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Vakri Grah: ये दो ग्रह होते हैं हमेशा वक्री, जानें ज्योतिष महत्व और लाइफ पर असर
Vakri Grah: वैदिक ज्योतिष के नौ ग्रहों में सूर्य और चंद्रमा कभी वक्री नहीं होते हैं। वहीं, बुध, गुरु, शुक्र, मंगल और शनि एक निश्चित अंतराल पर पश्चगामी यानी वक्री होते रहते हैं। लेकिन दो ग्रह ऐसे हैं, जो कभी सीधी चाल में नहीं चलते हैं। ये ग्रह हैं, राहु और केतु। इन दोनों ग्रहों की चाल हमेशा वक्री होती है। ग्रहों की वक्री चाल को सामान्य भाषा में 'ग्रहों की टेढ़ी चाल' भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे रेट्रोग्रेड (Retrograde) होना कहते हैं और कुंडली में इसे R या Rx से दर्शाया जाता है।
क्या है ग्रहों का वक्री होना?
ज्योतिष शास्त्र में, ग्रहों का वक्री होना एक विशेष घटना है। पृथ्वी से देखने पर जब कोई ग्रह अपनी सामान्य गति से धीमा चलता हुआ दिखता है, तो वह अपनी ऑर्बिट (परिभ्रमण कक्षा) में पीछे की ओर जाता हुआ प्रतीत होता है। इसे ही ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का वक्री होना कहा गया है। यह अक्सर तब होता है, जब ग्रह पृथ्वी से सबसे दूर होते हैं या सूर्य के बहुत नजदीक होते हैं। सूर्य के नजदीक होने पर ग्रह काफी तेज गति से चलते हुए प्रतीत होते हैं। ग्रहों की चाल का तेज प्रतीत होना भी उनका वक्री होना कहलाता है। हालांकि, वैज्ञानिक रूप से ग्रहों की गति में कोई बदलाव नहीं होता है।
कौन ग्रह होते कितने दिनों के लिए वक्री?
ज्योतिष गणना के मुताबिक, बुध, गुरु, शुक्र, मंगल और शनि एक निश्चित समय और एक निश्चित अवधि के लिए वक्री होते हैं। शनि कुल 140, बृहस्पति 120, मंगल 80, शुक्र 42 और बुध 24 दिनों की अवधि के लिए वक्री होते हैं।
ग्रहों के वक्र होने की अवधि | |
ग्रह | अवधि |
शनि | 140 दिन |
बृहस्पति | 120 दिन |
मंगल | 80 दिन |
शुक्र | 42 दिन |
बुध | 24 दिन |
राहु | सदैव |
केतु | सदैव |
वक्री ग्रह का जीवन पर नकारात्मक असर
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों का वक्री होना अच्छा नहीं माना गया है। इस शास्त्र के मुताबिक, रेट्रोग्रेड प्लैनेट के प्रभाव से जीवन पर नकारात्मक असर होते हैं। इसकी वजह यह है कि वक्री हो जाने पर ग्रहों की ऊर्जा क्षीण यानी कमजोर हो जाती है और वे पूरी तरह से शुभ प्रभाव नहीं दे पाते हैं। किस ग्रह का क्या नकारात्मक प्रभाव क्या होगा है, यह उस ग्रह के कारकत्व यानी फल देने की शक्ति पर निर्भर करता है। जैसे, मंगल ग्रह के वक्री होने से उनके कारकत्व शारीरिक ऊर्जा, शक्ति, जमीन-जायदाद, भूमि, वाहन आदि पर असर होता है। वक्री मंगल के नकारात्मक असर से जमीन-जायदाद के झगड़े बढ़ सकते हैं, वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है। वक्री ग्रहों के कुछ सामान्य नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैं:
- व्यक्तिगत जीवन में बाधाएं और समस्याएं बढ़ सकती हैं, जैसे- रिलेशनशिप में प्रॉब्लम, हेल्थ इश्यूज, धन संकट आदि।
- करियर और नौकरी में दिक्कतें आती हैं, जैसे- एग्जाम में मुश्किल से पास होना या फेल हो जाना, नौकरी का छूट जाना, सहकर्मियों और अधिकारियों से रिश्ते खराब होना, वित्तीय हानि आदि।
- मानसिक तनाव और चिंता का बढ़ना किसी भी वक्री ग्रह के नकारात्मक असर का सबसे सामान्य लक्षण है।
- यदि वक्री ग्रह किसी अशुभ ग्रह से दृष्ट होते हैं, तब गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे- गंभीर रूप से बीमार होना, बार-बार चोट लगना या एक्सीडेंट होना आदि।
- चूंकि राहु और केतु हमेशा वक्री होते हैं, इसलिए यह उनकी सामान्य चाल मानी जाती है यानी उनके वक्री होने से जीवन पर कोई नकारात्मक असर नहीं होता है। लेकिन जब कुंडली में ये अशुभ ग्रह से दृष्ट होते हैं, तब वे अपने कारकत्व के मुताबिक अपनी महादशा की अन्तर्दशा में अशुभ असर डालते हैं।
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