पैसा, पावर और पॉलिटिक्सः अमेरिकी राजनीति में भारतीयों के दबदबे का राज क्या? 10 साल में बदल गई 'दुनिया'
US Presidential Election 2024: अमेरिकी राजनीति में भारतीय मूल के नेताओं का ये 'अमृतकाल' है। एक दशक पहले अमेरिकी संसद में भारतीय मूल की एकमात्र सांसद एमी बेरा थीं। उस समय सीनेट में कोई भारतीय मूल का सांसद नहीं था। राज्यों में कुछ भारतीय मूल के जनप्रतिनिधि थे, लेकिन 10 साल बाद तस्वीर एकदम बदल गई है। अमेरिकी संसद के निचले सदन में भारतीय मूल के 5 सांसद हैं और एक सदस्य सीनेट का हिस्सा हैं। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस तो स्वयं भारतीय मूल की हैं।
एमी बेरा के बाद सबसे मशहूर नाम निक्की हेली का रहा। साउथ कैरोलिना की भारतीय मूल की पूर्व गवर्नर ने अपनी पार्टी की ओर से तीन बार राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए दावेदारी पेश की। 2024 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जेडी वैंस की पत्नी भी भारतीय मूल की है। जाहिर है कि जेडी वैंस को भारतीय मूल के वोटरों का अच्छा खासा समर्थन मिल सकता है।
अमेरिकी कांग्रेस में पांच भारतीय-अमेरिकी मूल के सांसद हैं। एक सीनेट के सदस्य हैं और 50 भारतीय-अमेरिकी मूल के प्रतिनिधि राज्यों की विधायिका का हिस्सा हैं। अमेरिका में भारतीय-अमेरिकियों की आबादी 1 प्रतिशत हैं। और अब अमेरिकी कांग्रेस में भी उनका प्रतिनिधित्व एक प्रतिशत हो गया है। कह सकते हैं कि अमेरिकी राजनीति में ये भारतीय-अमेरिकियों के दबदबे का टाइम है।
सवाल ये है कि आखिर क्या कारण है कि अमेरिकी राजनीति में भारतीय मूल के नेताओं का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है।
1. राजनीति में दूसरी-तीसरी पीढ़ी और फंडिंग
भारतीय मूल के लोगों के अमेरिका आने का सिलसिला 1965 के आसपास जोर पकड़ा। जब अमेरिका में प्रवासी लोगों को लेकर कानून बना। उसके बाद से भारतीय मूल के लोग बेहतर शिक्षा, पैसा और संपत्ति के साथ अमेरिका में अपना दबदबा कायम करते गए। आज दूसरी और तीसरी पीढ़ी के भारतीय-अमेरिकी वॉशिंगटन में नीतियां तय कर रहे हैं। इम्पैक्ट और AAPI विक्ट्री फंड जैसे समूह अमेरिकी राजनीति में भारतीयों के उभार को सपोर्ट कर रहे हैं।
इम्पैक्ट ग्रुप की स्थापना में मदद करने वाले राज गोयल ने न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ बातचीत में कहा कि 'समाज में स्वीकार्यता है और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पाने के लिए रणनीतिक तौर पर सब मिलकर काम कर रहे हैं।' राज गोयल ने कहा कि आज से 70 साल पहले यह संभव नहीं था। एक सामान्य वोटर अब भारतीय-अमेरिकी चेहरे से ज्यादा वाकिफ है। एग्जाम रूम में, क्लास रूम में, यूनिवर्सिटी में और कॉरपोरेट एग्जीक्यूटिव के रूप में हर जगह भारतीय मौजूद हैं।
1957 में अमेरिकी संसद के निचले सदन के लिए चुने गए दलीप सिंह सौंद के लिए यह सब कल्पना से परे था। सौंद भारतीय मूल के पहले व्यक्ति थे, जो अमेरिकी संसद के लिए चुने गए थे। असल में सौंद एशियाई-अमेरिकी मूल के पहले व्यक्ति थे, जो अमेरिकी कांग्रेस के लिए चुने गए थे। सौंद के बाद एक भारतीय-अमेरिकी मूल के व्यक्ति को कांग्रेस तक पहुंचने में 50 साल का समय लग गया। 2004 में बॉबी जिंदल लुइसियाना से अमेरिकी कांग्रेस पहुंचे। इससे पहले वह गवर्नर के पद पर भी रहे।
2012 में एमी बेरा अमेरिकी कांग्रेस के लिए चुनी गईं। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कांग्रेस के 224 साल के इतिहास में बेरा भारतीय-अमेरिकी मूल की तीसरी सांसद थीं।
2. अमेरिकी राजनीति में 2016 बना निर्णायक साल
भारतीय-अमेरिकियों के लिए 2016 निर्णायक साल रहा। इसी साल बॉबी जिंदल ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की। इसी साल वॉशिंगटन से प्रमिला जयपॉल, कैलिफोर्निया से रो खन्ना और इलिनॉयस से राजा कृष्णमूर्ति भी अमेरिकी संसद के लिए चुने गए। 2016 में भारतीय-अमेरिकी मूल की कमला हैरिस सीनेट के लिए चुनी गईं। 2023 में श्री थानेदार भी अमेरिकी संसद के लिए चुने गए।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय-अमेरिकी मूल के जितने ज्यादा नेता होंगे, उतने ज्यादा उनके निर्वाचित होने के चांसेज होंगे। इलिनॉयस से कांग्रेस सांसद राज कृष्णमूर्ति ने कहा कि पहले लोग खुद को सेटल और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किए हुए थे, लेकिन जैसे ही लोग स्थापित हुए उन्होंने राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी के बारे में सोचा।
जाहिर है कि भारतीयों के संपन्न होने के चलते भारतीय-अमेरिकी मूल के नेताओं का प्रभाव भी बढ़ा है। और इसके साथ ही कांग्रेस में भारतीय-अमेरिकियों का दबदबा भी।
3. ज्यादा पढ़ा लिखा होना और लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़ाव
बहुत सारे लोगों का मानना है कि भारतीय-अमेरिकी उच्च शिक्षित हैं। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं और अन्य प्रवासियों के मुकाबले ज्यादा सक्षम हैं, जिसकी वजह से उनके लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व की चुनौतियां कम हो जाती हैं। सबसे बड़ी बात भारतीयों का संबंध लोकतंत्र से है। लिहाजा वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं, बजाय उन लोगों के जो तानाशाही व्यवस्था वाले से देशों से ताल्लुक रखते हैं।
राजनीति विज्ञान की सहायक प्रोफेसर सारा साधवानी ने न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ बातचीत में कहा कि 'हमारे सर्वे ये बात निकलकर सामने आई कि भारतीय अमेरिकी अपने लोगों को उच्च पदों पर देखना चाहते हैं। चाहे वह किसी भी पार्टी का हो।'
दिलचस्प बात ये है कि भारतीय-अमेरिकी मूल के नेता अब अमेरिका की दो मुख्य पार्टियों का हिस्सा हैं। चाहे वह रिपब्लिकन पार्टी हो या डेमोक्रेटिक पार्टी। 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में दो भारतीय-अमेरिकी नेताओं ने अपनी उम्मीदवारी पेश की। इनमें एक पूर्व गवर्नर निक्की हेली थीं और दूसरे कारोबारी से नेता बने विवेक रामास्वामी। निक्की हेली ने ट्रंप के राष्ट्रपति रहने के दौरान यूनाइटेड नेशंस में बतौर अमेरिकी एंबेसडर सेवा दी थी।