होमखेलवीडियोधर्म मनोरंजन..गैजेट्सदेश
प्रदेश | हिमाचलहरियाणाराजस्थानमुंबईमध्य प्रदेशबिहारदिल्लीपंजाबझारखंडछत्तीसगढ़गुजरातउत्तर प्रदेश / उत्तराखंड
ज्योतिषऑटोट्रेंडिंगदुनियावेब स्टोरीजबिजनेसहेल्थExplainerFact CheckOpinionनॉलेजनौकरीभारत एक सोचलाइफस्टाइलशिक्षासाइंस
Advertisement

Bharat Ek Soch: Donald Trump किसे मानते हैं America का दुश्मन नंबर वन?

Bharat Ek Soch : डोनाल्ड्र ट्रंप अपनी दूसरी पारी में रौद्र रूप में आगे बढ़ रहे हैं। व्हाइट हाउस में ट्रंप और जेलेंस्की के बीच तीखी तकरार हुई। ऐसे में अब बड़ा सवाल उठता है कि डोनाल्ड ट्रंप किसे अमेरिका का दुश्मन नंबर वन मानते हैं?
10:56 PM Mar 08, 2025 IST | Anurradha Prasad
featuredImage featuredImage
Bharat Ek Soch
Advertisement

Bharat Ek Soch : अक्सर कहा जाता है कि एक आदमी क्या बिगाड़ सकता है? एक आदमी के एक्शन से इतनी बड़ी दुनिया में कितनों पर फर्क पड़ेगा? लेकिन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी दूसरी पारी के शुरुआती डेढ़ महीना में ही पूरी दुनिया को अहसास करा दिया कि एक आदमी बहुत कुछ कर सकता है। दुनिया के बड़े हिस्से को टेंशन में डाल सकता है। विश्व के बड़े हिस्से में अनिश्चितता, असुरक्षा और युद्ध का माहौल पैदा कर सकता है। दुनियाभर में कारोबार का कायदा बदल सकता है। पिछले सात-आठ दशकों से दुनिया के पेचीदा मसलों को हल करने में अहम भूमिका निभाने वाले संगठनों के वजूद पर सवाल खड़े कर सकता है। दूसरी पारी में जब से ट्रंप ने अमेरिका की कमान संभाली है- वो अपने रौद्र रूप में आगे बढ़ रहे हैं। व्हाइट हाउस में प्रेसिडेंट ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की तीखी तकरार पूरी दुनिया देख चुकी है, जिसकी आशंका शायद ही किसी को रही होगी। उसके बाद से जेलेंस्की टेंशन में हैं कि उनके मुल्क यूक्रेन का क्या होगा? पूरा यूरोप इस टेंशन में है कि अगर अमेरिका ने सुरक्षा कवच हटा लिया तो रूस से कौन बचाएग? ये जोड़-घटाव भी चल रहा है कि क्या यूरोपीय देश आपस में मिलकर यूक्रेन को रूस से बचा पाएंगे? डोनाल्ड ट्रंप के मेक अमेरिका ग्रेट अगेन मिशन में स्पीड ब्रेकर की भूमिका में रूस है या फिर चाइना? चाइना को क्यों बढ़ाना पड़ा अपना रक्षा बजट? ट्रंप टैक्टिस से भारत को फायदा है या नुकसान? अगले कुछ वर्षों में कितना बदलेगा दुनिया का शक्ति संतुलन?

