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'काला पड़ गया था आसमां, चारों तरफ बिखरा था खून'...79 साल बाद भी 'लिटिल बॉय' को याद कर कांप उठते हैं जापानी

Hiroshima Nuclear Attack: अमेरिका ने 6 दिसंबर 1945 को जापान को वो जख्म दिया था। जो शायद ही कभी भर पाए। 'लिटिल बॉय' नाम के हथियार ने वहां जो तबाही मचाई थी, उसके निशान आज भी देखे जा सकते हैं। जापान ने इस दिन के बाद न केवल सरेंडर कर दिया था, बल्कि भविष्य में युद्ध नहीं करने की कसम खा ली थी।
07:20 PM Jul 31, 2024 IST | Parmod chaudhary
Hiroshima Nagasaki nuclear attack survivors story-Photo Getty
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Nagasaki Nuclear Attack: दूसरे विश्व युद्ध में जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका ने परमाणु हमला किया था। इस हमले में जिंदा बचे लोग 79 साल बाद भी भयावह यादें याद कर कांप उठते हैं। जापान में जिंदा बचे लोगों को 'हिबाकुशा' कहा जाता है। चीको किरियाके बताती हैं कि वे उस समय 15 साल की थीं। हमले के बाद एक महिला को उन्होंने भागते देखा था। महिला की आंतें बाहर आ गई थी। महिला हाथ से अंगों को पकड़े हुए थी। सैकड़ों लोगों को मदद के लिए चिल्लाते देखा था। 1940 में दूसरा विश्व युद्ध चरम पर था। यूएस और यूके के खिलाफ जर्मनी के साथ जापान शामिल हो गया था। 7 दिसंबर 1941 को जापान ने यूएस के पर्ल हार्बर में हवाई हमला किया था।

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जापानी हमले में मारे गए थे 2400 लोग

अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर 2400 लोग मारे गए थे। जिसके बाद अमेरिका ने न्यू मैक्सिको के लॉस एलामोस रेगिस्तान में अपना एक गुप्त मिशन परमाणु बम बनाने के लिए लॉन्च किया था। जिसकी अगुआई भौतिक विज्ञानी जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने की थी। मई 1945 में जर्मनी ने हिटलर की मौत के बाद मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। लेकिन जापान लड़ाई जारी रखे हुए था। 6 अगस्त 1945 को यूएस की एयरफोर्स ने जापानी शहर हिरोशिमा पर पहली बार परमाणु बम गिराया था। जिसमें भारी तबाही मची थी। इसके बाद नागासाकी पर तीन दिन बाद दूसरा बम गिराया गया था। इन बमों को लिटिल बॉय नाम दिया गया था।

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अनुमान है कि दोनों हमलों में 2 लाख 10 हजार लोग मारे गए थे। कई लोग धीरे-धीरे दर्दनाक मौत का शिकार हुए थे। 79 साल बाद भी 'हिबाकुशा' इन हमलों को याद कर सिहर उठते हैं। चीको किरियाके बताती हैं कि हमले से पहले अमेरिका ने चेतावनी भरे पर्चे हिरोशिमा के आसमान से फेंके थे।

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जिसमें अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रूमैन की ओर से चेतावनी दी गई थी। कहा गया था कि या तो जल्द शहर छोड़ दें। नहीं तो निकट भविष्य में बड़ा बम गिराया जाएगा। लोग इसे गंभीरता से लेते तो शायद आज बचे होते। लेकिन तब उन पर्चों को भट्ठियों में जला दिया गया था। हमले के बाद धूल का बड़ा गुब्बार उठा था। जो 17 हजार मीटर की ऊंचाई तक फैल गया था।

मां की गोद में देखा झुलसा बच्चा

सब कुछ काला ही नजर आने लगा था। 10 सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं दिख रहा था। इतना अंधेरा था कि अंगुलियां तक नहीं दिखीं। एक घंटे बाद कुछ दिखना शुरू हुआ। एक महिला खुद की ओर आती दिखी। ऐसा लग रहा था कि वह गिर जाएगी। उसका पूरा शरीर लहूलुहान था। दोनों हाथों से अपनी छातियों को पकड़े हुए थी। रोते हुए मुझसे पूछा कि अस्पताल कहां है? मिचिको कोडमा में हमले के समय वह एक स्कूल में थी। जो डेस्क के नीचे छिपी होने के बाद भी चोटिल हो गई। हमले के बाद लोगों की चीख पुकार मच गई थी। लोगों के कपड़े जल चुके थे। तेज रोशनी में लोग इतने झुलस गए थे कि मानो उनके अंग पिघलकर गिर रहे हों। सब कुछ नरक जैसा लग रहा था। एक बच्चा झुलसकर कोयले जैसा हो चुका था, जो मां की गोद में था। आज भी जेहन में ये बातें याद कर कंपकंपी होने लगती है।

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