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कहीं NDA, कहीं INDIA तो कहीं त्रिकोणीय हुआ मुकाबला, बिहार की 5 सीटों पर दिलचस्प हुई चुनावी जंग

Bihar 3rd phase Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में बिहार के झंझारपुर, अररिया, मधेपुरा, सुपौल और खगड़िया सीटों पर 7 मई को मतदान होगा। इन सीटों पर कहीं NDA आगे है, तो कहीं I.N.D.I.A आगे है। आइए चुनाव से पहले जानते हैं बिहार के इन 5 सीटों के बारे में...
07:51 PM May 06, 2024 IST | Pooja Mishra
कहीं nda  कहीं india तो कहीं त्रिकोणीय हुआ मुकाबला  बिहार की 5 सीटों पर दिलचस्प हुई चुनावी जंग

(अमिताभ कुमार ओझा)

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Bihar 3rd phase Lok Sabha Election: बिहार में तीसरे चरण में लोकसभा की 5 सीटों पर 7 मई को मतदान होना है। इन सीटों में झंझारपुर, अररिया, मधेपुरा, सुपौल और खगड़िया शामिल है। इन पांच सीटों पर NDA की प्रतिष्ठा फंसी हुई है क्योंकि इन पांचों ही सीटों पर 2019  NDA में शामिल दलों ने जीत हासिल की थी। एक ओर जहां मधेपुरा, झंझारपुर, सुपौल सीट पर JDU ने जीत दर्ज थी, तो वहीं अररिया में भाजपा और खगड़िया में लोजपा (रामविलास)  ने कब्जा किया था। इस बार भी उम्मीद जताई जा रही है कि इन सीटों पर इन्ही पार्टियों के उम्मीदवार विजयी होंगे। खगड़िया सीट को छोड़कर, बाकी की चारों सीटों पर वहीं उम्मीदवार है जो पिछली बार थे। सिर्फ खगड़िया में चिराग पासवान ने अपना उम्मीदवार बदला है। जबकि INDIA गठबंधन में अररिया, सुपौल, मधेपुरा में RJD हैं। वहीं, झंझारपुर में वीआईपी और खगड़िया में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार हैं।

बता दें कि सुपौल और मधेपुरा कोसी का इलाका है। वहीं अररिया सीमांचल में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। झंझारपुर मिथिला का गढ़ है। 2019 में NDA गठबंधन इन सीटों पर काफी मजबूत स्थिति में थी और इस बार भी है लेकिन INDIA महागठबंधन के उम्मीदवारों से कड़ी टक्कर मिल रही है। तो आइए जानते हैं बिहार के इन 5 सीटों के बारे में...।

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अररिया सीट

अररिया में NDA उम्मीदवार के रूप में भाजपा के प्रदीप सिंह चुनावी मैदान में हैं। प्रदीप सिंह दो बार इस सीट से सांसद चुने जा चुके हैं। RJD ने यहां से सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले दिवंगत सांसद तस्लीमुद्दीन के बेटे शाहनवाज आलम को उम्मीदवार बनाया हैं। फिलहाल शाहनवाज आलम RJD से विधायक हैं, वह तेजस्वी के मंत्रिमंडल में मंत्री भी थे। 2020 के चुनाव में शाहनवाज आलम ओवैसी की AIMIM से जीते थें, लेकिन फिर RJD में शामिल हो गए थे। वहीं साल 2014  में यहां से तसलीमुद्दीन जीते थे, लेकिन 2018 में उनके निधन के बाद उनके बेटे सरफराज आलम उपचुनाव में खड़े हुए जीत हासिल की। वहीं इससे पहले प्रदीप सिंह 2009 में भी जीते थे। 2024 में प्रदीप सिंह के सामने सरफराज आलम के छोटे भाई मो शाहनवाज आलम है। अररिया मुस्लिम बहुल इलाका है। बीजेपी को इस सीट पर वोटों की ध्रुवीकरण और मोदी के नाम पर भरोसा है। बिहार की इस सीट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर जेपी नड्डा तक सभा कर चुके हैं। यहां बीजेपी उम्मीदवार भले ही आगे है लेकिन मुकाबला कड़ा है।

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सुपौल सीट

सुपौल सीट पर 2019 की बजाये तस्वीर कुछ अलग है। यहां मुकाबला JDU के वर्तमान सांसद दिलेश्वर कामत का RJD के चन्द्रहास चौपाल से हैं। चन्द्रहास चौपाल वर्तमान में सिंघेश्वर विधानसभा से RJD के विधायक हैं। दरअसल इस बार लालू यादव ने इस सीट पर दो प्रयोग किए हैं। साल 2014 और 2019 में यह सीट कांग्रेस के पास थी। यहां से रंजीता रंजन (पप्पू यादव की पत्नी ) चुनाव लड़ती थीं। लेकिन इस बार आरजेडी ने अपना उम्मीदवार उतारा हैं। दूसरा ओबीसी वाले सीट पर दलित उम्मीदवार उतारकर पिछड़े वोट बैंक पर नजर गड़ाई है। लेकिन यहां लालू की यह चाल कुछ खास काम नहीं आ रही। सुपौल में 3 लाख की संख्या में यादव मतदाता है। यहां का यादव समुदाय लालू यादव की बजाये नीतीश सरकार के वरिष्ठ मंत्री बिजेंद्र यादव को अपना नेता मानते हैं। इस सीट से बिजेंद्र यादव अब तक अपराजेय रहे है। वहीं यहां का दलित समुदाय चिराग पासवान को अपना नेता मानते है। महादलित नीतीश कुमार को दिलेश्वर कामत के खिलाफ स्थानीय तौर पर नाराजगी थी लेकिन मोदी के नाम पर माहौल अंतिम समय में बदला है। यादव के बाद यहां सबसे ज्यादा संख्या में धानुक और मेहता मतदाता हैं, जो निर्णायक भूमिका में है। दिलेश्वर कामत भी इसी समाज से आते है इसलिए पलड़ा काफी भरी है।