Advertisement

अमेरिका में टेंशन इस कदर है कि अब तो राष्ट्रपति ट्रंप के सामने ही उनके करीबी भी लड़ने-भिड़ने को तैयार हैं। न्यूयॉक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कैबिनेट मीटिंग में जमकर बवाल हुआ। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और DOEG के कर्ताधर्ता एलन मस्क के बीच कर्मचारियों की छंटनी के मुद्दे पर जमकर बहस हुई। एलन मस्क ने रुबियो पर आरोप लगाया कि उन्होंने अबतक किसी हो हटाया नहीं है और छंटनी का विरोध कर रहे हैं। जवाब में रुबियो ने भी मस्क से पूछा, आपने कितनों को बाहर किया? इसी तरह मस्क ने जब ईमेल पर अमेरिका के सरकारी कर्मचारियों से कामकाज का हिसाब-किताब मांगा तो बड़े पैमाने पर नाराजगी सामने आई। व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच तीखी बहस पूरी दुनिया देख चुकी है। टैरिफ को लेकर ट्रंप की नीतियों से पूरी दुनिया में अलग तरह का टेंशन है। अब उन्होंने दावा किया है कि भारत, चीन, यूरोपीय यूनियन समेत कई देश टैरिफ दरों को कम करने के लिए तैयार हो गए हैं। ऐसे में अपनी दूसरी पारी में ट्रंप टेंशन का दूसरा नाम हो चुके हैं। यूक्रेन टेंशन में है। पूरा यूरोप टेंशन में है। रूस टेंशन में है। चाइना टेंशन में है। अरब वर्ल्ड टेंशन में है। मैक्सिको टेंशन में है। पनामा टेंशन में है। कनाडा टेंशन में है। खुद अमेरिका के लोग भी टेंशन में हैं। सबकी टेंशन अलग तरह की है। लेकिन, सबकी टेंशन बढ़ी है- डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी पारी में राष्ट्रपति बनने के बाद से।

यूरोपीय देशों ने दिखाई एकजुटता

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से शपथ ग्रहण तक के बीच आशंका जताई गई थी कि हमेशा उलझन इस बात को लेकर रहेगी कि प्रेसिडेंट ट्रंप फैसला दिल से लेंगे या दिमाग से। वो किसी की सलाह से फैसला लेंगे या सब कुछ उनके मूड पर निर्भर करेगा? कम से कम 28 फरवरी को व्हाइट हाउस में प्रेसिडेंट ट्रंप और जेलेंस्की के बीच मुलाकात के दौरान जो कुछ हुआ, उसके बाद जिस तरह से यूरोपीय देशों ने एकजुटता दिखाई है। उससे तो यही लग रहा है कि अब धक्का-मार डिप्लोमेसी का युग शुरू हो चुका है। ऐसे में सबसे पहले यूक्रेन और जेलेंस्की की टेंशन को समझते हैं। भले ही यूरोपीय यूनियन के बड़े-बड़े नेता यूक्रेन के साथ खड़े होने की बात जोरशोर से कर रहे हों। लेकिन, राष्ट्रपति जेलेंस्की ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि सभी यूरोपीय देश मिलकर भी उनके देश को रूसी आक्रमण से बचाने की स्थिति में नहीं हैं। अमेरिका की ओर से मदद रोके जाने के बाद यूक्रेन के एनर्जी इंफ्रास्ट्रचर पर रूस ने सबसे बड़ा हमला किया। ऐसे में जेलेंस्की के पास अब अधिक विकल्प नहीं बचे हैं।

बाइडेन ने यूक्रेन का दिया था साथ

कॉमेडियन से यूक्रेन के राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचे जेलेंस्की पिछले तीन साल से रूस से युद्ध लड़ रहे हैं। रूस और यूक्रेन के बीच जब लड़ाई छिड़ी तब अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी पर जो बाइडन थे। उन्होंने रूस को आक्रमणकारी कहा, युद्ध में यूक्रेन की हर तरह से मदद की। यूरोपीय देशों ने भी यूक्रेन की मदद की। अब बाइडन की जगह ट्रंप राष्ट्रपति हैं, जिनकी रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ बेहतर केमिस्ट्री मानी है। लेकिन, अब तक शांति समझौते को लेकर रूस का समर्थन कर रहे ट्रंप ने अब रूस पर भी प्रतिबंध लगाने की बात कही है। अगले हफ्ते अमेरिका और यूक्रेन का सऊदी अरब के रियाद में बातचीत की टेबल पर बैठना तय माना जा रहा है। प्रेसिडेंट जेलेंस्की का सऊदी अरब दौरा लॉक हो चुका है, जहां उनकी मुलाकात क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से तय मानी जा रही है। दरअसल, अमेरिका की नजर यूक्रेन की धरती में छिपे बेशकीमती खनिजों पर है। यूक्रेन के बेशकीमती खनिजों से भरे क्षेत्र लुहांस्क, डोनेट्स्क, जपोरिजिया और खेरसॉन जैसे इलाकों पर रूस का कब्जा है और रूस अपने कब्जे वाले इलाकों को किसी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की बिना सुरक्षा गारंटी के किसी शांति समझौते के लिए तैयार नहीं हैं। यूरोप की बड़ी शक्तियां यूक्रेन के साथ खड़े होने का दावा कर रही हैं। लेकिन, सवाल ये है कि बिना अमेरिकी मदद के यूक्रेन कितने दिनों तक रूस के सामने टिक पाएगा? यूरोप के दूसरे देशों को भी डर सता रहा है कि कहीं यूक्रेन के बाद अगला नंबर उनका तो नहीं है? ऐसे में यूरोपीय देशों की Brussels में Defence Summit का आयोजन हुआ, जिसमें यूक्रेन के साथ मजबूती से खड़ा रहने के साथ-साथ यूरोप के लिए साझा सुरक्षा तंत्र तैयार करने पर भी मंथन हुआ।

