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Bangladesh Violence: क्या India के एहसानों को भूल चुके हैं Dhaka में बैठे हुक्मरान?

Bangladesh Violence: बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी घटकर 8% फीसदी से भी कम हो चुकी है। राज्य के गोपालगंज, मौलवी बाजार, ठाकुरगांव और खुलना में हिंदुओं की आबादी 20% से अधिक है।
08:58 PM Dec 15, 2024 IST | Anurradha Prasad
bangladesh violence  क्या india के एहसानों को भूल चुके हैं dhaka में बैठे हुक्मरान

Bangladesh: आज से 53 साल पहले भारतीय फौज एक युद्ध लड़ रह थी। उस जंग का मकसद न तो सरहद का विस्तार था न दूसरों पर धाक जमाना। इंडियन आर्मी के शूरवीर पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले लोगों को उनकी ही फौज के अत्याचारों से बचाने के लिए अपना लहू बहा रहे थे। इस जंग से दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश के रूप में एक नए मुल्क का जन्म हुआ।

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लेकिन, बांग्लादेश में अत्याचार और जुल्म का सिलसिला खत्म नहीं हुआ। पिछले दो हफ्ते से बांग्लादेश के अलग-अलग हिस्सों से हिंदुओं पर हमला, उनके मंदिर तोड़े जाने की ख़बरें लगातार आ रही हैं। वहां हिंदू लगातार खौफ के साए में जी रहे हैं और उनकी संख्या भी दिनों-दिन कम हो रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश के लोग भारत के एहसान को भूल चुके हैं या वहां कट्टरपंथी इतने हावी हो चुके हैं, जो हिंदुओं को अपने मुल्क में देखना ही नहीं चाहते है?

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कट्टरपंथियों ने शेख हसीना का तख्तापलट कर मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर किया

अगस्त में कट्टरपंथियों ने शेख हसीना का तख्तापलट कर मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया? आइए आपको बताते हैं की बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उसकी जड़ें कितनी गहरी हैं ? वहां की फिजाओं में हिंदुओं का दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के लिए नफरत किसने भरी? बांग्लादेश के कट्टरपंथी हिंदुओं पर हमला कब से करते आ रहे हैं? वहां के समाज ने भारत से बेहतर रिश्तों की पैरवी करने वाले बंगबंधु मुजीब-उर-रहमान और उनकी बेटी शेख हसीना को भी क्यों नहीं बक्शा? बांग्लादेश में आज जो कुछ हो रहा है,  उसकी स्क्रिप्ट कैसे 100 साल पहले से ही लिखी जा रही है ?

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अंग्रेजों की साजिश ने हिंदू-मुस्लिम राजनीति के लिए जमीन तैयार की

बात 1940 के दशक की है, बंगाल की जमीन पर आजादी की लड़ाई टॉप गियर में चल रही थी। मोहम्मद अली जिन्ना की अगुवाई वाली मुस्लिम लीग बहुत पहले से मुस्लिमों के लिए अलग मुल्क की मांग कर रही थी। मोहम्मद इकबाल और चौधरी रहमत अली ने मुस्लिमों के लिए जिस अलग मुल्क का खांचा खींचा था, उसमें बंगाल का जिक्र नहीं था। लेकिन बंगाल के सामाजिक समीकरण और अंग्रेजों की साजिश ने हिंदू-मुस्लिम राजनीति के लिए जमीन तैयार कर दी। उस दौर में बंगाल की आबादी में हिंदुओं की तादाद 42 फीसदी थी और मुस्लिमों की 33 फीसदी। तब बंगाल में दो राजनीतिक दल आमने-सामने थे। एक हिंदू महासभा और दूसरा मुस्लिम लीग।

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बंगाल पॉलिटिक्स में बड़ा नाम थे हुसैन सुहरावर्दी

कांग्रेस का बंगाल को लेकर रवैया ढुलमुल वाला था। बंगाल में मुस्लिम लीग के सबसे बड़े हुआ करते थे हुसैन सुहरावर्दी। जिन्होंने राजनीति की शुरुआत चितरंजन दास की स्वराज पार्टी से की, बाद में इंडिपेंडेंट मुस्लिम पार्टी बनाई।  कुछ वर्षों में ही बंगाल पॉलिटिक्स में बड़ा नाम बन गए सुहरावर्दी और वो मोहम्मद अली जिन्ना के मुस्लिमों के लिए अलग देश के विचार के साथ मजबूती से खड़े हो गए। सुहरावर्दी का साथ मिलने से मुस्लिम लीग भी बहुत ताकतवर बनी। इस तरह सुहरावर्दी की वजह से बंगाल मुस्लिम लीग के पाकिस्तान प्लान में जुट गया।

