंग्लिश चैनल पार करके आने वाले शरणार्थियों ने हमेशा सुनक को परेशान रखा। बॉर्डर कंट्रोल को लेकर उनकी सरकार हमेशा आलोचना की शिकार रही। प्रवासियों को रवांडा शिफ्ट करने के ऋषि सुनक के प्लान को तीखे आरोपों का सामना करना पड़ा।

अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन और अमानवीय रवैये को लेकर सुनक हमेशा विपक्षियों के निशाने पर रहे। दिलचस्प है कि ब्रेग्जिट की पैरोकार सुनक की पार्टी ने कहा था कि यूरोप से अलग होने के बाद ब्रिटेन में अवैध प्रवासियों का आना कम होगा। इसी बीच सुनक को अपने कार्यकाल में यूक्रेन युद्ध के चलते शरणार्थी बने लोगों को शरण देने के लिए स्पेशल सिस्टम बनाना पड़ा।

प्रवासियों पर रिसर्च करने वाले शोधकर्ताओं का दावा है कि ब्रेग्जिट के चलते यूरोपियन यूनियन के लोगों का स्वछंद आवागमन प्रभावित हुआ, लेकिन ब्रेग्जिट ने श्रमिकों की कमी को खत्म नहीं किया, बल्कि 1990 के बाद ब्रिटेन में प्रवासियों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि गैर-यूरोपीय लोगों को रिटेल और नेशनल हेल्थ सर्विस में नौकरियां मिलीं। इन नौकरियों में पहले यूरोपीय लोग काम करते थे। इसने भी सुनक के लिए मुश्किलें खड़ी कीं।

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