पवन सिंह या बीजेपी के उपेंद्र कुशवाहा, काराकाट में किसकी होगी जीत? समझें जातीय समीकरण
Karakat Lok Sabha Seat Bihar Election 2024: (अमिताभ कुमार ओझा, पटना) बिहार के काराकाट लोकसभा सीट को बिहार में "कुशवाहा लैंड" भी कहा जाता है। 2008 में ये सीट अस्तित्व में आई। 2009 के बाद 2014 और 2019 के आम चुनाव में यहां कुशवाहा ही जीते। 18 लाख 72 हजार से ज्यादा मतदाता वाली इस सीट पर सातवें चरण में 1 जून को चुनाव होंगे।
काराकाट का त्रिकोणीय मुकाबला
बीजेपी की तरफ से यहां उपेंद्र कुशवाहा मैदान में हैं तो इण्डिया गठबंधन ने भाकपा माले के राजाराम सिंह को उम्मीदवार बनाया है। वहीं भोजपुरी फिल्म स्टार पवन सिंह ने निर्दलीय नामांकन करके काराकाट के मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।
काराकाट सीट का इतिहास
काराकाट लोकसभा सीट पहले विक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र के नाम से जानी जाती थी। 2008 में हुए परिसिमन के बाद काराकाट के रूप में बिहार की नई सीट सामने आई। परिसिमन के बाद यहां तीन चुनाव हुए। 2009 में यहां से महाबली कुशवाहा चुनाव जीते, तब वो एनडीए की तरफ से जेडीयू के उम्मीदवार थे। 2014 के एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा यहां से जीते। 2019 के चुनाव में महाबली सिंह एनडीए के प्रत्याशी बने और फिर से जीत हासिल की। खास बात यह की महाबली सिंह और उपेंद्र कुशवाहा दोनों कुशवाहा जाति से ही आते हैं। वहीं 2009 से काराकाट सीट पर एनडीए ही जीत रही है।
काराकाट का जातीय समीकरण
काराकाट के जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां यादव 17.39 प्रतिशत, मुस्लिम 8.94 प्रतिशत, कुशवाहा 8.12 प्रतिशत, राजपूत 10.76 प्रतिशत, ब्राह्मण 4.28 प्रतिशत और भूमिहार 2.94 प्रतिशत हैं। लोकसभा क्षेत्र में कुल 18 लाख 72 हजार 358 वोटर हैं। इनमें से यादव 305952, राजपूत 189307, कुशवाहा 142859, मुस्लिम 157462, ब्राह्मण 75300, भूमिहार 51725, दलित-महादलित 275000, कुर्मी 100000, वैश्य 211000 वोटर हैं। वहीं अन्य जातियों के 250753 वोटर हैं। अन्य जाति के वोटर निर्णायक की भूमिका निभा सकते हैं।
पवन सिंह बनें चुनौती
विकास की बाट जोह रहे काराकाट सीट को इस बार हॉट सीट बना दिया है भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने। पवन सिंह को पहले बीजेपी ने आसनसोल से अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन पवन सिंह तैयार नहीं हुए और निर्दलीय काराकाट से चुनाव मैदान में उतर गए। पवन सिंह पीएम मोदी को अपना आदर्श तो मानते है लेकिन कहते है मोदी जी को गंगा माई ने बुलाया था और मुझे मेरी मां ने कारा काट भेजा है। पवन सिंह के साथ युवाओं का बड़ा समूह है जो रोड शो से लेकर जनसम्पर्क में साथ रहता है। हालांकि यह वक़्त बताएगा की स्टार के साथ चलने वाली यह भीड़ वोट में तब्दील हो सकती है या नहीं।
पवन सिंह की उम्मीदवारी से सबसे बड़ी परेशानी उपेंद्र कुशवाहा को हो सकती है। हालांकि बिहार की राजनीति के मंजे हुए खिलाडी उपेंद्र कुशवाहा इससे इंकार करते है। उपेंद्र कुशवाहा कहते है लोकतंत्र में हर किसी को चुनाव लड़ने का अधिकार है कोई भी कहीं से लड़ सकता है। उपेंद्र कुशवाहा को भरोसा है कि मोदी के नाम पर एनडीए के कैडर वोटों की बदौलत वे चुनावी वैतारनी पार कर सकते है।