मधेपुरा सीट

मधेपुरा सीट के बारे में एक कहावत बहुत प्रचलित है की 'रोम पोप का और मधेपुरा गोप का.....' यहां से लालू यादव से लेकर शरद यादव तक जीत कर संसद तक पहुंचे थे। इस बार भी मुकाबला यादव बनाम यादव का ही है। यहां से इस बार मुकाबला जेडीयू के वर्तमान सांसद दिनेश चंद्र यादव का आरजेडी के उम्मीदवार कुमार चन्द्रदीप से है। आरजेडी प्रत्याशी कुमार चन्द्रदीप मधेपुरा के पूर्व सांसद रहे आर के यादव रवि के बेटे हैं। कुमार चंद्रदीप पटना के एक कॉलेज में प्रोफेसर है और वहीं रहते हैं। इसको लेकर आरजेडी के कार्यकर्ता में भी नाराजगी है। यहां से दिवंगत शरद यादव के बेटे शांतनु शरद यादव भी टिकट के दावेदारों में से एक थे। लेकिन उन्हें आरजेडी ने टिकट नहीं दिया जबकि शांतनु मधेपुरा में टिकट मिलने की आस में थे। तेजस्वी यादव जब अपनी यात्रा के क्रम में मधेपुरा आए तो भी शांतनु यादव के घर गए थे और टिकट देने का भरोसा दिया था। शरद यादव मधेपुरा से 4 बार सांसद रह चुके हैं। यहां सबसे ज्यादा 22 से 24 फीसदी आबादी यादव समुदाय की है जबकि 15-16 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की है, 16 फीसदी दलित और 15 फीसदी सवर्ण मतदाताओं की है। जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन होने के कारण यहां एनडीए मजबूत स्थिति में है।

झंझारपुर सीट

झंझारपुर पुरी तरह से मिथिला का इलाका है। यहां से जेडीयू के वर्तमान सांसद रामप्रीत मंडल एक बार फिर चुनावी मैदान में है। जबकि महागठबंधन में यह सीट वीआईपी पार्टी के पास गए हैं। वीआईपी ने यहां से सुमन महासेठ को अपना उम्मीदवार बनाया है। बता दें कि वीआईपी ने पहले पूर्व विधायक गुलाब यादव को टिकट देने की घोषणा की थी लेकिन अंतिम समय में उम्मीदवार बदल दिया गया। इसके बाद नाराज गुलाब यादव ने बगावत कर बसपा की टिकट पर मैदान में उतरकर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। जदयू सांसद और उम्मीदवार रामप्रीत मण्डल के खिलाफ लोगों में नाराजगी तो है लेकिन उन्हें मोदी फैक्टर पर भरोसा है। हालांकि इस सीट पर जेडीयू के राज्यसभा सांसद संजय झा और नीतीश सरकार में भाजपा के मंत्री नीतीश मिश्रा की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।

खगड़िया सीट

खगड़िया में इस बार लड़ाई बड़ी ही रोचक है। महागठबंधन में यह सीट मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को मिली है, जहां से स्थानीय नेता संजय कुमार उम्मीदवार बनाया गया है। जबकि एनडीए में यह सीट चिराग पासवान वाली लोजपा आर के पास गई है। चिराग पासवान ने यहां से राजेश वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया है। इस सीट पर बाहरी बनाम स्थानीय के मुद्दे को भी उठाया गया। सीपीआई एम के उम्मीदवार संजय को स्थानीय होने का काफी लाभ मिला है। सीपीआई एम के कैडर वोट के अलावा उनको आरजेडी के यादव, मुस्लिम और कुशवाहा वोटरों पर भी भरोसा है। खगड़िया में दलित महादलित वोटर्स लगभग 2.5 लाख है और सवर्ण मतदाताओं की संख्या भी 1.5 लाख है। पिछली बार लोजपा (रामविलास) से महबूब अली कैसर ने यहां से चुनाव जीते था। इस बार चिराग पासवान ने उनका पता काट दिया, जिससे नाराज महबूब अली कैसर ने आरजेडी का दामन थाम लिया। अब वह महागठबंधन के उम्मीदवार को जिताने में लगे हुए हैं। यहां यादव 3.5 लाख, मुस्लिम 1.5 लाख और 1.5 लाख निषाद हैं। लेकिन यादव यहां कुशवाहा उम्मीदवार उतारे जाने से नाराज हैं। फिर भी दोनों गठबंधन के नेता जातीय गोलबंदी में लगे हैं।

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