Advertisement

अब ट्रंप को NATO में एक डॉलर भी लगाना फिजूलखर्ची लग रहा

यूरोपीय देशों को सबसे अधिक डर सता रहा है- अपनी सरहदों की सुरक्षा का। रूस के आक्रमण का। कभी कम्युनिस्ट USSR के आक्रमण से बचाने के लिए NATO का गठन हुआ था। जिसकी छतरी तले 32 सदस्य देश हैं। अब राष्ट्रपति ट्रंप को NATO में एक डॉलर भी लगाना फिजूलखर्ची लग रहा है। अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ का कहना है कि नाटो सदस्यों को रक्षा के लिए खर्चा बढ़ाना होगा। साल 2025 में NATO का बजट 3.8 बिलियन पाउंड होने का अनुमान है। 2024 में NATO के बजट में 15.8% योगदान अमेरिका ने दिया। अमेरिका जितना ही बोझ जर्मनी ने भी उठाया। नाटो फंड में 11% का योगदान यूनाइटेड किंगडम ने दिया। फ्रांस ने 10.2% तो इटली ने 8.5% खर्च उठाया। NATO के दर्जनभर सदस्यों में हर एक की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम की है। ट्रंप के आक्रामक अंदाज की वजह से NATO का वजूद ही खतरे में आ गया है। ऐसे में NATO का विकल्प तैयार करने की, जो कोशिश यूरोप में चल रही है, वो किस अंजाम तक पहुंचेगी? उसका लीडर कौन होगा? ऐसे कई गंभीर सवालों के जवाब अभी भविष्य के गर्भ में हैं। दरअसल, यूरोप की टेंशन की वजह रूस और अमेरिका है। वहीं, अमेरिका की रूस से अधिक चीन से टेंशन में है। चीन को दुश्मन नंबर वन मानने वाले ट्रंप को यूरोप से ज्यादा फायदा रूस के साथ खड़े होने में दिख रहा है। लेकिन, ट्रंप कब क्या करेंगे और क्या कहेंगे, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। लेकिन, चीन को बड़े खतरे का अभी से अंदेशा होने लगा है। ऐसे में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत से बेहतर रिश्ता बनाने की स्क्रिप्ट आगे बढ़ा दी है। वांग यी का कहना है कि भारत और चीन को एक दूसरे से मुकाबले की जगह साथ मिलकर काम करना चाहिए।

चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी टेंशन में 

डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी पारी में चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी टेंशन में हैं। वो अच्छी तरह जानते हैं कि प्रेसिडेंट ट्रंप कभी भी और कोई भी फैसला ले सकते हैं। ऐसे में जिनपिंग ने रक्षा बजट में 7 फीसदी से अधिक की बढ़ोत्तरी की है। चाइना समंदर में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए चौथा एयरक्राफ्ट कैरियर तैयार करने की ओर बढ़ रहा है। कुछ महीने पहले गुआंगडोंग शिपयार्ड में एक अत्याधुनिक एयरक्राफ्ट कैरियर निर्माण की सेटेलाइट तस्वीरें आ चुकी हैं। इंटरनेशनल मीडिया में ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि चाइना कई खतरनाक युद्धपोत विकसित करने में जुटा है। दरअसल, चीन पर शिकंजा कसने के लिए अमेरिका ताइवान का कंधा इस्तेमाल कर सकता है। चाइना की घेराबंदी के लिए अमेरिका QUAD के मंच को भी मजबूत करने पर जोर दे सकता है। QUAD में फिलहाल अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया है। ऐसे में भारत के सामने दो तरह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है- एक पॉजिटिव और दूसरी निगेटिव। पॉजिटिव ये कि तेजी से बदलते समीकरण में यूरोपीय देश भारत के साथ रिश्ते बेहतर बनाने की पुरजोर कोशिश करेंगे। यूरोप और एशिया के कई छोटे-बड़े देश भारत से अपनी सरहदों की सुरक्षा मजबूत करने के लिए हथियार खरीद सकते हैं यानी भारत के सामने हथियारों की मंडी में नए सौदागर के रूप में जमने का मौका होगा। दूसरी निगेटिव स्थिति ये उत्पन्न होती दिख रही है- चीन का मिलिट्री बजट बढ़ने के बाद भारत को भी अपनी सरहदी सुरक्षा के लिए खर्चा और बढ़ाना होगा।

ट्रंप के फैसलों को दिखने लगा असर

फिलहाल प्रेसिडेंट ट्रंप के फैसलों में दो तरह का ट्रेंड साफ-साफ महसूस किया जा सकता है। पहला, वो बाइडन प्रशासन के हर उस फैसलों को पलट रहे हैं, जो पिछली सरकार की उपलब्धि माना जा रहा था। ऐसा करके ट्रंप एक तरह से बाइडन को निकम्मा और नाकारा साबित करने में लगे हैं। दूसरा- अमेरिका फर्स्ट और मेक अमेरिका ग्रेट अगेन मिशन के लिए वो दोस्त तलाश रहे हैं। मतलब, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बने नियम-कायदों को छोड़ने में कोई हिचक नहीं है। इतना ही नहीं, अमेरिका की जरूरतों के हिसाब से नए गठबंधन की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हैं। ट्रंप अच्छी तरह जानते हैं कि बिना भारत को साथ लिए बिना चाइना को कंट्रोल में करना नामुमकिन है। लेकिन, वो ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि भारत की कूटनीति दबाव और प्रभाव से हमेशा आजाद रही है और रहेगी। ऐसे में ट्रंप प्रशासन किसी कीमत पर भारत को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगा। ब्रिटेन की सीक्रेट इंटेलिजेंस सर्विस MI-6 के पूर्व प्रमुख सर एलेक्स यंगर की दलील है कि दुनिया एक ऐसे मोड़ पर हैं, जहां अंतरराष्ट्रीय संबंध नियमों से नहीं आंके जाएंगे। दुनिया डिप्लोमेसी और विदेश नीति के एक नए युग में प्रवेश कर रही है। जिसमें ताकतवर मुल्क और उनके हिसाब से बनी रणनीति का बोलबाला है, यही डोनाल्ड ट्रंप सोचते हैं, यही पुतिन और शी जिनपिंग भी। यूक्रेन युद्ध के बाद भले ही रूस-चीन करीब आए, लेकिन पुतिन ये भी समझ रहे हैं कि मौजूदा विश्व-व्यवस्था में रूस को अमेरिका से अधिक खतरा चीन से है। कूटनीति भी अजीब चीज है, जिसमें दोस्त और दुश्मन का पता ही नहीं चलता। कब दोस्त दुश्मन बन जाता है और दुश्मन दोस्त पता ही नहीं चलता। फिलहाल, दुनियाभर में शक्ति संतुलन बैठाने की स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है, जिसमें नए तरह से रिश्तों को परिभाषित करने का काम हो रहा है।

Open in App
Advertisement
Tags :
Bharat Ek Soch
Advertisement
Advertisement