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US Election में क्या भारतीय अमेरिका समुदाय के हाथों में है ‘White House’ की चाबी?

Bharat Ek Soch : अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हो रहा है। इस इलेक्शन में डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिल रहा है। अब सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय अमेरिका समुदाय के हाथों में व्हाइट हाउस की चाबी है?
06:41 PM Oct 28, 2024 IST | Deepak Pandey

Bharat Ek Soch : अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव है और पूरी दुनिया में तनाव है। ग्लोब पर दिखने वाले ज्यादातर देशों के तेज-तर्रार कूटनीतिज्ञ हिसाब लगा रहे हैं कि अगर रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीते तो क्या होगा? अगर डेमोक्रेट कमला हैरिस व्हाइट हाउस पहुंचने में कामयाब रहीं तो उसका साइड इफेक्ट किस तरह से दिखेगा? अमेरिका में जो रुझान सामने आ रहे हैं- उसमें डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे का मुकाबला दिखा है।

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5 नवंबर को अमेरिका के लोग अपने वोट की चोट से तय करेंगे कि अगले चार वर्षों तक व्हाइट हाउस में कौन रहेगा? लेकिन, इस बार अमेरिका की अगुवाई कौन करेगा- ये तय करने में वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोग अहम भूमिका निभाने वाले हैं। इसे इस तरह समझा जा सकता है- हाल में आए द न्यूयॉर्क टाइम्स (The New York Times) और सिएना कॉलेज (Siena College) के एक सर्वे में डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस को बराबर वोट मिलने की भविष्यवाणी की गई है। ऐसे में अगर अमेरिका में रह रहे डेढ़ फीसदी भारतीय मूल के वोटरों ने एकतरफा वोट कर दिया तो किसी का भी खेल बन या बिगाड़ सकता है?

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भारत से जुड़ी हैं कमला हैरिस की जड़ें

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डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार कमला हैरिस की जड़ें भारत से जुड़ी हैं। उनके भारत कनेक्शन को आगे कर इंडियन-अमेरिकी वोटबैंक में चुंबक लगाने की कोशिश हो रही है। दूसरी ओर, रिपब्लिकन ट्रंप भी खुद को इंडियन-अमेरिकी का हितैषी बताने का कोई मौका छोड़ नहीं रहे हैं। दरअसल, वहां की राजनीति से कारोबार तक में भारतीयों की दमदार मौजूदगी लगातार बढ़ रही है। अमेरिका की कई दिग्गज कंपनियों की कमान भारतीयों के हाथ में है। ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के माहौल के बीच वहां की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में भारतीयों की भूमिका को समझना और जानना जरूरी है। अमेरिका को सुपरपावर बनाने में भारतीय मूल के लोगों का कितना बड़ा हाथ है? वहां की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में भारतीय किस तरह घुल-मिले और आज की तारीख में अमेरिका का कोई ऐसा सेक्टर नहीं- जिसमें भारतीय टैलेंट का डंका न बज रहा हो।

33 करोड़ में से करीब 50 लाख हैं भारतीय मूल के लोग

33 करोड़ आबादी वाले अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की तादाद करीब 50 लाख है। मतलब, अमेरिका की जनसंख्या में भारतीय मूल के लोगों की हिस्सेदारी डेढ़ फीसदी है। ऐसे में किसी के भी जेहन में ये बात आना स्वभाविक है कि चुनावी सिस्टम में डेढ़ फीसदी आबादी या वोट की क्या बिसात? लेकिन, अमेरिका जैसे मुल्क में जब यही बात भारतीय मूल के वोटरों को लेकर होती है तो पूरी तस्वीर पलट जाती है। खासकर, 5 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में।

किंगमेकर की भूमिका में भारतीय

अभी रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट कमला हैरिस के बीच मुकाबला 50-50 का है, ऐसे में भारतीय मूल के करीब डेढ़ फीसदी वोटर किंगमेकर की भूमिका में हैं। परंपरागत रूप से भारतीय-अमेरिकी वोटरों का झुकाव डेमोक्रेट्स की ओर रहा है। लेकिन, 2020 में 65 प्रतिशत भारतीयों ने डेमोक्रेट बाइडन को वोट दिया। इसकी एक बड़ी वजह प्रवासियों यानी इमिग्रेंट्स को लेकर उदार रवैया रहा। बाइडन मामूली अंतर से अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहुंचे। इस बार खुद बाइडन राष्ट्रपति की रेस से बाहर हो गए और भारतीय मूल की कमला हैरिस मैदान में हैं। बदले समीकरणों में माना जा रहा है कि भारतीय मूल के लोगों का वोट तय करेगा कि अगले चार साल तक कौन रहेगा अमेरिका का राष्ट्रपति ?

स्विंग स्टेट्स में किसी पार्टी का वर्चस्व नहीं

भारतीय मूल के अमेरिकी वोटर स्विंग स्टेट्स में निर्णायक भूमिका में हैं। एरिजोना, जॉर्जिया, मिशिगन, नेवादा, नॉर्थ कैरोलिना, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन को स्विंग स्टेट्स माना जाता है, जहां किसी भी पार्टी का वर्चस्व नहीं है। जहां के नतीजों को लेकर न डेमोक्रेट कॉन्फिडेंट हैं और न रिपब्लिकन। ऐसे में स्विंग स्टेट्स में रहने वाले भारतीय मूल के वोटरों के हाथों में व्हाइट हाउस की चाबी मानी जा रही है। टेक्सास, जॉर्जिया और पेंसिल्वेनिया जैसे राज्यों में भारी तादाद में भारतीय बसे हैं, जिनका वोट अपनी ओर खींचने के लिए डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस दोनों ने पूरी ताकत झोंक रखी है।

भारतीय को कैसे साधेंगे ट्रंप?

