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Waqf Board Bill : वक्फ कानून में कहां-कहां बदलाव करना चाहती है सरकार?

Bharat Ek Soch : महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के साथ उपचुनाव के भी नतीजे आ गए हैं। इसे लेकर राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से मायने निकालने में जुटी हैं। अब संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार से शुरू होने जा रहा है, जहां वक्फ बोर्ड बिल को लेकर हंगामा होने के आसार हैं।
09:36 PM Nov 24, 2024 IST | Deepak Pandey
waqf board bill   वक्फ कानून में कहां कहां बदलाव करना चाहती है सरकार
Bharat Ek Soch

Bharat Ek Soch : महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों का सियासी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से मायने निकालने में जुटी हैं। उप-चुनाव के नतीजों से भी बिटवीन द लाइन पढ़ने की कोशिश चल रही हैं। भविष्य में बनने वाले समीकरणों पर गुना-भाग हो रहा है। लेकिन, इस सबसे इतर सोमवार से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने जा रहा है- जिसके बहुत हंगामेदार होने के आसार हैं। शीतकालीन सत्र में ही सरकार संसद में वक्फ संशोधन बिल पास कराने की तैयारी में है। इस मुद्दे पर बनी जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) भी तय डेडलाइन तक अपनी रिपोर्ट संसद को सौंप देगी।

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जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल के मुताबिक, वक्फ संशोधन बिल से जुड़े सभी पहलुओं पर विचार के बाद रिपोर्ट तैयार है। वहीं, विपक्षी पार्टियां रिपोर्ट सौंपने के लिए और समय की मांग कर रही हैं। मुस्लिम संगठन चीख-चीख कर कह रहे हैं कि वक्फ संशोधन बिल पास नहीं होना चाहिए। ये बिल मुसलमानों से वक्फ प्रॉपर्टी छीन लेगा? उनके अधिकार कम करेगा। वक्फ संशोधन बिल पर आखिर इतना घमासान क्यों मचा है? इस बिल के जरिए मोदी सरकार वक्फ बोर्ड के कामकाज में किस तरह का बदलाव करना चाहती है? संसद में केंद्र सरकार को वक्फ संशोधन बिल पर कितनी कड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं? मुस्लिम समाज को वक्फ संशोधन बिल में कहां-कहां खामियां दिख रही हैं? देश के भीतर काम कर रहे वक्फ बोर्ड की कितनी संपत्तियां हैं और वो किस तरह के काम करते हैं? आखिर किस सोच के साथ इस्लाम में वक्फ की शुरुआत हुई थी?

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25 नवंबर से शुरू होगा संसद का शीतकालीन सत्र 

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संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू होने जा रहा है। इसी सत्र में जेपीसी को वक्फ संशोधन बिल पर रिपोर्ट सौंपनी है। इसी सत्र में मोदी सरकार वक्फ संशोधन बिल पेश और पास कराने की तैयारी में है। वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड लगातार कह रहा है कि जब देश के करोड़ों मुस्लिम लिखित में अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं तो फिर वक्फ संशोधन बिल लाने की जरूरत क्या है? बेंगलुरू से बिहार तक मुस्लिम संगठन वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। ऐसे में सबसे पहले समझते हैं कि मोदी सरकार के वक्फ संशोधन बिल को मुस्लिम समाज किस तरह देख रहा है?

संसद में पेश हो सकती है जेसीपी की रिपोर्ट

वक्फ संशोधन बिल पर विस्फोटक अंदाज में राजनीति के आगे बढ़ने की संभावना है। अगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पार्टी लाइन में बदलाव नहीं हुआ तो संसद में वक्फ संशोधन बिल पास करना मोदी सरकार के लिए हिमालय चढ़ने जैसा साबित होगा। दूसरी ओर इस मुद्दे पर बनी जेसीपी की संसद में रिपोर्ट पेश करने की टाइमिंग को लेकर भी मतभेद खुलकर सामने आया। वक्फ संशोधन बिल पर बनी जेपीसी के चेयरमैन जगदंबिका पाल का कहना है कि रिपोर्ट तैयार है और तय डेडलाइन के हिसाब से ही संसद में पेश की जाएगी। दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां इस बिल से जुड़े क्लॉज पर विचार के लिए और समय चाहती हैं।

आरजेडी ने इस रिपोर्ट पर उठाए सवाल

आरजेडी से राज्यसभा सांसद मनोज झा तो यहां तक कह रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार ने पहले से रिपोर्ट तैयार कर रखी है, बस औपचारिकता बाकी रह गई है। दरअसल, इस साल अगस्त में संसद में मोदी सरकार वक्फ संशोधन बिल लेकर आई, जिस पर जमकर बवाल हुआ। केंद्र सरकार की ओर से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रीजीजू ने दलील दी कि इस बिल का मकसद वक्फ बोर्ड के कामकाज को पारदर्शी बनाना है। दलील दी जा रही है कि मुस्लिम धर्म के लोगों की भलाई के लिए बनी एक पाक संस्था पर मुट्ठी भर भ्रष्ट और ताकतवर लोग राज कर रहे हैं।