कांग्रेस एकजुट भारत चाहती थी, वहीं मुस्लिम लीग बंटवारा

साल 1946 के Bengal Provincial Election में 250 सीटों में से मुस्लिम लीग को 113 पर कामयाबी मिली और कांग्रेस के खाते में सिर्फ 86 सीटें आईं। बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार बनी, मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी हुसैन सुहरावर्दी बंगाल के प्रीमियर यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। दूसरी ओर, भारत तेजी से आजादी की ओर बढ़ रहा था। सत्ता हस्तांतरण के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने कैबिनेट मिशन योजना तैयार की। कांग्रेस एकजुट भारत चाहती थी, वहीं मुस्लिम लीग बंटवारा। जिन्ना चाहते थे कि मुस्लिम बहुल इलाकों को मिलाकर पाकिस्तान एक अलग मुल्क बने जो कांग्रेस को मंजूर नहीं था। ऐसे में जिन्ना ने 16 अगस्त, 1946 में शक्ति प्रदर्शन का ऐलान किया जिसे नाम दिया डायरेक्ट एक्शन। इसके बाद सुहरावर्दी जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन को कामयाब बनाने में लग गए ।

1942 के आकाल में पूरा बंगाल तबाह हो गया

सुहरावर्दी के हाथ कलकत्ता में मारे गए हजारों निर्दोष लोगों के खून से सने थे। लेकिन, उनका व्यक्तित्व कैसा था इसकी एक तस्वीर डोमिनिक लापिएर और लैरी कॉलिन्स की किताब फ्रीडम एट मिडनाइट में मिलती है। इसमें लिखा गया है कि 1942 के आकाल में पूरा बंगाल तबाह हो गया था। लेकिन, सुहरावर्दी ने कलकत्ता के भूखे मरते लोगों के लिए भेजा गया लाखों टन अनाज बीच में ही रोक कर काले बाजार में बेचा और करोड़ों रुपये कमाए। सुहरावर्दी हमेशा ही टिप-टॉप रहते और हर तरह का शौक पाले हुए थे। खैर, बंगाल में मुस्लिमों के DNA में हिंदुओं के प्रति जहर भरने में सुहरावर्दी की बड़ी भूमिका रही। इतना ही नहीं, वो बंगाल को अलग देश बनाने का ख्वाब भी पाले हुए थे। हालांकि, उनका ये सपना पूरा नहीं हो पाया।

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1951 में पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) में हिंदुओं की आबादी 22% थी

आजादी के साथ भारत का बंटवारा भी हुआ। पाकिस्तान का एक हिस्सा भारत के पश्चिम में और दूसरा पूरब में, दोनों हिस्सों के लोगों के रहन-सहन, बोली, खान-पान और तौर-तरीकों में कोई मेल नहीं है। बस दोनों हिस्सों को जोड़ने वाला धागा इस्लाम था। भीतरखाने हिंदुओं को लेकर टिस जिसे कट्टरपंथी हवा दे रहे थे। इसका अंजाम किस रूप में सामने आया इसे एक आंकड़े के जरिए समझा जा सकता है। साल 1951 में पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 22 फीसदी थी जो 1974 आते-आते घटकर 12 फीसदी हो गई। ऐसे में सवाल उठता है कि बांग्लादेश की आबादी में लगातार घट रहे हिंदू कहां गए ? बांग्लादेश में कट्टरपंथी अपने मुल्क के उदार सोच के रहनुमाओं के साथ भी कैसा सुलूक करते हैं इसे समझने के लिए बंग-बंधु मुजीब-उर-रहमान के आरंभ और अंत को भी समझना जरूरी है। इसके लिए 1970 के दशक का पन्ना पलटना जरूरी है ।

बांग्लादेश में हिंदुओं के प्रति नफरत का जहर घोलने में जमात-ए-इस्लामी की बड़ी भूमिका रही

बांग्लादेश में हिंदुओं के प्रति नफरत का जहर घोलने में जमात-ए-इस्लामी की बड़ी भूमिका रही है। इस कट्टरपंथी संगठन की छतरी तले खड़े लोगों ने संस्कृति और धर्म के बीच टकराव पैदा करने की कोशिश की। बांग्लादेश में भारत विरोधी एजेंडा को जमात समर्थक दशकों से हवा देते आ रहे हैं। जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तान से समर्थन मिलता रहा है। भले ही मुजीब-उर-रहमान का राजनीतिक उभार नफरती सोच वाले हुसैन सुहरावर्दी की सरपरस्ती में हुआ लेकिन, बंग-बंधु ने अपने बांग्लादेश को समाजवाद, राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के मजबूत स्तंभों पर खड़ा करने की कोशिश की, जिसमें मजहब के आधार पर भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं थी।

