4 बार के विधायक, नीतीश के करीबी, बिहार से बनारस तक वर्चस्व; कौन हैं सुनील पांडे जो BJP में हुए शामिल?
Former JDU MLA Sunil Pandey Join BJP: बिहार में जेडीयू के पूर्व बाहुबली विधायक सुनील पांडे आज बेटे के साथ बीजेपी में शामिल हो गए। वे पशुपति पारस की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी से जुड़े थे। इससे पहले वे जेडीयू में थे। ऐसे में आज उन्होंने बेटे विशाल प्रशांत के साथ बीजेपी की सदस्यता ले ली। उन्हें बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने सदस्यता दिलाई।
जानकारी के अनुसार बिहार में 4 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होने हैं। ये चुनाव महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा के चुनाव के साथ प्रस्तावित है। ऐसे में चर्चा है कि बीजेपी तरारा सीट से सुनील पांडे के बेटे संदीप पांडे को उम्मीदवार बना सकती है। सुनील पांडे ने पटना में 2006 में जेडीयू में रहते हुए एएसपी को गोली मारने की बात कही थी। इसके बाद नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था।
भाजपा प्रदेश कार्यालय, पटना में आज पूर्व विधायक डॉ. नरेंद्र कुमार पांडेय 'सुनील पांडेय' जी ने अपने सुपुत्र श्री विशाल प्रशांत के साथ भारतीय जनता पार्टी (BJP) की औपचारिक सदस्यता ग्रहण की।
माननीय प्रदेश अध्यक्ष डॉ @DilipJaiswalBJP जी ने डॉ. पांडेय जी और उनके हजारों समर्थकों को… pic.twitter.com/OsJQYCY1yt
— BJP Bihar (@BJP4Bihar) August 18, 2024
जानें कौन हैं सुनील पांडे
समता पार्टी के टिकट पर पीरो विधानसभा सीट से 2000 में पहली बार विधायक बने। उन्होंने आरजेडी के काशीनाथ को हराया था। 2005 में दो बार हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की। हालांकि इस दौरान वे फरारी काट रहे थे। इसके बाद अनर्गल बयानबाजी के कारण जेडीयू ने उनको पार्टी से निकाल दिया। 2010 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर पांडे को टिकट दिया और उन्होंने जीत दर्ज की।
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2015 में 272 वोट से चुनाव हारीं पत्नी
2012 में ब्रहोश्वर मुखिया हत्याकांड में भाई की गिरफतारी के बाद उनकी राजनीतिक दावेदारी कमजोर हो गई। इसके बाद उन्होंने 2014 में जदयू छोड़ दी और एलजेपी का दामन थाम लिया। 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने एलजेपी से टिकट मांगा लेकिन नहीं मिला इसके बाद पत्नी को निर्दलीय मैदान में उतारा। उनकी पत्नी महज 272 वोट से चुनाव हार गईं।
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बता दें कि सुनील पांडे पूर्वांचल के बड़े बाहुबली नेता रहे हैं। सियासी जमीन से लेकर कारोबार तक उनकी पकड़ ऐसी रही कि उस समय के तत्कालीन नेताओं में उनका साथ पाने की होड़ मची रहती थी। हालांकि वे कभी भी आरजेडी में शामिल नहीं हुए।