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Know Your Kundli: कुंडली में 'लग्न' और 'लग्नेश' क्या हैं? जानें ज्योतिष महत्व और जीवन पर असर
Know Your Kundli: वैदिक ज्योतिष में कुंडली के 12 भाव यानी घर होते हैं, जिनके भिन्न-भिन्न नाम हैं और प्रत्येक भावों से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। यहां चर्चा का विषय है, लग्न और लग्नेश क्या है? कुंडली विवेचना में इसका क्या महत्व है और इस भाव का जीवन पर क्या असर होता है? आइए जानते हैं, कुंडली के लग्न भाव और उस भाव के स्वामी यानी लग्नेश के बारे में, ताकि आप अपनी कुंडली को स्वयं समझ सकें।
लग्न भाव क्या है?
कुंडली के 12 भावों में से पहले भाव या घर को वैदिक ज्योतिष में 'लग्न' (Lagna) या जन्म-लग्न कहा गया है। लग्न का अर्थ है मुहुर्त, वहीं व्यावहारिक अर्थ है जन्म का मुहूर्त। जब आत्मा नया तन (शरीर) धारण कर इस धरती पर जीव के रूप में जन्म लेती है, तो राशियों, नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति जिस विशेष कोण पर होती है, उससे कुंडली का निर्माण होता है। उस समय पूर्व दिशा में जिस राशि का उदय होता है, उसे कुंडली के प्रथम भाव में स्थापित किया जाता है और सामान्य शब्दों में 'लग्न भाव' कहलाता है। इसे 'तनु या तन भाव' भी कहते हैं।
लग्नेश क्या है?
जन्म के समय के अनुसार, वैदिक ज्योतिष में पूर्व दिशा में उदय होने वाली राशि को कुंडली के पहले घर में स्थान दिया जाता है। इस राशि के स्वामी को 'लग्नेश' (Lagnesh) कहते हैं। बता दें, वैदिक ज्योतिष में 12 राशियां हैं, जिनके स्वामी अलग-अलग ग्रह होते हैं। किसी-किसी ग्रह को दो राशियों का भी स्वामित्व दिया गया है।
लग्नेश और भावेश में अंतर
कुंडली के भावों में राशियों को संख्या, जैसे 1, 2, 3, 4... ... 11, 12 आदि से प्रदर्शित किया जाता है। यहां इस सांकेतिक कुंडली के लग्न भाव में संख्या 1 दर्शाया गया है, जो मेष राशि की संख्या है। मेष राशि के स्वामी ग्रह 'मंगल' हैं। इसलिए मंगल यहां 'लग्नेश' हैं।
वहीं, प्रत्येक भाव के स्वामी ग्रह भी होते हैं, जो 'भावेश' कहलाते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली के प्रथम भाव के स्वामी सूर्य हैं, जो आत्मा, स्वास्थ्य, नेत्र ज्योति, नेतृत्व आदि के कारक ग्रह हैं। एक बार फिर स्पष्ट कर दें कि सूर्य यहां प्रथम भाव के स्वामी यानी 'भावेश' हैं, जबकि मंगल लग्न के स्वामी यानी 'लग्नेश' हैं। इस सांकेतिक कुंडली के अनुसार, जिस समय व्यक्ति का हुआ होगा, उस समय पूर्व दिशा में मेष राशि का उदय हो रहा होगा।
लग्न भाव और लग्नेश का महत्व
लग्न भाव कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव यानी घर है। जीवन में आयु और स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं। ये दोनों अगर न हो, तो जीवन में सब अर्थहीन हैं। आयु और स्वास्थ्य की भविष्यवाणी के लिए ज्योतिषाचार्य सबसे पहले लग्न भाव का गहराई से अध्ययन करते हैं।
इस घर में स्थित राशि के स्वामी ग्रह यानी लग्नेश की कुंडली में स्थिति यह बताती है कि लग्न भाव कितना मजबूत और शुभ है। यदि लग्न भाव अच्छा है, लेकिन लग्नेश अशुभ भावों (कुंडली का छठा, आठवां और बारहवां भाव) या अशुभ ग्रहों (राहु, केतु और शनि) से पीड़ित या दूषित होते हैं, तो आयु और स्वास्थ्य समेत जीवन के हर पहलू पर इसका नकारात्मक असर होता है।
लग्न भाव से क्या देखते हैं?
कालिदास की रचना 'उत्तरकालामृत' के अनुसार कुंडली के लग्न भाव से 33 प्रकार के फल यानी कारकत्व देखे जाते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं- तन यानी शरीर, शारीरिक बनावट, त्वचा का रंग, आंखों की रोशनी, केश (बाल), बचपन में जीवन और मृत्यु, स्वास्थ्य, व्यक्तित्व, चरित्र और स्वाभाव, सामान्य क्रिया-कलाप और समृद्धि आदि। ज्योतिषियों और पंडितों के मुताबिक, यदि लग्न भाव और लग्नेश कमजोर होते हैं, तो कुंडली के सभी राजयोग भंग हो सकते हैं।
इन्हें जानें (ज्योतिष शब्दकोश)
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