कट्टरपंथी सोच को दफ्न करने का रास्ता संविधान में निकाला गया

कट्टरपंथी सोच को दफ्न करने का रास्ता संविधान में निकाला गया। भारत के साथ बेहतर रिश्तों बांग्लादेश का बेहतर कल देखा गया। लेकिन, धर्मनिरपेक्षता और भारत से बेहतर रिश्ता रखने वाला बांग्लादेश कट्टरपंथियों को कभी पसंद नहीं आया। साल 1975 में मुजीब-उर-रहमान की तख्तापलट के बाद हत्या कर दी गई इसके बाद बांग्लादेश को इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश में बदल दिया गया। कट्टरपंथी ताकतें हावी होने लगीं बांग्लादेश में साजिश, नफरत, हिंसा और तख्तापलट का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जो बदस्तूर जारी है।

शेख हसीना ने कट्टरपंथियों को कुचला 

बात 2001 की है । बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सत्ता में आई और खालिदा जिया प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठीं। ये किसी से छिपा नहीं है कि बीएनपी के शासन में कट्टरपंथियों के हौसले कितने बुलंद रहते हैं। बीएनपी के सत्ता में आने के बाद कुछ हफ्तों पर अल्पसंख्यकों यानी हिंदुओं को ये कहते हुए निशाना बनाया गया कि इन लोगों ने अवामी लीग को वोट दिया है। कुछ समय बाद हिंसा का वो दौर खत्म हो गया । जनवरी 2009 में अवामी लीग की सत्ता में वापसी हुई और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठीं शेख हसीना उन्होंने कट्टरपंथियों को कुचलना शुरू किया और अपने पिता की तरह ही भारत के साथ दोस्ती में मुल्क का मुस्तकबिल चमकदार देखा।

5 अगस्त 2024 को का तख्तापलट हुआ

करीब 15 वर्षों तक लगातार प्रधानमंत्री रहीं, लेकिन कट्टरपंथियों ने 5 अगस्त, 2024 को उनका तख्तापलट कर दिया। उसके बाद वहां मोहम्मद युनूस की अगुवाई में अंतरिम सरकार बनी। जिसकी कमान पीछे से कट्टरपंथी संभाले हुए हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों में खासकर हिंदू और हिंदू मंदिरों पर हमले का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। लेकिन, 25 नवंबर को चटगांव से हिंसा की जो चिंगारी भड़की, वो कहां जाकर खत्म होगी? ये एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

हिंदुओं के घर और मंदिरों पर हमला कर खौफ माहौल बनाया

बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी घटकर आठ फीसदी से भी कम हो चुकी है। हालांकि, वहां के गोपालगंज, मौलवी बाजार, ठाकुरगांव और खुलना में हिंदुओं की आबादी 20 फीसदी से अधिक है। बांग्लादेश पॉलिटिक्स में हिंदू वोटरों अहम भूमिका निभाते रहे हैं। कट्टरपंथियों की सोच है कि हिंदू वोट का बड़ा हिस्सा अवामी लीग को जाता है। साथ ही हिंदुओं की मौजूदगी की वजह से बांग्लादेश इस्लामिक राष्ट्र नहीं बन पा रहा है। ऐसे में वहां के कट्टरपंथी हिंदुओं के घर और मंदिरों पर हमला कर खौफ का ऐसा माहौल बनाए रखना चाहते हैं। जिससे बांग्लादेश में सिर्फ मुस्लिम ही रह जाएं। शायद बांग्लादेश के लोग भूल गए हैं कि जब पाकिस्तानी फौज उन पर अत्याचार कर रही थी-तो किसने बचाया? जब पाकिस्तानी फौज के अत्याचार के बचने के लिए सरहद पार किया, तो किसने शरण दी,किसने महीनों कैंपों में रख कर भोजन का इंतजाम कराया ?

कट्टरपंथियों का उसी तरह कब्जा न हो जाए  जैसा सीरिया और अफगानिस्तान में हुआ

जब पूर्वी पाकिस्तान के लोग अपनी ही फौज के जुल्म से त्राहिमाम कर रहे थे तो किसने सेना भेजकर बांग्लादेश बनवाया ? बांग्लादेश के लिए लड़ने वाले इंडियन आर्मी के जवानों ने कभी नहीं सोचा कि वो हिंदू हैं तो मुस्लिमों को अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए क्यों लड़ें ? इंडियन आर्मी ने इंसानियत को सबसे ऊपर रखा और बांग्लादेश की आजादी के लिए नि:स्वार्थ अपना खून बहाया। बांग्लादेश के लोगों को अत्याचार से आजादी दिलाकर वापस लौट आए। लेकिन, वहां कट्टरपंथियों के उकसावे पर अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमला करने वाली उन्मादी भीड़ शायद भूल जाती है कि अगर भारत ने साथ नहीं दिया होता तो आज उनका वजूद भी न होता। आजादी से पहले हुसैन सुहरावर्दी ने वहां के लोगों के DNA में नफरत और हिंसा मिलाया  उसे आज भी वहां के कट्टरपंथी पालने-पोसने में लगे हुए हैं। ऐसे में डर इस बात का भी है कि कहीं ढाका पर भी कट्टरपंथियों का उसी तरह कब्जा न हो जाए  जैसा सीरिया और अफगानिस्तान में हुआ।

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