आज ही के दिन टूटा था प्रकृति का सबसे बड़ा नियम; कैसा है दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का हाल?
World's First Test Tube Baby : 25 जुलाई को वर्ल्ड आईवीएफ डे (World IVF Day) और वर्ल्ड एमब्रियोलॉजिस्ट्स डे (World Embryologists’ Day) के रूप में भी मनाया जाता है। दरअसल 46 साल पहले आज ही के दिन वैज्ञानिकों ने इतिहास रच दिया था और जिसे प्रकृति का सबसे बड़े नियमों में से एक की तरह देखा जाता था उसे तोड़ कर रख दिया था। आज ही आईवीएफ प्रक्रिया से दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था। मेडिकल साइंस की सक्सेस ने ऐसे लाखों-करोड़ों परिवारों को संतान सुख दिया जो प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म नहीं दे सकते थे।
लुइस जॉय ब्राउन, यह नाम है उस महिला का जिसका जन्म भगवान के वरदान से नहीं बल्कि विज्ञान के चमत्कार से हुआ था। 25 जुलाई 1978 को ब्रिटेन के लंकाशायर में एक अस्पताल में पहली बार किसी बच्चे का जन्म किसी महिला की कोख से नहीं बल्कि लैबोरेटरी में एक टेस्ट ट्यूब से हुआ था। जिस प्रक्रिया से लुइस का जन्म हुआ था उसे विट्रो फर्टिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट यानी आईवीएफ कहते हैं। आईवीएफ को 20वीं सदी का सबसे शानदार मेडिकल सक्सेस कहा जाता है। आइए जानते हैं आईवीएफ प्रोसीजर और लुइस ब्राउन के बारे में और यह भी कि अब उनका हाल कैसा है।
नौ साल कोशिशों के बाद लिया साइंस का सहारा
लेस्ली ब्राउन और उनके पति जॉन ब्राउन 9 साल से प्राकृतिक तरीके से बच्चे को जन्म देने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन लेस्ली को ब्लॉक्ड फेलोपियन ट्यूब्स की समस्या थी। 10 नवंबर 1977 को लेस्ली ने एक मेडिकल प्रोसीजर लिया जिसे आज आईवीएफ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद 25 जुलाई 1978 को लंकाशायर के ओल्डहम जनरल हॉस्पिटल में लुइस ब्राउन का जन्म हुआ था। उल्लेखनीय है कि कि ब्राउन दंपती को पता था कि यह प्रोसीजर एक्सपेरिमेंटल है, लेकिन डॉक्टर्स ने उन्हें यह नहीं बताया था कि अभी तक ऐसे किसी भी केस में बच्चे का जन्म नहीं हो पाया था।
आईवीएफ प्रोसीजर को लेकर पोप ने जताई चिंता
यहां एक खास बात यह है कि लुइस ब्राउन को पहला टेस्ट ट्यूब बेबी तो कहा जाता है लेकिन उनके कंसेप्शन असल में एक पेट्री डिश में हुआ था। लुइस की छोटी बहन नैटली ब्राउन का जन्म भी चार साल बाद आईवीएफ से ही हुआ था। आईवीएफ प्रक्रिया से जन्म लेने के बाद बिना आईवीएफ के बच्चे को जन्म देने वाली नैटली पहली महिला बनीं। इस प्रोसीजर को लेकर पोप जॉन पॉल 1 ने चिंता जताई थी कि इससे महिलाओं को आगे चलकर 'बेबी फैक्ट्रीज' की तरह इस्तेमाल किया जाने लगेगा। हालांकि, उन्होंने लुइस के माता-पिता की निंदा नहीं की थी बल्कि शुभकामना दी थी।
457 कैंडिडेट, 167 में फर्टिलाइजेशन, सफल एक
लुइस के पिता जॉन का साल 2006 में और मां लेस्ली का जून 2012 को निधन हो गया था। उल्लेखनीय है कि लेस्ली ब्राउन उन 282 महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने उस समय इस एक्सपेरिमेंटल और विवादित प्रोसीजर में हिस्सा लिया था। डॉक्टर्स ने 457 एग कलेक्शंस पर यह एक्सपेरिमेंट किया था लेकिन सिर्फ 167 में ही फर्टिलाइजेशन हो पाया था। इनमें से सिर्फ 12 एंब्रियो ही महिलाओं में सफलतापूर्वक इंप्लांट किए जा सके थे। 12 में से सिर्फ 5 महिलाएं गर्भवती हुई थीं। लेकिन, इन पाचों में से जीवित बच्चे को जन्म देने वाली महिला सिर्फ एक थी और उसका नाम लेस्ली ब्राउन था।
किसने डेवलप किया IVF? 1 को नोबल भी मिला
आईवीएफ प्रोसीजर को पैट्रिक स्टेपटो, रॉबर्ट एडवर्ड्स और जीन पर्डी ने डेवलप किया था। रॉबर्ड एडवर्ड्स को साल 2010 में मेडिसिन के क्षेत्र में उनके काम के लिए प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उस समय तक पैट्रिक और जीन का निधन हो चुका था। इस प्रोसीजर में एग को स्पर्म के साथ विट्रो में फर्टिलाइज किया जाता है। विट्रो लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब 'ग्लास में' होता है। इस प्रक्रिया में भ्रूण को लैब में डेवलप करने के बाद सर्जरी के जरिए महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है। यह एक तरह की असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी है।
कैसी रही लुइस ब्राउन की लाइफ, अब कैसा हाल?
आज लुइस ब्राउन 46 साल की हो गई हैं और उनके 2 बच्चे हैं। साल 2004 में लुइस ने वेस्ली मुलिंडर से शादी की थी। डॉ. रॉबर्ट एडवर्ड्स भी उनकी शादी में शामिल हुए थे। लुइस और वेस्ली के पहले बेटे का जन्म प्राकृतिक रूप से 20 दिसंबर 2006 को हुआ था। लुइस के जन्म के बाद से 60 लाख से ज्यादा बच्चों का जन्म इस फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की वजह से हुआ है। लुइस के जन्म को इंग्लैंड के साथ-साथ पूरी दुनिया के मीडिया संस्थानों ने प्रमुखता के साथ कवर किया था। कई बड़े अंतरराष्ट्रीय अखबारों में उनकी तस्वीरें पहले पेज पर छपी थीं। डेली मेल ने इसे एक्सक्लूसिव कवर किया था।