धरती पर आई प्रलय तो कैसे बचेगी वाइल्डलाइफ? वैज्ञानिकों ने बनाया अनोखा प्लान, चांद पर बनेगा नया 'घर'!
Science News : लीक से हटकर सोचने वाले एलन मस्क जैसे लोग धरती तबाह कर सकने वाली आपदा आने की स्थिति में लोगों को चंद्रमा या मंगल ग्रह पर शिफ्ट करने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन, एक बड़ा सवाल यह है कि अगर ऐसी कोई आपदा आती है तो हमारे प्लैनेट की वाइल्ड लाइफ यानी जानवरों का क्या होगा? हालांकि, अब शायद वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब ढूंढ लिया है। इनका प्लान चंद्रमा पर बायोरेपॉजिटरी बनाने का है ताकि वहां इनको सुरक्षित रूप से रखा जा सके। आइए जानते हैं यह बायोरेपॉजिटरी क्या होती है और इसके तहत जानवरों की सुरक्षा के लिए क्या किया जा सकता है।
इस बायोरेपॉजिटरी में स्तनधारियों से लेकर सरीसृपों और पक्षियों से लेकर पानी और जमीन दोनों जगह रहने वाले जानवरों की प्रजातियों की करोड़ों क्रायोप्रिजर्व्ड फ्रोजेन सेल्स (जमी हुई कोशिकाएं) होंगी। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि धरती पर जीवन की समाप्ति की स्थिति आने पर इन कोशिकाओं को क्लोन करके नई लाइफ का निर्माण किया जा सकता है। यह काम फिर से धरती पर या फिर चांद पर या फिर किसी और ग्रह पर किया जा सकता है। अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित स्मिथसोनियंस नेशनल जू एंड कंजर्वेटिव बायोलॉजी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने यह प्लान बनाया है। ये रिसर्च बायोसाइंस जर्नल में पब्लिश हुई है।
कितना खर्च आने की उम्मीद?
हालांकि, वैज्ञानिक अभी इस बात का अनुमान नहीं लगा पाए हैं कि ऐसा करने में कितना खर्च आ सकता है। उनका कहना है कि धरती पर एक बायोरेपॉजिटरी बनाने में जितना खर्च आएगा, चंद्रमा पर इसे बनाने में उसका पांच से छह गुना ज्यादा पैसा लगेगा। लेकिन, इसे मेनटेन करना काफी किफायती होगा। चांद पर बनने वाली इस वॉल्ट में जानवरों की प्रजातियों के क्रायोप्रिजर्व्ड सेल्स स्टोर किए जाएंगे। हालांकि, इस बायोरेपॉजिटरी को थोड़ा मोडिफाई करके इसमें पौधों के फ्रोजेन बीज भी स्टोर किए जा सकते हैं। लेकिन, शुरुआती चरण में उन प्रजातियों पर फोकस रहेगा जिनका अस्तित्व धरती पर सबसे ज्यादा खतरे में है।
चंद्रमा कैसे बन सकता है घर?
वैज्ञानिकों ने कहा कि हम प्लानिंग कर रहे हैं लेकिन हमारा अल्टीमेट गोल धरती पर अधिकतर प्रजातियों को क्रायोप्रिजर्व करने का होगा। बता दें कि चांद की धरती से दूरी करीब 3 लाख 84 हजार 400 किलोमीटर है। चंद्रमा की धरती से इतनी दूरी है कि अगर धरती पर जीवन को खत्म करने वाली आपदा आती है तो चांद पर इसका असर नहीं पड़ेगा। इसके अलावा वहां एक एडवांटेज यह है कि यहां मौसम इतना ठंडा है जो कि जानवरों की कोशिकाओं के सैंपल्स को जमाए रखेगा। वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस बायोरेपॉजिटरी का निर्माण चांद के ध्रुवीय क्षेत्रों में करने का सुझाव दिया है क्योंकि यहां धूप नहीं पहुंचती है।
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