कमला हैरिस के भारत कनेक्शन को आगे कर डेमोक्रेट भारतीय मूल के वोटरों को जोड़ने में लगे हैं तो ट्रंप भी अपने साथ विवेक रामास्वामी और निक्की हेली को खड़ा दिखा रहे हैं, जिनकी जड़ें भारत से जुड़ी हैं। ट्रंप ने सीनेटर जेडी वेंस को उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया है- जिनकी पत्नी उषा वेंस का भारत से कनेक्शन है। लेकिन, डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस दोनों अच्छी तरह जानते हैं कि भारतीय मूल के अमेरिकियों का वोट हासिल करने के लिए सिर्फ सांकेतिक भारत कनेक्शन काफी नहीं है- वहां रहने वाले भारतीय अमेरिकियों की बुनियादी चिंताओं को दूर करना भी जरूरी है।

कई मोर्चों में इंजन की भूमिका में हैं भारतीय मूल के लोग

भले ही अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की संख्या डेढ़ फीसदी के आसपास है। लेकिन, वहां की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में भारतीय मूल के लोग कई मोर्चों पर इंजन की भूमिका में हैं। चाहे माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला हो या अल्फाबेट के सुंदर पिचाई, एप्पल की टॉप मैनेजमेंट में शामिल सबीह खान हों या फिर टेस्ला से CFO वैभव तनेजा, ऐसे कई नाम है, जो दुनिया की दिग्गज कंपनियों को आगे बढ़ने में ड्राइविंग सीट पर हैं। फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से 16 की कमान भारतीय मूल के CEOs की हाथों में है, जिनके मातहत 27 लाख अमेरिकी काम करते हैं । वहां की दिग्गज कंपनियों में चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर, चीफ डाटा ऑफिसर, चीफ इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी ऑफिसर, चीफ इनफॉर्मेशन ऑफिसर जैसे बड़े टेक्निकल पदों पर भारतीय दिखते हैं। भारतीय मूल के अमेरिकी वहां की अर्थव्यवस्था में करीब एक ट्रिलियन डॉलर का रेवेन्यू जेनरेट कर रहे हैं। अमेरिका की होटल इंडस्ट्री में भी भारतीयों का डंका बज रहा है। वहां के 60 फीसदी होटलों के मालिक भारतीय मूल के अमेरिकी हैं। औसत कमाई के मामले में भी अमेरिकियों से दोगुना भारतीयों की है।

कारोबार में भी भारतीयों का झंडा बुलंद

भले ही अमेरिकन पॉलिटिक्स में भारतीय मूल के लोग उतने सफल न हों। लेकिन, कारोबार में अपना झंडा बुलंद कर रखा है। इसकी एक बड़ी वजह है भारतीयों का किसी भी समुदाय के साथ तेजी से घुल-मिल जाने वाली प्रवृति है। वहां की संस्कृति के मुताबिक खुद को ढाल लेने वाली लचीली सोच है। वहां की बोली को तुरंत सीख लेने वाला हुनर है। सबसे बड़ी बात दूसरों की परंपरा, संस्कृति और बोली का सम्मान है। शायद इसीलिए अमेरिका में इंडिया फैक्टर की धमक चारों को दिख रही है।

अमेरिका में भारतीयों के लिए क्या है नया जोक?

कुछ महीना पहले भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा कि पुराना जोक ये था कि अगर आप भारतीय हैं तो अमेरिका में सीईओ नहीं बन सकते हैं। नया जोक ये है कि अगर आप भारतीय नहीं हैं तो अमेरिका में सीईओ नहीं बन सकते। एरिक गार्सेटी की बात बहुत कुछ इशारा कर रही है। राजनीति और बिजनेस से इतर अगर कूटनीतिक मोर्चे पर देखें तो हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका बहुत करीब आए हैं। अब बड़ा सवाल ये है कि 25 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग के बाद अमेरिका में जो बदलाव होगा, उसका भारत और दुनिया पर किस तरह से असर पड़ेगा?

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डोनाल्ड ट्रंप-कमला हैरिस के लिए भारतीयों को साधना जरूरी

अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी पर चाहे रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप बैठे या फिर डेमोक्रेट कमला हैरिस, दोनों के लिए भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों को साधे रखना जरूरी भी है और मजबूरी भी। क्योंकि, अमेरिका की आर्थिक व्यवस्था में ये वर्ग बहुत प्रभावशाली है। डोनाल्ड ट्रंप के दौर में भी अमेरिका और भारत के रिश्ते बेहतर रहे और राष्ट्रपति बाइडेन ने भी भारत के साथ बेहतर रिश्ता बना कर चलने में अपने मुल्क की बेहतरी समझी। अगर डेमोक्रेट कमला हैरिस व्हाइट हाउस पहुंचने में कामयाब रहीं तो उनके सामने भी बाइडन प्रशासन की नीतियों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी होगी। ऐसे में उनके मौजूदा कूटनीतिक ट्रैक से इधर-उधर होने के चांस कम हैं। डोनाल्ड ट्रंप से भी प्रधानमंत्री मोदी की केमेस्ट्री बेहतर रही है। लेकिन, बड़ी चिंता इस बात की है कि दुनिया में चल रहे तनाव और युद्ध को कम करने में अमेरिका के नए राष्ट्रपति की भूमिका कैसी रहेगी? वो दुनिया में युद्ध की आग को और भड़काने या बुझाने में भूमिका निभाएगा।

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