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खून से सनी लाशें, तड़प-तड़पकर मरते लोग देखे; Udham Singh ने ऐसे लिया जल‍ियांवाला बाग हत्‍याकांड का बदला

Shaheed Udham Singh Memoir: शहीद ऊधम सिंह से आज की तारीख का खास कनेक्शन है। उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था। 1919 में नरसंहार करने वाले डायर को 21 साल बाद लंदन जाकर मौत के घाट उतार दिया गया था और इस हत्या के लिए ऊधम सिंह को मौत की सजा सुनाई गई थी। आइए जानते हैं कि बदला कैसे लिया गया था?
10:40 AM Mar 13, 2024 IST | Khushbu Goyal
Shaheed Udham Singh
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Shaheed Udham Singh Memoir: खून से सनी लाशें देखीं, लोगों को तड़प-तड़प कर मरते देखा, इतना नरसंहार देखकर सीने में बदले की आग धधकने लगी। करीब 21 साल तक बदला लेने के लिए तड़पते रहे और फिर एक दिन मौका मिला और बैठक में घुसकर उसके सीने में गोलियां दाग दी।

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इस तरह शहीद ऊधम सिंह ने 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला 21 साल बाद तत्कालीन ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर को मारकर लिया। वर्ष 1940 में आज ही के दिन शहीद ऊधम सिंह ने लंदन जाकर भरी सभी में डायर को गोलियों से छलनी कर दिया था।

 

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हत्या के लिए ऊधम सिंह को हुई थी फांसी

13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में ओ डायर ने नरसंहार किया था। निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवाई थीं। इस फायरिंग में करीब एक हजार लोग मारे गए थे। 2 हजार लोग गंभीर घायल हुए थे। उसी हत्याकांड का बदला शहीद ऊधम सिंह ने लिया और अपनी गिरफ्तारी दी।

इस मर्डर के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुनाई। 31 जुलाई 1940 को उन्हें लंदन की पेंटनविले जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। वहीं ऊधम सिंह को भारत में शहीद का दर्जा किया गया। ऊधम सिंह ने जिस पिस्तौल से डायर को गोलियां मारी थीं, वह किताब में छिपाकर लाए थे।

 

कैसे लिखी मर्डर की स्क्रिप्ट और पहुंचे लंदन?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में जो नरसंहार हुआ था, वह शहीद ऊधम सिंह ने अपनी आंखों से देखा था। उस दिन ऊधम सिंह ने खून से सनी धरती की मिट्टी माथे से लगाकर बदला लेने का संकल्प लिया था। गोलियां चलाने का आदेश देने वाले पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ डायर को मारने की कसम खाई थी। वे क्रांतिकारी बन गए थे।

साल 1927 में उन्हें जनरल डायर की बीमारी के चलते मौत होने की खबर मिली, लेकिन वे माइकल ओ डायर की हत्या करने का मौका तलाशने लगे। इसके लिए वे किसी तरह जुगाड़ लगाकर 1934 में लंदन पहुंचे। 9 एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर घर खरीदा। एक कार और 6 गोलियां वाली रिवॉल्वर खरीदी। साथ ही डायर को मारने का मौका तलाशने लगे। उसके घर का पता तक उन्होंने लगा लिया था। वे रोज उसका पीछा करते।

 

1947 में ऊधम सिंह के अवशेष भारत को मिले

13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की बैठक लंदन के कॉक्सटन हॉल में हुई। इस बैठक में डायर भी आया था। वे एक किताब लेकर बैठक में पहुंच गए। इस किताब में उन्होंने पेजों के बीच रिवॉल्वर छिपाई थी। इसके बाद जैसे ही डायर बोलने के लिए खड़ा हुआ, उन्होंने दीवार की सीध से उसके सीने में गोलियां उतार दी, लेकिन वे मौके से भागे नहीं।

उन्होंने गिरफ्तारी दी और उनके ऊपर डायर की हत्या का केस चला। 4 जून 1940 को ऊधम सिंह को डायर की हत्या का दोषी ठहराया गया। 31 जुलाई 1940 को पेंटनविले जेल में उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया। 1974 में ब्रिटिश सरकार ने शहीद ऊधम सिंह के अवशेष भारतीयों को सौंपे।

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History of the Dayjallianwala baghshaheed udham singhspecial-news
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