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रेलवे-सेना के बाद वक्फ बोर्ड के पास सबसे अधिक जमीन

देश में रेलवे और सेना के बाद वक्फ बोर्ड के पास सबसे अधिक जमीन है। वक्फ बोर्ड की संपत्ति 9.4 लाख एकड़ में फैली है। इतनी बड़ी संपत्ति से बोर्ड सिर्फ 200 करोड़ रुपये की कमाई बताता है। साल 2013 में संशोधन के जरिए वक्फ बोर्डों को इतनी ताकत दी गई कि इनके फैसलों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। वक्फ बोर्ड के कामकाज में कोई दखल नहीं दे सकता। दरअसल, आजादी के बाद साल 1954 में वक्फ एक्ट बना। इस कानून को वक्फ से जुड़े कामकाज को आसान बनाने के इरादे से लाया गया था। समय-समय पर वक्फ के कामकाज में सुधार की बातें भी उठती रहीं। चुनावी राजनीति में मुस्लिम एक मजबूत वोट बैंक बन गए। ऐसे में इस समुदाय से जुड़े मुद्दों को छेड़ने की हिम्मत कोई भी राजनीतिक दल नहीं जुटा पा रहा था।

जानें कब बना था नया वक्फ बोर्ड अधिनियम

ऐसे में साल 1995 में नया वक्फ बोर्ड अधिनियम बना, इससे देश के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने का रास्ता खुला। देश की चुनावी राजनीति दो खांचों में बंट गई- सेक्युलर और कम्युनल। गठबंधन का आधार भी यही बन गया। ऐसे में साल 2013 में वक्फ कानून में एक और बदलाव हुआ। वक्फ एक्ट का सेक्शन 40 कहता है कि कोई जमीन किसकी है, इसे वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड ही तय करेगा। मोदी सरकार इसी सिस्टम को खत्म करने की तैयारी कर चुकी है।

वक्फ बोर्ड के नए कानून में शामिल होंगी महिलाएं

मोदी सरकार की दलील है कि साढ़े नौ लाख एकड़ जमीन का कोई नियम-कायदा क्यों नहीं होना चाहिए? वक्फ बोर्ड के दावे को अदालत में क्यों नहीं चुनौती दी जानी चाहिए, जिस देश में महिलाओं को समानता का अधिकार है। वहां महिलाओं को वक्फ बोर्ड में शामिल क्यों नहीं किया जाना चाहिए? मौजूदा वक्फ कानून के विरोध और समर्थन में दलील देने का सिलसिला जारी है। लेकिन, ये जानना भी जरूरी है कि आखिर वक्फ की शुरुआत कैसे हुई और इसका मकसद क्या था। मान्यता है कि वक्फ की शुरुआत पैगंबर मोहम्मद के दौर में ही शुरू हो चुकी थी। कहा जाता है कि उस दौर में 600 खजूरों का एक बाग था, जिससे होने वाली कमाई से मदीना के गरीब लोगों की मदद की जाती थी। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भारत में वक्फ बोर्ड जैसी संस्था की शुरुआत दिल्ली सल्तनत के दौर में हुई।

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संसद में बिल को पास कराना चाहती है सरकार

मोदी सरकार जिस वक्फ संशोधन बिल को संसद में पास कराना चाह रही है। उसके कानून बनने के बाद तीन बड़े बदलाव दिखने तय हैं। पहला, वक्फ की संपत्ति पर जिला कलेक्टर के जरिए नजर रखी जा सकेगी। दूसरा, वक्फ बोर्ड के दरवाजे और खिड़कियां महिलाओं के लिए खुल जाएंगे। तीसरा, वेरिफिकेशन से पहले कोई भी जमीन वक्फ की संपत्ति घोषित नहीं की जा सकेगी। विपक्षी पार्टियां और मुस्लिम संगठन दलील दे रहे हैं कि मोदी सरकार वक्फ को बचाने की जगह बर्बाद करना चाहती है। ऐसे में वक्फ संपत्ति से जुड़े इस बिल पर मोदी सरकार को संसद से सड़क तक कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इस मुद्दे पर राजनीतिक और धार्मिक गोलबंदी दोनों साथ-साथ आगे बढ़ने की संभावना है। भविष्यवाणी की जा रही है कि वक्फ संशोधन बिल के बहाने विपक्ष मुस्लिम वोटों को एकजुट करने की रणनीति पर आगे बढ़ता दिख सकता है। इसका दूसरा पक्ष ये भी है कि बीजेपी को भी बहुसंख्यक हिंदू वोटरों को अपने साथ जोड़ने के लिए बड़ा मुद्दा मिल जाएगा ? ऐसे में देश की सियासी फिजाओं में हिंदू-मुस्लिम सुर और तेज होने की संभावना दिख रही है। लेकिन, इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि वक्फ संशोधन बिल का विरोध धार्मिक आधार पर हो रहा है या तार्किक आधार पर? क्या मौजूदा कानून के साथ भारत के नक्शे पर खड़े वक्फ बोर्ड उस मकसद को पूरा कर रहे हैं- जिस सोच के साथ इस्लाम में वक्फ की शुरुआत हुई थी।

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